[4/11, 7:30 am] Verma Ji: *छत्तीसगडी छंद*
1 गुरु वंदना -दुर्मिळ सवैया
घपटे अँधियार हवे मन द्वार बिचार बिमार लचार हवै ।
जग मोह के जाल बवाल करे बन काल कुचाल सवार हवै।
मन के सब भोग बने बड़ रोग बढ़ाय कुजोग अपार हवै ।
गुरुदेव उबारव दुःख निवारव आवव मोर पुकार हवै।1
लकठा म बला निक राह चला सब होय भला बिपदा ल हरो।
मन ला गुरु मोर जगा झकझोर भगा सब चोर अँजोर भरो।
हिरदे पथरा परिया कस हे हरिया दव प्रेम के धार बरो।
अरजी कर जोर सुनौ प्रभु मोर हवौं कमजोर सजोर करो।2
नई जानवँ आखर अर्थ पढ़े अउ भाग गढ़े मतिमंद हवै ।
ममता जकड़े नँगते अँकड़े कसके पकड़े जग फंद हवै।
अगनी कस क्रोध जरे मन मा तन मा धन मा छल छंद हवै।
किरपा करके दव खोल अमोल विवेक कपाट ह बंद हवै।
[4/11, 7:31 am] Verma Ji: **देवारी (आल्हा छंद)**
पांच तत्व के काया हावय,सुग्घर पाँचो देव बसाव।
आतम ज्ञान जगा के संगी ,रोज-रोज त्योहार मनाव।।
साफ-सफाई गहना गुरिया, दया मया के बर्तन लेय।
धनतेरस बढ़िया हो जाथे ,प्रभु धन्वंतरि अमरित देय।।
तन मन दूनों रथे निरोगी, तभे मजा चउदस मा आय।
खान-पान में संयम जेकर ,चमकत मुखड़ा वो हर पाय।।
छै विकार अंतस मा बइठे, गरजत नरकासुर ओ ताय।
योग ध्यान मनमोहन पूजा ,एकर बिन वो मर नइ पाय।।
संग छोड़ा आलस बइरी के ,मेहनत के नित अलख जगाय।
लक्ष्मी जी के करबो पूजा, आशा घी के दीप जलाय।।
करे जतन जी गौ माता के, गोबर खातू ला अपनाय।
गोवर्धन के पूजा करबो ,आवव सब झन पेड़ लगाय।।
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होली
(आल्हा छंद)
सरा ररा सर्रावत हावयँ, फाग गुड़ी लोगन सकलायँ।
कतको झन मँड़िया मँड़िया के, होली हे होली चिल्लायँ।।
घिड़कत हावय ढोल नगारा,उड़ियावत हे रंग गुलाल।
मनखे मन चिनहावत नइयें, बोथाये हें पिंवरा लाल।
लइका मन भर भर पिचकारी, मारत हावयँ मौका पाय।
मूँड़ कान कपड़ा लत्ता हा, पानी बूड़े कस चुचवाय।।
मटमटहा देवर अउ भउजी, करैं ठिठोली हँसी उड़ाय।
बबा सियनहा हाँसत हावय, रंग रंग के गोठ सुनाय।।
कसे सवाँगा टूरी कस जी, नाचत हावय टूरा आज।
रंग चढ़े होली के सुग्घर, लागत नइये चिटको लाज।
उन्डत हपटत दिखते कइ झन, नशा चढ़ा के पउवा मार।
बरजे मा कोनो नइ मानयँ, कहिथें हावय आज तिहार।।
बने घरो घर रोटी पीठा,बरा ठेठरी के भरमार।
खुशी-खुशी दाई बहिनी मन, बाँटत हावयँ मया दुलार ।।
ऊँच-नीच के भेद सिरागे, निक लागत हे पूरा गांँव।
सरग बरोबर ये भुइयाँ ला, छोड़ कहूँ मैं नइ तो जाँव।।
9/3/17---2)
मन ठगवा
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(विष्णुपद छंद में गीत)
मन बैरी हा बनके ठगवा,ठग डरथे भइया।
रचे स्वांग वो नाचतत रहिथे, ता ताता थइया।
ललचाहा ये परके धन बर, खाथे बड़ झपटे।
छलछंदी अउ बड़ परपंची,माया मा लपटे।रूप रंग बर छोटे आँखी, भोगी अउ कपटी।
बगुला भगत तिलक सारे जी,जोगी देखवटी।
बाहिर ले वरदानी दिखथे, अंतस ले कँइया।
मन बैरी हा बनके ठगवा,ठग डरथे भइया।
परके सुख चिटको नइ भावय, भारी जलकुकड़ा।
गली गली मा गावत रहिथे,फोकट के दुखड़ा।
अमली ला आमा कहिथे अउ,आमा ला अमली।
जीभर दुनिया ला भरमाथे,कहिके हली भली।
स्वारथ खातिर ददा बनाथे, कोनो ला मइया।
मन बैरी हा बनके ठगवा,ठग डरथे भइया।
(26/3/17---2)
चइत के पुन्नी रात
(शंकर छंद)
अब्बड़ मन ला भाथे संगी, चइत पुन्नी रात।
चंदा मामा दिखथे सुग्घर, फूल कस मुस्कात।
छकछक ले छटके चंदैनी,जगर बगर अँजोर।
टकटक ले देखासी लागै,हवय वो चितचोर।
धरती सरग दिखे उज्जर जी,दही दूध नहाय।
फुरुर फुरुर फुरहर पुरवइया, नींद ला परघाय।
लीम पेंड़ के जूड़ छाँव मा, सुते मनखे खोर।
पगुरावत उऊँघावत मिलथें, गली बइठे ढोर।
(31/3/17--2)
चइत नवरात्रि(शंकर छंद)
चइत मास के पाख अँजोरी, जोत भगत जलाय।
आदि शक्ति दुरगा मइया ला, विनय अपन सुनाय।
एकम तिथि हावय बड़ पावन, शक्ति के अवतार।
आजे के दिन ब्रह्मा जी हा, रचे हे संसार।1
सीतापति श्रीराम सम्हालिस, अयोध्या के राज।
रामराज के डंका बाजिस, उही दिन हे आज।
द्वापर युग मा धरमराज हा,धरम धजा उठाय।
राजा हो बइठिस गद्दी मा, कृष्ण के बल पाय।2
नवा बछर हा शुरु होवत हे, मनाबो नवरात ।
पर्व गुड़ी पड़वा के हावय,आदि युग शुरुआत।
लीप दुवारी चँउक सजाबो, दिया रिगबिग बार।
दया मया धर अंबे आही, सुने हमर पुकार।3
नवा साल के पहिली दिन हे, हवय भरे उमंग।
गावत हावय सारस मैना, कोइली के संग।
उलहोये हे पीपर पाना, लीम गद हरियाय।
नवा नवा सब कोती दिखथे,नवा खुशी सुहाय।4
महमाई के पूजा करबो, पान फूल चढ़ाय।
सुमर सुमर के झूम झूम के, गीत जस के गाय।
जोत जलाबो घी भर नाँदी,चलौ रहे उपास।
मातु भवानी किरपा करही, दु:ख होही नास।5
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
(सृजन 29/3/17,fb,खुलामंच2/3/22,)
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मन नइ लागय
(शंकर छंद मा गीत)
खोजत खोजत थक जाथौं मैं, लीम पीपर छाँव।
तोर शहर मा मन नइ लागै, सुघर लागै गाँव।
पहुना आयेंव चार दिन बर,हववँ मैं हलकान ।
बइठक में तो बइठे-बइठे, छूट जही परान।
लागत हे जस धरे बिमारी,फूलगे हे पाँव। तोर शहर मा मन नइ लागै, सुघर लागै गाँव।
घुपले हे सब ओली खोली,निचट के अँधियार।
बड़े-बड़े हें बिल्डिंग ठाढ़े,दिखै हे लाचार। सिंग मुँहाटी हावय नाली, रात दिन बस्साय।
नल के पानी सिट्ठा लागै, पेट तको पिराय। कुढ़वा कुढ़वा कचरा माढ़े, बाहिर ठाँव ठाँव।
तोर शहर मा मन नइ लागै, सुघर लागै गांँव।
बेटा तैं हा जानत हावच,सबो आदत मोर।
सुबे शाम बइठे रइथँव,गुड़ी चौंरा खोर।
आरा पारा रइथँव गिंजरत,पूछत हाल-चाल।
तोर इहाँ बइठइया मन के,परे हवय दुकाल।
बक्कड़ खागे हाववँ मैं हा, घूमे कहाँ जाँव।
तोर शहर में मन नइ लागै सुघर लागै गाँव।
(1/4/17-2)
छप्पय छंद--
जिनगानी
(छप्पय छंद)
फीका परथे रंग,सदा नइ राहय पक्का।
फरिया बनथे वस्त्र,समे के खाके धक्का।
समे बड़ा बलवान,कथें जम्मों मुनि ज्ञानी।
मूरख मनवा चेत,छोड़ बनना अभिमानी।
बिख करुवा अभिमान हा,बड़ गुत्तुर फर प्यार के।
रखना चाही साफ दिल, इरखा द्वेष बहार के।1
करबे झन अभिमान , चार दिन के जिनगानी।
चारे दिन के आय , चकाचक रूप जवानी।
धन दौलत पद मान, तोर ए कुटुम कबीला।
माया बँधना आय , पाँव मा गड़थे खीला ।
उतरत नइये देर जी, नदिया के पूरा चढ़े।
फट ले जाथे फूट ये, माटी के काया गढ़े ।
सा स 30/7/20 लोकाक्षर 19/3/22👍
2 पुन्नी रात
सुग्घर पुन्नी रात, चँदैनी हावय छटके।
चातक के मन आज, हवय चंदा मा अटके।
टपकत अमरित बूंद, शीत मा जगत नहाये।
बरसा गे हे भाग ,शरद जब ले हे आये।
सुरता आथे बात वो ,द्वापर युग के रास के।
राधा मोहन के मिलन, जमुना निधिवन खास के।
3 दसेरा
मन के रावण मार, दसेरा चलौ मनाबो।
दस ठन भरे विकार, सबो ला जोर जलाबो ।
अहंकार अउ क्रोध ,हवय गा बड़का बैरी।
इरखा माया मोह , मताथें रोज्जे गैरी।
परब हमर ए दशहरा, होही तब फुरमान जी।
परमपिता प्रभु राम हा, देही बड़ वरदान जी ।
4 प्लास्टिक छोड़
घातक प्लास्टिक छोड़, धरौ कपड़ा के झोला ।
झिल्ली भरे समान, रोग ले आथे चोला।
पशु जब एला खाय ,पेट फूले मर जाथे ।
बंजर होथे खेत, जाम नाली बस्साथे।
बउरे मा नुकसान हे, झिल्ली बड़ शैतान हे ।
अबड़ कीमती जान हे , धोखा मा इंसान हे ।
5 सीमेंट बन जा
बन जा तैं सीमेंट ,जोड़ दे ईंटा पखरा।
बन के भारी बीर, चाल झन फोकट अखरा ।
सब ले नाता टोर, परे अलगे रइ जाबे ।
देख मया ला बाँट, मया उपराहा पाबे।
नव के रुखुवा केंवची, सहि जाथे तूफान ला।
होना चाही गा नरम , ओइसने इंसान ला ।
6 उपदेश
झाड़े बर उपदेश, काम काला नइ आही।
खुद अपना के देख ,फायदा तभे बताही ।
दिखही सूरत आन, मुखौटा कहूँ लगाये।
ढोंगी बन के संत,अबड देथे भरमाये।
धरम करम के बात जे, करत रथे दिन रात जी।
पढ़ के वेद पुरान ला, हवय सिरिफ दुहरात जी।
बेवहार के महत्तम
(ताटंक छंद)
हवे महत्तम बोलचाल के, कभू बिकट ममहाथे जी।
कभू घोलहा अंडा जइसे, अलकरहा बस्साथे जी।।
जोड़ घटाना जे बड़ करथे, दाँत चाब पाई पाई।
चिटिकुन चोंट परे चिल्लाथे, कल्हर कल्हर ददा दाई।।
कतको मनखें मन पुचपुचहा ,कतको ढुलमुलिहा होथें।
अइसन मन सब चौपट करके, मूँड़ धरे बइठे रोथें।।
चाल केकरा के जी होथे,छिन छिन मा एती वोती।
होथे वोकर मिहनत खइता, चरर बरर चारों कोती।।
उपरे उपर मया झन राहय,बात बना देखौटी जी ।
राजा जइसे शान बघारय,झूलत दिखै निंगौटी जी।।
सहीं समे मा सहीं फैसला, ले बर जेला आ जाथे।
जीत उही ला मिलथे संगी, मान बड़ाई वो पाथे।।
जोग ध्यान अपना लौ संगी,तन मन जी हरिया जाही।
सूझबूझ रितु सुग्घर आही, मति तरिया फरिया जाही।।
(6/4/17-2)
नेवता
-------(छप्पय)--
पक्का होगे बात, नेंवता काली खाहीं।
सगा पराहीं पाँव, उही दिन लगिन धराहीं।
सुंदर हवय दमाँद, पाँव मा अपन खड़े हे।
खोले हवय दुकान, किराना अबड़ बड़े हे।
सुख पाही नोनी उहाँ, मन मा तो बिंसवास हे।
सिधवा समधी जी हवय, रिश्ता हा तो खास हे।
(11/4/17--2)
लहू दान (कुकुभ छंद)
लहू दान कर लव जी भाई, कतको झन जीवन पाथे।
मानव सेवा बर मनखे ला ,मौका तुरते मिल जाथे।
लहू दान बड़ पावन होथे, अंतस ला अब्बड़ भाथे ।धरम करम जिनगी खाता मा, पुण्य लाभ हा चढ़ जाथे।
महादान ए लहू दान हा ,मौत तको ला लहुटाथे।
नाम कमाथे दानी जग मा, आशीर्वाद ला भर पाथे।।
जुन्ना लहू लबोददा होके, नस-नस मा जम जाथे गा, लहू दान मा लाभ हवय जी ,नवा खून फरियाथे गा।
हार्ट फेल खतरा कम होथे, कोलेस्ट्रोल ह घट जाथे ।
करके देखव लहू दान जी, चमक चेहरा मा आथे ।।
काम धाम सुग्घर होथे गा ,नइ लागय कमजोरी जी।
लहू दान बर झन घबराहू , विनती हे कर जोरी जी ।।
लहू अपन कमती नइ होवय, तन कर लेते भरपाई।
कुछ घंटा मा भर जाथे गा ,कुआं ओगरा कस भाई ।।
[4/11, 7:: **मन ला जेहा साधथे(अमृतध्वनि छंद)**
*मन ला जेहा साधथे, धरके अबड़े धीर।*
*वोहा मोला लागथे,सिरतो मा जी वीर।*
*सिरतो मा जी, वीर कहाथे,जस बगराथे*।
*बड़ ममहाथे,जग मा छाथे, सब झन भाथे*।
*दुख ला सहि के,जोरत रहिथे ,विद्या धन ला*।
*डोलन नइ दय, सुग्घर धर लय, जेहा मन ला*।
[4/11, 7:35 am] Verma Ji: **भूख गरीबी हा भागै (सखी छंद)**
सखी छंद
भूख गरीबी हा भागै। कहे सुने बर झन लागै।
होवय झन चोरी हारी।करौ बने चौकीदारी ।
खेत चलाथे जिनगानी। मिलै बने बिजली पानी।
देश तभे बढ़ही आगू। मँहगाई रइही काबू।
डाक्टर रहै दवाखाना।रक्षा बर चौकी थाना।
नइ होही कोनो दंगा। रखौ कछेरी ला चंगा।
बिन देवव बगरे काँटा ।सुख सुविधा सबके बाँटा।
जात लड़ाथे दव माटी।लहुटा दव खटिया पाटी।
गुंडा नेता बन जाथे। झगरा ओमन करवाथे।
ए मन ला जब जितवाबो। तब तब जी धोखा खाबो।
जनता अब जागौ जागौ। पाछू कोती झन भागौ।
हक खातिर लड़ना सीखौ। पढ़ लिख के बढ़ना सीखौ।
[4/11, 7:36 am] Verma Ji:
**तीजा पोरा (सखी छंद)**
पोरा के महिमा भारी। सुन लेहू गा सँगवारी ।।
पोलापुर अत्याचारी। उधम मचाइस जब भारी ।।
कृष्ण मुरारी मारे हे। आजे के दिन तारे हे।।
नाम परिच तभ्भे पोरा। गो पालक के सँग जोरा ।।
बइला के पूजा होथे। खेत हमर जे हा बोथे ।।
दउँड़ाथें घँघड़ा साजे ।घनन घनन जे हा बाजे।।
खेल खिलौना माटी के। दर्शन हे परिपाटी के ।।
अबड़ अकन राँधे रोटी। बड़की मँझली अउ छोटी।।
माते जब खुडवा खो-खो। चिहुर परै देखो देखो ।।
नाच सुआ नोनी पीला। खुश हे दीदी रमशीला ।।
तीजा होही शुरु काली। सब बर माँगे खुशहाली ।।
करू करेला सब खाहीं। आसिस गौरी के पाहीं।।
दीदी के लुगरा नावा। पहिरे झट बासी खावा।।
बेटी दू दिन सुरतागे। मइके मन भावन लागे।।
पूरा अब होगे तीजा। लेगे आ जाही जीजा ।।
तीजा गुन 'बादल' गाथे। अब्बड़ ओकर मन भाथे।।
[4/11, 7:39 am] Verma Ji:लोकाक्षर 14/8/20
**भारत माता**(चौपाई छंद)
जय -जय-जय हो भारत माता । जय किसान जय भाग्य विधाता।।
धजा तिरंगा के जय-जय हो। नजर परे बैरी मा भय हो।।
जय शहीद बलिदानी मन के। हिंद निवासी जम्मों झन के।।
अजर-अमर हे भारत माता। तहीं हमर अच भाग्य विधाता।।
शांति दूत जग जाहिर गाँधी। जे सुराज के लाइस आँधी।।
बाल-पाल अउ लाल जवाहर। लौह पुरुष सब हवयँ उजागर ।।
जय सुभाष जे फौज बनाइच। आजादी के अलख जगाइच।।
भगत सिंग बिस्मिल गुरु अफजल। गोरा मन के टोरिन नसबल।।
ऊँचा माथ चंद्रशेखर के। गौरव गाथा हे घर घर के।।
रानी लक्ष्मी झाँसी वाली। दुर्गावती लड़िस जस काली ।।
कतको झन हावयँ बलिदानी। उनकर कोनो नइये सानी।।
महराणा वो चेतक वाला। जेन अपन नइ छोड़िच भाला ।।
वीर शिवाजी सुरता आथे। रोम-रोम पुलकित हो जाथे।।
देवभूमि माँ हे कल्यानी। पबरित गंगा जमुना पानी ।।
सेवा मा सब हावय अरपन। भारतवासी के तन मन धन।।
रहिबे छाहित भारत माता ।सरग सहीं सब सुख के दाता ।।
छंद खजाना 14/8/20 लोकाक्षर 30/1/21
[4/11, 7:41 am] Verma Ji: **हरेली तिहार(छन्न पकैया)**
छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन हे मनभावन ।
भोले बाबा के पूजा सँग ,मनै हरेली पावन।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गरवा लोंदी खाथे।
अंडी पाना नून बँधाये, राउत बने खवाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया ,नइ तो धरय बिमारी ।
हे दशमूल दवाई बढ़िया ,खावव सब सँगवारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , चाउँर देवय मइया।
सिंग दुवारी लीम डार ला, खोंचय राउत भइया।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , कारीगर हा आथे।
खीला ठोंक बाँध के घर ला, मान गउन ला पाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, घर घर पूजा होथे।
नागर जूड़ा वाहन बक्खर, ला किसान हा धोथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , मनय तिहार हरेली।
भाँठा मा जब खो खो मातय,खेलयँ सबो सहेली।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, खुड़वा हा मन भाथे।
फेंकत नरियर बेला भरके, कोनो दाँव लगाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बोरा दउँड़ त्रिटंगी।
नौजवान मन डोर इचौला ,खेलयँ जमके संगी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , खेल जमाये पासा।
सकलायें सब गुड़ी सियनहाँ, नइये कहूँ हतासा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, रच रच बाजै गेंड़ी।
नँगत मचयँ जब लइका मन जी,उठा उठा के ऍड़ी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , गेंड़ी महिमा भारी।
द्वापर युग मा पांडव मन हा, चढ़े रहिंन सँगवारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हे रिवाज जी सुग्घर।
हँसी-खुशी सब मना हरेली, चीला खाबो मनभर।।
(Fb, अँगना,खुलामंच ,वक्ता मंच एवं अन्य सभी साहित्यिक ग्रुप 17/7/23)
[4/11, 7:43 am] Verma Ji: **भूख गरीबी हा भागै(सखी छंद)**
भूख गरीबी हा भागै। कहे सुने बर झन लागै।
होवय झन चोरी हारी।करौ बने चौकीदारी ।
खेत चलाथे जिनगानी। मिलै बने बिजली पानी।
देश तभे बढ़ही आगू। मँहगाई रइही काबू।
डाक्टर रहै दवाखाना।रक्षा बर चौकी थाना।
नइ होही कोनो दंगा। रखौ कछेरी ला चंगा।
बिन देवव बगरे काँटा ।सुख सुविधा सबके बाँटा।
जात लड़ाथे दव माटी।लहुटा दव खटिया पाटी।
गुंडा नेता बन जाथे। झगरा ओमन करवाथे।
ए मन ला जब जितवाबो। तब तब जी धोखा खाबो।
जनता अब जागौ जागौ। पाछू कोती मत भागौ।
हक खातिर लड़ना सीखौ। पढ़ लिख के बढ़ना सीखौ।
[4/11, 7:46 am] Verma Ji: **हँस झन पगली**(सखी छंद)
हँस झन पगली पछतावे ।जब तैंहा धोखा खाबे।
तोर सुघर निश्छल हाँसी । बन जाही गर के फाँसी ।
प्यार समझ कोनो लेही।जीना मुश्किल कर देही।
करहूँ कइही वो शादी। नहीं कहे मा बरबादी।
पाछू पर आती जाती।कतको झन लिखहीं पाती।
शायर कस झंडा गाड़े।प्रेम जता के मनमाड़े ।
मोबाइल नम्बर पाके । आनी बानी बतियाके ।
जगा जगा करहीं चारी। खाबे घर बाहिर गारी ।
सोंच समझ ले तैं नोनी। घट जाथे कुछ अनहोनी।
एसिड फेंक जरो देथें। हिरदे काट करो देथें ।
हँसबे झन चलती रस्ता। हाँसी नइये वो सस्ता ।
सहीं जगा मा बगराबे। मोर दुलौरिन सुख पाबे ।
[4/11, 7:47 am] Verma Ji: **गड़ गड़ गड़ गड़**(हाकलि छंद छग)
गड़ गड़ बादर गरजत हे। बाबू हमला बरजत हे।
मोबाइल ला बंद करो। काहत हे झट जेब धरो।
चम चम बिजुरी चमकत हे। घर कुरिया हा झमकत हे।
गाज गिरे कस लागत हे।गरवा हा घर भागत हे।
सर सर सर सर हवा करे। फुलवा कस तो बूँद झरे।
बोहागे धुर्रा कचरा। हरियागे धरती अचरा ।
चिखला माते खोर गली।खेलत लइका हली भली ।
गीत भिंदोल ह गावत हे।राग मल्हार सुनावत हे।
फुरफुंदी अउ बतर किरी।एती वोती उड़यँ फिरी ।
पिटपिट्टी तलमल तइया । बिच्छी मारिच हा दइया।
बिजहा के सिरजाम करे । भइया जपके हरे हरे।
खोजत रँपली ला भउजी।झुँझवाये हे बड़ गउ जी।
सुरताये हे नाँगर हा। बाहन मन के जाँगर हा।
सब ला हड़बड़ हड़बड़ हे ।पिछवाये मा गड़बड़ हे।
चल चलबो अब खेत कती।सुन वो गोई रामबती।
बासी चटनी ला धर ले। जल्दी बूता ला कर ले।
माटी हा ममहावत हे।सब के मन ला भावत हे।
महिना हवय असाड़ लगे ।हमर मया मा हवय पगे ।
[4/11, 7:48 am] Verma Ji: **पानी ला बंचा के **(सोरठा छंद)
राखव एखर मान, पानी है अनमोल जी।
सुन लव देके कान, जल बिन जीवन नइ रहै।
नदिया नरवा ताल, अउँटत है दिन रात जी।
मनखें हें बेचाल, काट डरिन सब पेंड़ ला।
झन टपका तैं बूँद, झोंक झोंक के राख ले।
काबर आँखी मूँद, अपने बैरी हच बनत।
कतको रुपिया फेंक, पानी ला पाबे कहाँ।
रख ले भाई छेंक, बिरथा झन बोहान दे।
वाटर वाटर बोल, देबे नैन बटेर तैं ।
बजा बजा के ढोल, गावत गीत बिकास के।
भूत उतारव**(तामरस छंद छत्तीसगढ़ी)
करत रथे सब गोठ बनाके।
अपन सबो गुन जोंड़ गनाके।
हवय अजी बड़का लबरा वो।
जन जन ला करथे झगरा वो।1
बन भँवरा कस देख कली ला।
दिनभर नापत गाँव गली ला ।
ठग जग लूट करे बड़ चोरी।
बन अगुवा करथे मुँहजोरी।2
अइसन गा झन होवय बेटा।
चलव सुधारव मार चमेटा।
जुरमिल भूत उतारव भाई।
समझव मोर ददा अउ दाई।3
[4/11, 7:50 am] Verma Ji: **गड़ गड़ गड़ गड़(हाकलि छंद छत्तीसगढ़ी)**
गड़ गड़ बादर गरजत हे। बाबू हमला बरजत हे।
मोबाइल ला बंद करो। काहत हे झट जेब धरो।
चम चम बिजुरी चमकत हे। घर कुरिया हा झमकत हे।
गाज गिरे कस लागत हे।गरवा हा घर भागत हे।
सर सर सर सर हवा करे। फुलवा कस तो बूँद झरे।
बोहागे धुर्रा कचरा। हरियागे धरती अचरा।
चिखला माते खोर गली।खेलत लइका हली भली ।
गीत भिंदोल ह गावत हे।राग मल्हार सुनावत हे।
फुरफुंदी अउ बतर किरी।एती वोती उड़यँ फिरी ।
पिटपिट्टी तलमल तइया । बिच्छी मारिच हा दइया।
बिजहा के सिरजाम करे । भइया जपके हरे हरे।
खोजत रँपली ला भउजी।झुँझवाये हे बड़ गउ जी।
सुरताये हे नाँगर हा। बाहन मन के जाँगर हा।
सब ला हड़बड़ हड़बड़ हे ।पिछवाये मा गड़बड़ हे।
चल चलबो अब खेत कती।सुन वो गोई रामबती।
बासी चटनी ला धर ले। जल्दी बूता ला कर ले।
माटी हा ममहावत हे।सब के मन ला भावत हे।
महिना हवय असाड़ लगे ।हमर मया मा हवय पगे।
[4/11, 7:51 am] Verma Ji: **नारी के महिमा**
(त्रिभंगी छंद छत्तीसगढ़ी)
हिरदे मा ममता ,सब बर समता ,अँचरा मा सुख , छाँव रहै।
गुन ला सब गावै, माथ नवावै , जग महतारी , बेद कहै।
ओ हर ए नारी, महिमा भारी , बेटी बहिनी, रूप धरै ।
लाँघन तक रहि के ,विपदा सहि के ,बाँटत कौंरा , दुःख हरै।1
जग ला निक शिक्षा ,अगिन परीक्षा, देथच माता, बखत परे।
दुर्गा बन जाथच, लाश बिछाथस ,काली चंडी, रूप धरे।
सावित्री मइँया ,तैं अनुसुइया , मातु जसोदा, आच तहीं ।
हे विश्व मोहिनी करौं सुमरनी, तैं अबला अच ,नहीं नहीं ।2
[प्रे--8/3/22 fb ,लोकाक्षर, अँगना, खुलामंच)
💐💐💐💐
बिन बरसा (अरविंद सवैया)
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कमती बरसा हर होवत हे धरती जल हा अबड़े गहिराय।
बउली नरवा तरिया नदिया विधवा कस माँग दिखे ग सुखाय।
मरहा खुरहा सब बाँध लगे बड़ फैकटरी मन जी अँटवाय।
मनखे मश चेत करै ग नहीं उरहा धुरहा सब पेड़ कटाय।
जल हे जिनगी के अधार गड़ी बिन एकर होय नहीं निसतार।
भरपेट ग भोजन कोन दिही बरसा बिन खेत किसान लचार।
ठलहा बनिहार कहाँ कुछु काम ग चौपट होय सबो वयपार।
भुतहा कुरिया दिखही दुनिया परही जब मौसम के बड़मार।
17/12/17----3
💐💐💐
जी नइ बाँचय (अरविंद सवैया)
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जुड़हा ग हवा ठुठरावत हे अब जी नइ बाँचय लागत हावय।
कतको कथरी लदके रहिबे बड़ घेक्खर जाड़ तभो ग जनावय।
कुहरा म ढँकाय रथे बिहना अउ बादर ओंट सुरूज लुकावय।
चिटको अंँगना नइ आवत हे कतको झन घाम बुजा ल बलावय।
सिपचावव जी लकड़ी खरसी झट फूँकव जी कउड़ा ल दगावव।
लमिया अब हाथ ल सेंकव जी तन आँच परे बढ़िया सुख पावव।
लइका मन थोकुन दूर हटौ तिर मा बइठे झन तो इँतरावव।
छटके लुक हा चट ले जरथे पहिरे कपड़ा ल सकेल बँचावव।
(19/12 17-----3)
मूँड़ी उठाके
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(मंदारमाला सवैया)
मूँड़ी उठाके जिवौं जी धरे धर्म ईमान आगी म संगी तपौ।
बैरी अंहकार ला दूरिहाके भलाई कमाई करे मा खपौ।
कोरा हवै स्वर्ग माँ भारती के पतंगा बनौ भक्ति लौ मा खपौ।
संसार ले पार होना हवै गा सिया राम के नाम भाई जपौ।
25/12/17----3
खेती किसानी
(मंदारमाला)
खेती किसानी करै कोन जी बेटवा हा करै नौकरी चाकरी।
दाई ददा के सिराती हवे घाम पानी सहे जिंदगानी सरी।
पैठू परे काँद दूबी भरे ओगरा मेंड़ फूटे ग होथे चरी।
लेवै नहीं रेगहा खेत कोनो सबो चाहथें जी रहैं वो बरी।
1/1/18----3
पहुना(कुंडलिया)
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होली के दिन आय हव, पहुना हे श्रीमान।
हमरो ए परिवार के,बाढ़िस अब्बड़ शान।
बाढ़िस अब्बड़ शान, भेंट हम का दे पाबो।
श्रद्धा के हे भाव, मया के रंग लगाबो।
भावय चोवाराम,आप के मीठा बोली।
कालो आप आप, खेलबो जम के होली।
2/3/18---3
होली के दोहे
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छंद बंद बेहाल हे,माते मन मोहाय।
तैं बसंत बढ़िया करे, होली ला ले आय।।
होरी कस जी कोन हे,सब ला करै जवान।
एक रंग मा जी रँगै,का गरीब धनवान।।
हाथ पकड़ के गाल मा,भइया रंग लगाय।
छोंड़़व जी भउजी कहै,नवा नवेलिन ताय।।
धोबी के कुत्ता सहीं, प्रेमी के हे हाल।
दिनभर वो जोहत हवै,मुँह पोंछत उरमाल।
पहिरे लुगरा पोलखा,जुन्ना छाँट निमार।
जोही खेलत फाग हे,नैना हे मतवार।।
उरभट रस्ता ल देखाके( सार छंद मा गीत)
उरभट रसता ला देखाके , भटकइया कतको हे।
अपन पिछू मा तिरियाके जी , लड़वइया कतको हे।
जात पाँत के धरे झोलना ,राजनीति झोलत हे।
सूपा हा चूपेचाप हावय, चलनी हा बोलत हे।
भुँखहा के मुँह के कौंरा , सब झटको झटको हे।अपन-
कँउवा बर मोती माढ़े ,हंसा खावय दाना।
लूट डरत हें सिधवा मन ला, बना बना के हाना।
मीठ बात लबरा मन के जी, सब गटको गटको हे।अपन -
सावचेत सब राहव भाई, मितवा ला पहिचानव।
भाई नइतो बैरी होवय, हितवा ओला जानव।
तोला मोला ग टोरवा के, उन टरको टरको हे। अपन--
💐💐💐💐💐
नवरात्रि परब (शंकर छंद)
चइत मास के पाख अँजोरी, जोत भगत जलाय।
आदि शक्ति दुर्गा मइया ला ,विनय अपन सुनाय।
एकम तिथि हावय बड़ पावन ,शक्ति के अवतार ।
आजे के दिन ब्रह्मा जी हा, रचे हे संसार। (1)
सीतापति श्रीराम सम्हालिच, अयोध्या के राज ।
रामराज के डंका बाजिस , उही दिन हे आज।
द्वापर युग में धर्मराज हा, धरम धजा उठाय ।
राजा बन बइठिच गद्दी मा, कृष्ण के बल पाय।2
हिंदू बरस शुरु होवत हे, हवय चेटी चंद।
आज गुड़ी पड़वा ल मनाबो, टोर माया फंद।
लीप दुवारी चँउक सजाबो, दिया रिगबिग बार।
दया माया धर अंबे आही, सुने हमर पुकार ।3
नवा साल के पहिली दिन हे, मन म भरे उमंग।
गावत हावय सारस मैना, कोइली के संग।
उलहोये हे पीपर पाना, लीम गद हरियाय ।
नवा नवा सब कोती दिखथे, नवा रंग सुहाय।4
महमाया के पूजा करबो , पान फूल चढ़ाय ।
सुमर सुमर के झूमर झूमर , गीत जस के गाय।
घी के दियना जोत जलाबो ,हवय जी नवरात।
अन धन सदा भरे रइही गा , किरपा ला बरसात ।5
[4/11, 7:54 am] Verma Ji: **होली हे**(कुकुभ छंद)
होली हे होली हे होली, बोलव जी मीठा बोली।
फाग गुड़ी मा माते हावय, नाचौ जम्मों हमजोली।
झाँझ मँजीरा हावय बाजत,घिड़़कत हे आज नँगारा ।
रंग गुलाल उड़ावत हें लइका, घूमत हें आरा पारा ।1
भौंरा गुनगुन गावत हावय,मारतहे कोयल कुहकी ।
माते हावय परसा आमा, माते हे मउँहा गउकी।
पुरवइया बड़ मँमहावत हे,रुखवा पीपर हरियागे।
मोंह डरे हे फागुन राजा, बाग बगइचा मोंहागे।2
कुरता पटकू ला भींजन दव, भींजन दव लुगरा चोली ।
मेंछा टेंवय बबा सियनहा, भौजी हा करय ठिठोली ।
का राखे हे ए जिनगी मा ,झूमौ थोकुन मस्ती मा ।
हँसी खुशी के बादर छावय, हमरो पावन बस्ती मा ।3
श्वांसा पंछी उड़ जाही तब, लहुट दुबारा नइ आही।
माटी के काया माटी मा, माटी होके मिल जाही ।
तउँर तउँर के चलौ नँहाबो, दया मया के तरिया मा ।
बैर भाव के कूड़ा कचरा, जोर बार दव परिया मा ।4
लोकाक्षर 7/3/2021
🎂🎂🎂🎂
पुलवामा के शहीद मन ला श्रद्धांजलि
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मारत हे आतंक हा, देखत हन भकवाय ।
कतका सहिबो हम जुलुम, देथें लाश बिछाय।
देथें लाश बिछाय, हाथ ला मलते रहिथन।
लेबो बदला मार , ओतके भर तो कहिथन।
छप्पन इंची जाग, देख माँ हवय पुकारत ।
देखय पाकिस्तान , घूस जा मारत मारत ।1
रोवत हावय आतमा, मरगें वीर जवान।
पाप घड़ा आतंक के ,भरगे हे भगवान ।
भरगे हे भगवान , पाक हावय बड़ बैरी ।
देखत हे संसार, मतावत हे वो गैरी ।
होगे हे अंधेर , देर भारी हे होवत ।
घर भीतर हे साँप , देख के हम हन रोवत ।2
सेना के जे वीर मन, दे हावयँ बलिदान ।
श्रद्धांजलि अर्पित हवय, अमर करै भगवान।
अमर करै भगवान, खून बिरथा नइ जावय।
दुखी सबो परिवार, देश के जनता हावय ।
बदला लेहीं मार, टोर बैरी के डेना ।
नइये जी कमजोर , आज भारत के सेना ।3
[2/8/2018, 7:36 pm] Verma Ji: आज छंद खजाना म चोवा राम "बादल " के घनाक्षरी छंद
नवटप्पा के मार (मनहरण घनाक्षरी)
ताते तात झाँझ झोला , लेसावत हावै चोला,
जेठ लगे नवटप्पा ,भारी इँतरात हे।
सुक्खा कुआँ तरिया हे, मरे मरे झिरिया हे,
बोरिंग हा ठाढ़े ठाढ़े , रोज्जे दुबरात हे।
रोवत हें रुखराई, नदिया के मुँह झाँई,
धरती के देख देख, जीवरा करलात हे।
ईंटा भट्ठी आवा कस, भँभकत जग हावै,
भात बासी नइ भावै ,धूँकनी सुहात हे ।1।
बूँद बूँद पानी बर, लोगन बेहाल हावैं,
तरस तरस पशु , तजत परान हें ।
भाँय भाँय खेत खार, सुन्ना लागे घर द्वार ,
धरे रोग माँदी दाबे, सब हलकान हें।
धमका धमक आगे, हवा देख उठ भागे,
भोंभरा मा पाँव जरे, जरे मुँह कान हें।
वो असाड़ कब आही, जेन जीव ला बँचाही,
लागथे अबड़ संगी, रुठे भगवान हें ।2।
सा सं 31/5/21
ममहाबे (जलहरण घनाक्षरी)
ममहाबे चारों खूँट, होही भाई तोरो पूछ,
जिनगी सँवर जाही, उदबत्ती कस खप ।
पक्का बन जबान के, संग चल ईमान के,
काबर कच्चा कान के, छोंड़ देना लपझप ।
मिहनत कर संगी, नइ राहै कभू तंगी,
उदाबादी झन कर, इही आय बड़े तप।
भुईयाँ ल सिंगार के, पसीना ल ओगार के,
भाईचारा बाँट लेना , प्रेम मंत्र माला जप ।
चंदा देख लजाय ( रूप घनाक्षरी )
खन खन खन खन, चूरी निक खनकय ,
माथा बिंदी चमकय , चंदा देखत लजाय ।
मेंहदी हँथेरी रचे, गर हार बने फभे,
कनिहा मा करधन, हावै गहना लदाय ।
होंठ लगे मुँहरंगी , कोरे गाँथे करे कंघी ,
फूँदरा झूलय बेनी, पाँव माँहुर रचाय ।
गोरी मोटियारी हावै, मुचमुच मुसकावै,
रहि रहि शर्मावय, रेंगै नयन झुकाय ।
[9/8/2018, 10:04 am] Verma Ji: चोवा राम "बादल " के छन्न पकैया छंद
सावन के झड़ी
छन्न पकैया छन्न पकैया ,चिखला हावय माते।
पानी छान कुँआ के पीबो ,भोजन जेंबो ताते ।1।
छन्न पकैया छन्न पकैया , नाखा बाँधे जाहूँ ।
रँपली दे नोनी के दाई , धार बरो के आहूँ ।2।
छन्न पकैया छन्न पकैया , भारी गिरगे पानी ।
नाँगर बख्खर ठलहा होगे, अटके परे किसानी ।3।
छन्न पकैया छन्न पकैया , लइका बरजे मानौ ।
पानी मा बाहिर झन खेलौ, सर्दी धरही जानौ ।4।
छन्न पकैया छन्न पकैया , नदिया पूरा आगे ।
सरलग सावन झड़ी लगे हे , घर कुरिया बोहागे । 5।
छन्न पकैया छन्न पकैया , पिहरी हावय फूटे ।
देख ताक के इँचबे संगी ,रट ले जी झन टूटे ।6।
छन्न पकैया छन्न पकैया ,झड़ी लगे हे जम के।
गड़ गड़ गड़ गर्जत हे बादर , बिजुरी चम चम चमके ।7।
छन्न पकैया छन्न पकैया , कामा आबे जाबे ।
बंद हवय मोटर गाड़ी सब , तीजा इहें मनाबे ।8।
लोकाक्षर 25/7/20
J चोवा राम "बादल " के लावणी छंद
मेला जाबो
छन्न पकैया छन्न पकैया , धान पान सकलागे ।
राजिम सिरपुर खल्लारी मा , मेला तको भरागे ।1।
छन्न पकैया छन्न पकैया , चल ना मेला जाबो ।
करके गंगा स्नान हमूँ मन, भाग अपन सँहराबो ।2।
छन्न पकैया छन्न पकैया , मंदिर माँथ नवाबो ।
दर्शन करके शिव शंभू के , नरियर फूल चढ़ाबो ।3।
छन्न पकैया छन्न पकैया , घूम घाम के आबो ।
सउँख हवय गहना पहिने के , सुग्घर उहें बिसाबो ।4।
छन्न पकैया छन्न पकैया , नोनी हवय रिसाये ।
ले देबो सलवार शूट ला , जइसन वोला भाये ।5।
छन्न पकैया छन्न पकैया , बाबू संगे जाही ।
फुग्गा चश्मा कार खिलौना , छाँट छाँट लेवाही ।6।
छन्न पकैया छन्न पकैया , लेबो खई खजेना ।
तोरो बर तो कपड़ा लत्ता , हाबय हम ला लेना । 7।
छन्न पकैया छन्न पकैया , जाथें पारा भरके ।
खर्चा ला हम नइ डर्रावन , जाबो राशन धर के।8 ।(लोकाक्षर 19/9/20)
कुण्डलिया
पउवा पउवा गोंदली, सँग सलाद मा खाय।
होत बिहनिया साँझ कुन,दू पउवा ढरकाय ।
दू पउवा ढरकाय, भाव तब कहाँ जनाथे।
वाह गोंदली नाच , नशा हा जब चढ़ जाथे।
हप्ता भर झन खाव, सही मा भइया दउवा ।
उतर जही सब दाम, चढ़ा झन एको पउवा।
काकर सब गोदाम मा, भरे हवय जी प्याज।
खोज खोज सरकार हा, छापा मारय आज।
छापा मारय आज, भाव पट ले गिर जाही।
धुँगिया देवय छोंड़, निकल मुसुवा कस आही।
मोठ तुतारी कोंच, कउद तब होही चाकर।
बढ़े गोंदली दाम, फायदा होथे काकर।
चोवा राम 'बादल '(छंद के छ17/12/19) लोकाक्षर 24/1/20
कुण्डलिया
पूरे हे उन्नीस हा, देवी जइसे रूप।
पूजा वंदन हन करत, हूम जला के धूप।
हूम जला के धूप, भूप हे छत्तीसगढ़िया ।
सबो हवन खुशहाल, शांति छाए हे बढ़िया।
झोंकौ जै जोहार, मीठ तसमइ हे चूरे।
बने राज उन्नीस, साल हावय गा पूरे।।
पावन राजिम धाम हे, सोनाखान मल्हार।
अलख जगै सतनाम के ,हे गिरौद भंडार ।
हे गिरौदभंडार, रतनपुर मा महमाई ।
डोंगरगढ़ मा सिद्ध, विराजे माँ बमलाई ।
सिरपुर देखे देव, चलो जी भाग जगावन ।
भोले भोरमदेव ,चढ़ा जल दर्शन पावन ।
चोवा राम 'बादल '
हथबन्द (छग)(सुरता 28/12/19)
*नववर्ष*
चौपाई छंद--चोवा राम 'बादल'
नवा साल के हवय बधाई। छाहित राहय सारद माई।।
धन दौलत सुख सेहत पावव। फूल सहीं हरदम मुस्कावव।।
कलम बनै जी सबके हितवा। गिरे परे के खाँटी मितवा।।
कालजई साहित सिरजावव। भारत माँ के जस बगरावव।।
नवा साल मा अइसे ठानौ। गाँव शहर खुशहाली लानौ।।
करम फसल हो सोला आना।पोठ रहय सब दाना दाना ।।
रद्दा के काँटा बिन लेहू। अउ सपाट गड्ढा कर देहू।।
मातु पिता गुरु मन सुख पाहीं। आसिस के फुलवा बरसाहीं।।
नवा साल के सुरुज नवा हे। नवा बिहनिया नवा हवा हे।।
नवा इरादा ठानौ भाई। माँजौ हिरदे फेंकौ काई।।
चलौ बाँटबो भाईचारा। हवय नेवता झारा झारा।।
अलख प्रेम के चलौ जगाबो। असली मनखे तब बन पाबो।।
जात पाँत के आँट ढहाके। सबो धरम के मान बढ़ाके।।
देश प्रेम के भाव जगाबो। चलौ तिरंगा ला फहराबो।।
आलस बैरी ले दुरिहाके।मिहनत के हम जोत जलाके।।
गार पसीना रोटी खाबो।जिनगी मा उजियारा लाबो।।
साल बीस हा खड़े दुवारी। हैप्पी काहत हे सँगवारी।।
हमरो कोती ले न्यू ईयर।गाड़ा गाड़ा हैप्पी डियर।।
(छंद खजाना--1/1/2020)
**दोहा दुमछल्ला**
जाड़ा लेके आय हे, अंग्रेजी नव वर्ष।
नाचत हे देशी चढ़ा, देखव बेटा हर्ष।।
पर्स हा होगे खाली।
पियाही कोन ह काली।
खाना पीना नाचना, अब तिहार पहिचान।
चढ़ बइठे हे मूँड़ मा, पश्चिम के शैतान।।
गरीबी खड़े दुवारी।
संग मा हे लाचारी।
परबुधिया के शान हा, बाढ़े हाबय आज।
कभू अपन संस्कार मा, करतिच अइसन नाज।।
गुलामी हावय जकड़े।
घेंच ला कसके पकड़े।
खुश होना नइये मना, असली हो आनंद।
बेढंगा सब चाल हा, होना चाही बंद।।
मनै रोज्जे देवारी।
ईद क्रिसमस सँगवारी ।
चोवा राम 'बादल '
हथबन्द, छत्तीसगढ़( फे बु 2/1/2020)
सरस्वती वंदना
(भोजली तर्ज मा)
जय हो सरसती मैया।
जय हो सरस्वती मैया ।
सरसती मैया मोरे ज्ञान के देवैया।
नाने नान बालक दाई परे हाबन पइयाँ। जय हो सरस्वती मैया ।
सादा रंग ओढ़ना हे
सादा रंग फुलवा।
सादा रंग गर माला,
काने कुंडल झुलवा।।
जय हो सरस्वती मैया।।
रिसी मुनि देव दावन,
हाथे जोरे रहिथें।
ब्रह्मा विष्णु भोले जी हा,
तोरे जस कहिथें।
जय हो सरस्वती मैया।
हंसा के सवारी हाबय,
बीना धरे आबे।
जिभिया मा बइठे,
भूले बिसरे बताबे।
जय हो सरस्वती मैया।
तोरे गुन ला गा के दाई,
कई झन तरगें ।
गोहरावत हाबन सबो,
दया मया करबे ।
जय हो सरस्वती मैया।(5/11/19 अमित)
दोहा दुमछल्ला
दिखत हवय घपटे बने, खेत खार अउ मेंड़।
नोहय जी राहेर वो, आय चरौंटा पेंड़।
नँदावत हे ओनहारी।
चरी होथे जी भारी।।
कहिथे गा शिक्षित बहू, गोबर हा बस्साय।
नइ समझय कतको बता, उम्दा खातू आय।।
गैस आगे सँगवारी ।
नँदागे खरही बारी ।।
(21/12/19/fb)
कुण्डलिया
भाई ले भाई लड़त, सास बहू मा जंग।
निर्वाचन पंचायती, , नाता सब बदरंग।
नाता सब बदरंग, कका सँग भिंडे भतीजा।
हाबय गाँव अशांत, भुगतही कोन नतीजा।
होवत धन बर्बाद, नशा छाये नेताई।
निर्विरोध चुन लेव, लड़व झन तुमन भाई।1
हारिन कुकरा बाँट के, कतको इहाँ चुनाव।
दू कौड़ी के नइ रहय, तिंकर पाछू भाव।
तिंकर पाछू भाव, कुकुरगत होके रहिथे।
तिड़ी बिड़ी परिवार, दुःख बाई हा सहिथे।
बेंचा जाथे खेत, चलौ जी कंझट टारिन।
अइसन पेल ढपेल ,खेलके काबर हारिन।2
चोवा राम 'बादल '
हथबन्द ,छत्तीसगढ़(छंद के छ 12/1/20)
मकर संक्रांति
(उल्लाला छंद)
हाबय आज तिहार जी, पोंगल अउ सक्रांति के ।
सब ला हे शुभकामना, शुभ होवय सब भांति के ।।
आज पहागे रात हा, जागे हावयँ देव सब।
रुके सबो शुभ काज के,फेर धरागे नेंव अब।।
तीली गुड़ के दान हे, पबरित संगम स्नान हे।
समे अबड़ फुरमान हे, मानत सकल जहान हे।।
देव सुरुज हा आज ले, उतरायण में आय हे।
महभारत में भीष्म हा, महिमा अबड़ बताय हे।।
तीली लाडू रेवड़ी, खावव भाई बाँट के ।माघी मेला हे भरे , करलव सौदा छाँट के।।
संगम तीर्थ प्रयाग हे, पबरित गंगा स्नान जी। हिरदे फरियर लागथे, करके सुग्घर दान जी।।
दिन हा तिल तिल बाढ़थे, घटथे थोकुँन रात जी।
कमती लगथे जाड़ हा ,तरिया नदी नँहात जी।।
मन पतंग के डोर ला, थाम बने उड़वाव जी।
बखत परे मा खींच लौ, जादा झन लहराव जी।।
फसल पके जब खेत मा, पोंगल तिल सक्रांति हे।
सुरुज बिना जीवन कहाँ, एकर ले सुख शांति हे।।
वेद शास्त्र मा तो हवय ,कथा मकर सक्रांति के।
गंगासागर स्नान के, शनिदेव के शांति के।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द ,छत्तीसगढ़(छंद के छfb 15/12/19)
निश्छल छंद
दोष कुआँ ला प्यासा देही, नोहय न्याय।
भोजन करे बिना जी नइतो, भूख बुझाय।।
नदिया तजही मर्यादा ला, आही बाढ़।
फसल खेत के चौपट होही, रेती माढ़।।
कहाँ समर्पण स्वारथ मा हे, देख विचार।
लकड़ी मा का सबो पेंड के, रहिथे सार।।
कउवाँ अउ कोयल के दिखथे, एक्के रंग।
काँछ घलो तउला जाथे गा, हीरा संग।।
सौ चंदैनी ले आगर हे, एके चाँद।
तुलसी कभ्भू बन नइ पावय, दूबी काँद।।
एक बरोबर पाँचो अँगरी, नइतो होय।
जादा आशा जेन पालथे, मुँड़ धर रोय।।
चोवा राम 'बादल '(गुरुदेव ,भाग2 15/1/20)
पद्धरि छंद
हे नारी बड़ गुन के खदान ।
झन ओला जी कमजोर मान।।
जे करथें हत्या भ्रूण मार।
वो पापी जाहीं नर्क द्वार।।
तैं बेटा बेटी एक जान।।
हे दूनों मा एके परान।।
तब करथें काबरँ भेद भाव।
पुत लकठा पुत्री सँग दुराव।।
घर के धरखँध नारी अधार।
वो सावन के रिमझिम फुहार।।
मन ले जेकर झरथे पिरीत।
माँ गंगा कस पावन पुनीत।।
चोवा राम 'बादल '(गुरुदेव भाग2, 16/1/20)
श्रृंगार छंद
अरे मन धरले ना तैं धीर।
भरोसा कर खाबे तैं खीर।
रात के पाछू हावय भोर।
उही ला थोकुन बइठ अगोर।
बहुरथे घुरवा के जी भाग।
बुझाथे जंगल फइले आग।
कभू तो काँटा गड़थे पाँव।
घाम मा जीव जुड़ाथे छाँव।
कृपा गुरु के जब हाबय संग।
राह ना त्याग फिकर ला चंग।
ज्ञान के थाती लेना जोर।
उघारे अंतस नैना तोर।
चोवा राम 'बादल '(गुरुदेव भाग2, 18/1/20)
सार छंद--चोवा राम 'बादल'
हिरदे भीतर परगे हावय,
देखव संगी छाला।
हाय गरीबी बैरी होगे,
आँखी छागे जाला।।
जाँगर टोर कमाथन कतको,
मिलय नहीं जी पसिया।
मार डरत हे मँहगाई हा,
घेंच दँता के हसिया ।।
नेता मन सब घूम घूम के,
करते रहिथें वादा।
झोरत हें उन आनीं बानीं,
छोंड़ हमर बर खादा ।।
बनत योजना सरकारी हे, रंग
रंग के भारी।
धन खुसरत हे बड़का मन
घर ,सुन्ना हमर दुआरी ।।
काकर आगू रोवन
गावन ,दुःख सुनावन काला।
भैरा हे सरकार निचट
गा ,बइठे पहिरे माला।।
शिक्षा के हथियार उबा
के,हम तो कइसे लड़बो।
सुन के फीस छाय बेहोशी,
काला बेंचे भरबो ।।
सेठ सकेले भरे खजाना,
चपके भर्री धनहा ।
पथरा पटकत हमरे छाती,
साहत हवन किसनहा।।
मिलजुल के सब लड़बो
भाई, तभे पार ला पाबो।
हक ला अपन झटकबो जब जी,
तब दू कौंरा खाबो।।
छंदकार--चोवा राम 'बादल'
हथबन्द,बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
(प्रे-लोकाक्षर 5/12/20)
*मन फिफियाथे*
(पद पादाकुलक छंद)
बूता काम म मन फिफियाथे।
काहीं के काहीं हो जाथे।
हो जाथे काबर ते आने ।
एती ओती मति हा ताने।
पेरे लकर धकर के घानी।
आधा तेल म आधा पानी।
होथे अब्बड़ हड़बड़ हइया।
खलबल खइया गड़बड़ गइया।
माया हा जतका तिरियाथे।
काया मा झट असर बताथे।
सुरता लाड़ू छिर्री दिर्री।
खेलत रहिथे चेत ह भिर्री।
एला ओला अमरत रहिथे।
अँधवा कस मन तमड़त रहिथे।
पाथे कभू कभू तो खाली।
गिर जाथे वो हपटे नाली।
नइ मानय बड़ उधम मचाथे।
जेती बरज उही लँग जाथे।
जब किरपा करथे रघुराई।
तब सब रोग मिटाथे भाई।
गुरु बइगा के मंतर मारे।
घेरी बेरी कस के झारे।
हिरदे के तब जहर उतरथे।
सोना जइसे ज्ञान निखरथे।
(छंद के छ 20-- 29/1/20)
लोकाक्षर 22/1/22
🙏
गोपी छंद
शून्य कस जिनगी हो जावै।
जुड़े पाछू मान बढ़ावै।
संग वो देवय सच्चा के।
भाव जस छोटे बच्चा के।
नवै सिर गुरु मातु चरन मा।
टिके राहय अपन परन मा।
दुखी ला ढाढ़स बँधवावै।
नेक रसता चलै चलावै।
गिरे ला तो तुरत उठाके।
मीठ भाखा मा बतियाके।
हरै वो सबके दुख पीड़ा।
झोंक लेवय सेवा के बीड़ा।
काम परके आवै चोला।
भले राहवँ मूरख भोला।
कृपा कर दे हे रघुराई।
गोहरावत हौं महमाई।
(छंद के छ20 30/1/20)
पियूषवर्षी छंद।
खेल बढ़िया खेल ,जिनगी खेल ए।
ले मजा चढ़ घूम ,ए हा रेल ए।।
कोन देही संग, रद्दा बाट मा।
बोर देही कोन, दुख के घाट मा।
जाँच करना त्याग, तैं दिन रात जी ।
थोरकुन हे फूल, काँटा घात जी।।
मस्त अपने आप, हच तब जान ले।
पार जिनगी नाव, होही शान ले।।
मेहनत मा रंग, आलस छोड़ के।
फेंक चिंता जोर, जर ले कोड़ के।।
चोवा राम "बादल"(छंद के छ20)
पियूषवर्षी छंद
हे गिरत अबड़ेच, पानी बाय हे।
मात गेहे खोर ,बड़ चिखलाय हे।।
किनकिनाथे दाँत, जम्मो हाड़ हा।
हे तपत अतलंग, काबर जाड़ हा ।।
लोग बइठें लाद, कथरी गोदरी।
गोरसी सुलगाय, खटिया के तरी।।
कान मा कनटोप , स्वेटर साल हे।
घेपही का ठंड, आये काल हे।।
रंग फागुन तोर, सब बदरंग हे।
कोयली चुपचाप, भँवरा दंग हे।।
मान होगे भंग,सब ऋतुराज के।
दिन लगत हे रात, कइसे आज के।।
चोवा राम 'बादल'(छंद के छ20)6/2/20
आनन्दवर्धक छंद
बाँट झन इंसान ला, जयजाद कस।
रख बँचा इंसानियत, मरजाद कस।।
नाम बस के फेर, बाँकी एक हे।
ईशु नानक राम अल्ला, नेक हे।।
देश हा कमजोर होथे, भेद मा।
फूट जाथे बाँध, छोटे छेद मा।।
हे उँहे ताकत,जिहाँ तो मेल हे।
एकला चलथे ,उही हा फेल हे।।
आन मन ,चारी सुने जी हाँसथें ।
डार चारा, जाल मा उन फाँसथें।।
स्वार्थ के पट्टी चढ़ा, अँधरा बने।
मूँड़ भरसा वो गिरे, गड्ढा खने।।
आदमी जे चाल, शकुनी कस चलय।
दाल ओकर युद्ध मा, नइतो गलय।।
चोवा राम 'बादल '(छंद के छ20 )
7/2/20
सुगति छंद(शुभगति छंद)
भज राम ला।घनश्याम ला।।
हरि बोल के। दिल खोल के।।
सब पाप हा।मन ताप हा।
सुमिरन करे।तुरते टरे।।
बिंसवास हे। आभास हे।।
कर सद करम। होही धरम।।
पर के झपट।झन कर कपट।
लालच करे।माँछी मरे।।
तैं जान ले।पहिचान ले।।
दाई ददा। हितवा सदा।।
सेवा करे।मेवा धरे।।
पुन के अपन। ले जोर धन।।
नइतो थमे।आथे समे।।
झन कर अहम। जाबे सहम।।
सब शान हा। पद मान हा।।
दिन चार के। बिन सार के।।
धर हाथ मा। का साथ मा ।।
दुच्छा अरे। जाबे मरे।।
चोवा राम 'बादल '
(छंद के छ20 12/2/20)
छबि छंद(मधुभार)
छबि छंद(मधुभार)
होथे ग भार। झन कर उधार।।
ले बेंच धान। पइसा ल लान।।
पंडित बलाय।पूजा कराय।।
जोखा मढ़ाय।मड़वा छवाय।।
माढ़े बिहाव।कर ले हियाव।।
लेडर समान ।सुन खोल कान।।
बहिनी दमाद। करबेच याद।।
जोंड़े पिरीत ।सकलाय मीत।।
कपड़ा बिसाय ।आँटा पिसाय।।
गुड़ नून तेल। जल्दी सकेल।।
चाउँर निमार। दरवा ग दार।।
होही बिहाव ।गहना बिसाव।।
चोवा राम 'बादल '(छंद के छ 20 ,19/2/20)
छबि छंद
हाबच अमीर।या हच फकीर।।
जप राम राम।कर नेक काम।।
पर दुःख देख।लउहा सरेख।।
जे हें गरीब।राहयँ करीब।।
लइका दुलार। ममता मिंझार।।
दे पढ़ा लिखा।अउ राह दिखा।।
बगरा अँजोर। सब ओर छोर।।
तज भेदभाव।मन के दुराव।।
पारा पड़ोस। तैं बाँट जोस।।
आवै बहार। सबके दुवार।।
खुशहाल देश। भागै कलेश।।
कर ले विचार। हे इही सार।।
(छंद के छ 20, 20/2/20)
गंग छंद
मौन रहि जाबे। सुख चैन पाबे।।
बोली जुझोथे।लड़ाई होथे।।
ठेसरा मारे। अउ नइ सारे।।
अब्बड़ पिराथे।याद जब आथे।।
हाँसी ठिठोली। कभू जस गोली।।
छेदै करेजा। बिगाड़े भेजा।।
आन के चारी।दोष ए भारी।।
आगी लगाथे। घर टोरवाथे ।।
घात ओसाबे। फोकला पाबे।।
तउँरे म जादा। बूड़बे दादा ।।
फोकट लमाके। बोले जताके।।
मान घट जाही।दुःख पहुँचाही ।।
चोवा राम 'बादल '(25/2/20, छंद के छंद 20)
गंग छंद
परीक्षा आगे।अबड़ लकठागे।।
सुन मोर भाई। कर ले पढ़ाई।।
नँगत ले खाबे।कहाँ जग पाबे।।
देंह अलसाही। माथा पिराही।।
भजिया समोसा। ठीक नइये दोसा।।
तेलहा खाबे।तहाँ पछताबे।।
उठके बिहानी। पी चाय पानी।।
सुग्घर नहाँके।पढ़ मन लगाके।।
ददा अउ दाई। चाहैं भलाई।।
अउव्वल आबे। नौकरी पाबे।।
शारदा माता।ज्ञान के दाता।।
दया बरसाही। बिगड़ी बनाही।।
भय ला भगा ले। साहस जगा ले।।
मेरिट म आबे। खुशी बड़ पाबे।।
चोवा राम 'बादल '(छ छ20,25/2/20)
दीप छंद
हवय अदभुत खेल। जिहाँ बिछड़न मेल।।
घाम हवय त छाँव । काँटा गड़य पाँव ।।
कहूँ बरसय फूल। धुर्रा ल झन भूल।।
जेने करय मान।उही कतरय कान।।
हंस निरबल आज। काग पहिरय ताज।।
बने बड़ हुशियार।मिलैं निचट लबार।।
जे हवय धनवान। हे आज भगवान।।
खावै हक ल मार। तउने ल पदभार।।
बिसर धरम गियान। दुष्ट गढ़य विधान।।
न्याय हवय लचार।रोज बिकय बजार।।
दूध जहर मिंझार। जे करय बैपार।
लेबे ग पहिचान।बचा अपन परान।।
काँटा कठिन राह।मिलथे दुख अथाह।।
मन म रख बिंसवास। होही विघन नास।।
चोवा राम 'बादल '(छंद के छ20 21/3/20)
छंद के छ परिवार डहर ले जन जागरण
कर्फ्यू---सविनय सन्देश
----------------------------------
(सार छंद)
गले लगाहू झन कोनो ला,कोरोना के डर मा।
चुपेचाप जी समे बिताहू, दिनभरहा सब घर मा।।
पाँव परव झन हाथ जोड़ के, नमस्कार कर लेहू।
भींड़ भाड़ मा आना जाना, बंद सबो कर देहू।।
पास पास मा बइठ बइठ के, मुँह जोरे बतियाना।
मँहगा पर जाही रे भाई,परही बड़ पछताना।।
नाक बोहावत जर मा काँपत, कोनो मनखे दिखही।
तुरत बतावव अस्पताल मा, नाम पता सब लिखही।।
कोरोना हा बड़ घातक हे, फइल जथे महमारी ।
लइका छउवा बुढ़वा मन के, करव बने रखवारी।।
हाथ गोड़ ला धोवत राहव, साबुन बने लगाके।
खटिया मा झन परहू कोनो, अदर कचर ला खाके।।
घर दुवार के साफ सफाई, अँगना खोर बहारव।
साफ बने नाली ला करके , रोज दवा गा डारव।।
जनता कर्फ्यू काली हावय, हम सब करबो पालन।
हमर इही मा हवय भलाई, कोनो ला नइ घालन।।
ककरो जी भभकी मा आके, घर ले बाहिर झन जाहू।
देश प्रेम के अलख जगाके, जन जन ला समझाहू।।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द,छत्तीसगढ़
(छंद के छ परिवार )(fb21/3/20)
*पुनीत छंद*
रघुपति राघव राजा राम।
दशरथ नंदन जै सुखधाम।
सीतापति जै जै रघुवीर।
करुणा सागर जै गंभीर।
तहीं रचे हच ए संसार ।
तहीं लगाथच भव ले पार।
वेद बखानैं महिमा तोर।
तीन लोक मा होथे शोर।
पापी करथें अत्याचार।
मात जथे जब हाहाकार।
निशचर मन ला तब संघार।
हरथच हरि धरती के भार ।
खड़े हववँ मैं जोरे हाथ ।
कृपा करव प्रभु हे रघुनाथ ।
चरण कमल मा प्रभुजी तोर।
नवे रहय माथा हा मोर।
(छंद के छ fb)
[09/04, 9:30 pm] Verma Ji: *संशोधित*
*शिव छंद*
नाम हे बड़े बड़े। लूटथें खड़े खड़े।।
घर अपन भरे हवैं। पाप बड़ करे हवैं।।
लूट लूट देश ला। लान दिन कलेश ला।।
कपट बात बात मा।चतुर हवयँ घात मा।।
लोग ला जुझाय बर।भेद ला बढ़ाय बर।।
चाल उन चलत रथें।जाल ला बुनत रथें।।
आड़ धर्म ला बना । खोंट आन मा गना ।।
पीठ आड़ भूँकथें। बार बार थूँकथें।।
एक दिन किरा जहीं।तब कहूँ थिरा जहीं।
जब गरीब जागहीं। तब डकैत भागहीं।।
चोवा राम 'बादल '9/4/20छंद के छ 20
शिव छंद
-----------------
टूट जहय हाथ हा। फूट जहय माथ हा।।
मार धाड़ साह झन। मुँड़ नवा ग राह झन ।।
साँच बोल देख ले । मोल खुद सरेख ले।
आँच साँच ला कहाँ। काह झन कभू अहाँ।।
साँप ह फुफकार करै। मार खाय या मरै ।।
स्वाभिमान हा रहै। बाँच शान हा रहै।।
मन तहूँ ह खोल ले। अउ बने ग तोल ले ।।
छोड़ न इरखा करे। रोज जहर ला भरे ।।
देश हे त सब हवन। खेत खार ए भवन।।
गोठ सोझ सोझ हे। ए भले ग बोझ हे।।
चोवा रम 'बादल' छंद के छ20 9/4/20
चोवा राम 'बादल'--कुकुभ छंद
महू गाँव के पावन भुइँया, जनम धरे तैंहा आये।
पिता रामजी माता भीमा, के गोदी मा दुलराये।।
जा विदेश मा करे पढ़ाई, भारत के मान बढ़ाये ।
करे नौकरी देश म आके, धोखा बस धोखा खाये।।
राजनीति मा उतरे तैंहा, हिम्मत करके खम ठोंके।
समता सैनिक आगू बढ़गें,
उन रुकिच न ककरो रोंके।।
सत्य अहिंसा के अनुयायी, गाँधी जी के सँगवारी।
अपन काम मा मस्त रहे तैं, सहे विरोध तको भारी।।
भारत के संविधान बनाये, नमन हवय अबड़े तोला ।
दीन दलित के रक्षा खातिर ,तोर हृदय बम के गोला।।
प्रस्तावना लिखे तैं विधि के, भारत के भाग्य विधाता।
समता लाये खातिर तैंहा, आरक्षण के हच दाता।।
न्याय बंधुता समानता के, घर घर मा अलख जगाये।
देश धर्म निरपेक्ष बनाके,दूर दृष्टि तैं देखाये।।
भेदभाव अउ छुआछूत ले, कसके तैं लड़े लड़ाई ।
बाबा कहिके पूज्य भाव ले, करथे जग तोर बड़ाई।।
हे महमानव ज्ञान पिटारा, बोधि तत्व के बड़ ज्ञाता।
ब्राह्मणवाद कभू नइ भाये, बौद्ध धर्म जोड़े नाता।।
भारत रत्न वीर सेनानी, पिछड़े के बने मसीहा।
तोर कृपा ले बाँचे हाबय, हमरो तो थोकुन ठीहा।।
आये हे वो जाबे करथे, निर्वाण तहूँ हा पाये।
श्रद्धा सुमन ल अर्पित करके, 'बादल' हा मूँड़ नँवाये।।
छंदकार--चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, बलौदाबाजार (छग)14/4/20 छंद खजाना
जय जगन्नाथ(मनहरण घनाक्षरी)
जय जगन्नाथ
-------------------
जय जगन्नाथ स्वामी,सबके तैं अंतर्यामी, दे प्रभु महाप्रसाद ,पसारे हौं हाथ ला।
देवी सुभद्रा चरन, लमा डोर कस मन,बलदाऊ के पाँव मा, नवाये हौं माथ ला।
जीव हा भटकत हे, माया मा अटकत हे, बेंदरा बिनास होगे, छोंड़ तोर साथ ला।
दया कर उबार दे, भवसागर तार दे, शरण म आये देख,बालक अनाथ ला।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़fb23/6/20
गुरु पूर्णिमा विशेष(सरसी छंद)
*गुरुदेव श्री के चरण कमल मा भाव पुष्प*
पिता तुल्य तैं हे गुरुवर श्री, पूरा करबे आस।
मोर भितर के मइल हटाके, भरदे सुघर उजास ।।
ए दुनियादारी के चक्कर, मन हाबय बउराय।
रक्षा धागा बाँध कलाई, लेवे नाथ बँचाय।।
देव बृहस्पति कस बन जाबे, मैं हाबवँ मतिमंद।
झन पाववँ मैं तोर हृदय के, दरवाजा ला बंद।।
जिनगी डोंगा डगमगात हे, बूड़ जही मँझधार।
तहीं डोंगहा बनके गुरुवर, लेबे आज उबार।।
मन डोरी ला तोर चरण मा, बाँध रखौं थिरबाँव।
दे असीस सिर ऊपर छाहित, राहय किरपा छाँव ।।
🙏🙏🙏🙏🙏
चोवा राम 'बादल'
छंद साधक, छंद के छ परिवार
*छप्पय छंद--चोवा राम 'बादल'*
1 जाग
जाग जाग अब जाग, सुते तैं कतका रहिबे।
दिन मा सपना देख, सबो दुर्दिन ला सहिबे।
स्वाभिमान के पाठ, पढ़ावय कोन ह तोला।
भारत माँ के पूत, बने हस मूरख चोला।
पुरखा मन के मान ला, झन बूड़ोबे आन ला।
ले सकेल सब ज्ञान ला,जमा उहें तैं ध्यान ला।
2 चेत कर
बदलत हवय रिवाज, जमाना ला का होगे।
नइ आवत हे चेत, दुःख पल पल मा भोगे।
कपड़ा लत्ता देख, जिंहा गा इज्जत होही।
बिसर अपन संस्कार, एक दिन मनखे रोही।
अब नवा चाल बेढंग हे, हिरदे अबड़े तंग हे।
रद्दा छूटे परमार्थ के, रिश्ता नाता स्वार्थ के।
3 परिया परगे
परिया परगे खेत ,नौकरी खोजै बेटा।
खटिया धरलिच बाप, रोग के परे सपेटा।
मिलै नहीं बनिहार ,करै अब कोन ह खेती।
होगें सबों अलाल, घूमथें वोती एती।
शिक्षा होगे बेकार कस, कोरा पुस्तक ज्ञान हे।
बिन मिहनत के सब मिल जवय, उही म सबके ध्यान हे।
4 बादर
बादल उमड़ असाड ,सबो के प्यास बुझाथे ।
धरती के सिंगार, पेड़ मन हरिया जाथे।
भरथे नदिया ताल, मगन मन होय किसानी।
जिनगी के आधार, अहो ! हाबच वरदानी ।
जोहत रथे किसान हा, तोला तो चौमास मा।
छींचे बिजहा खेत मा, बने फसल के आस मा।
5 गाँव
नइ रहिगे अब गाँव , बँधे सुमता के डोरी।
राजनीति के खेल, स्वार्थ मा तोरी मोरी।
बनगे नशा बजार,बिगड़गें लइका छउवा।
बागडोर जे हाथ, उही हा होगे खउवा।
तीज तिहार नँदात हे, चढ़े पश्चिमी रंग हा।
बदलत हाबय रात दिन, जिनगी के सब ढंग हा।
6 नेवता
पक्का होगे बात, नेवता काली खाहीं।
सगा पराहीं पाँव , उही दिन लगिन धराहीं।
सुंदर हवय दमाँद, पैर मा अपन खड़े हे।
खोले हवय दुकान, किराना अबड़ बड़े हे।
सुख पाही नोनी उहाँ, मन भीतर विश्वास हे।
सिधवा समधीजी हवय, रिश्ता सब ला पास हे।
छंदकार--चोवा राम ' बादल'
हथबन्द, बलौदाबाजार ,छत्तीसगढ़ छंद खजाना 20/7/20
*गोस्वामी तुलसी दास*
(काव्यांजलि --वीर छंद)
तीरथ राज प्रयाग तीर मा, राजापुर नामक हे गाँव।
तुलसीदास जनम धर आइस, हुलसी माँ के अँचरा छाँव।।
धर्मव्रती अउ बड़ सद ज्ञानी, पिता ब्राह्मण आत्माराम।
संवत पन्द्रा सौ चउवन मा, बालक जनमिस ले प्रभु नाम।।
मूल नछत्तर अद्भुत बालक, रहिस दाँत पूरा बत्तीस।
दासी ला सौंपिच माता हा, अलहन कस ओला लागीस।।
सरग सिधारिच हुलसी दाई, चुनिया दासी करिच सम्हाल।
छै बरस के भीतर भीतर, उहू ल लेगे बैरी काल।।
फेर अनाथ के रक्षा होइच, माँ जगदंबा सुनिच पुकार।
गुरु नरहरि हा लेगे ओला, अवधपुरी आश्रम के द्वार।।
शिक्षा-दीक्षा देवन लागिच, धरिच रामबोला के नाम।
वेद शास्त्र के ज्ञान बताइच,नाम जपावत सीताराम।।
गुरु आज्ञा ले होगे ओकर, रत्नावली संग गठजोड़।
लगिस ठेसरा जब तुलसी ला, देइस तब घर बार ल छोड़।।
तीरथ राज प्रयाग म रहिके, काशी आगे तुलसीदास।
प्रेत रूप धरके बजरंगी, आइस तुरते ओकर पास।।
चित्रकूट जाये ला कहिके, होगे ओहा अंतर्ध्यान ।
रामघाट मा गोस्वामी ला, बालक रूप मिलिस भगवान।।
फेर उहाँ ले काशी आगे, तहाँ अवधपुर करिस निवास।
रामचरित ला सिरजन लागिच, भाषा चुन के अवधी खास ।।
दुई बरस अउ सात महीना, ओमा जुरगे दिन छब्बीस।
सात कांड के सिरजन होगे, सामवेद कस जे लागीस।।
काशी पावन असी घाट मा, कृष्ण तृतीया सावन माह।
संवत सोला सौ अस्सी मा, स्वर्ग लोक के धर के राह।।
देह त्याग गोस्वामी जी हा, चलदिस प्रभु के पावन धाम।
नाम अमर होगे जुग जुग ले, जिभिया मा धर सीताराम।।
धन्य धन्य जे रचिस रमायन, परम पूज्य वो तुलसीदास।
कलयुग मा मनखे तारे बर, राम नाम के करिस उजास।।
रामचरित गुन गान करिस वो,जन भाषा मा ग्रंथ बनाय।
जे हा श्रीरामचरितमानस, वेद शास्त्र के सार कहाय।।
सरी जगत मा नइये कोनो,एकर जइसे सद साहित्य ।
एमा नवधा भक्ति ज्ञान के, शब्द शब्द मा हे लालित्य।।
धरम करम के मरम भरे हे, भरे गृहस्थी के व्यवहार।
साधु संत के रक्षा हावय, निसचर मन के हे संघार।।
शब्द रूप मा जगत पिता के, सरग लोक कस पावन धाम।
रचना संग रचइता के मैं, हाथ जोड़ के करौं प्रणाम ।।
🙏
चोवा राम 'बादल'
(छंद साधक)
हथबन्द, छत्तीसगढ़ लोकाक्षर 27/7/20
[28/07, 7:42 pm] Verma Ji: पढ़व लिखव (बागीश्वरी सवैया)
बने खातु पानी पलोये बिना साग भाजी कहाँ उल्हाही गियाँ।
बिना हाथ डोलाय पंखा धरे कोन ठंडा हवा नीक पाही गियाँ।
पढ़ाई करौ जी लिखाई करौ जी तभे जिंदगानी सुंदराही गियाँ।
खुले चाह के द्वार ला देख तोरे धरे ज्ञान ला मातु आही गियाँ ।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 7:47 pm] Verma Ji: औघड़ दानी (मोद सवैया)
देवन मा महदेव बड़े सिव संभु हवै जी औघड़ दानी ।
अंग भभूत रमाय रथे सिर मा बहिथे गंगा जुड़ पानी ।
दानव मानव भूत पिसाच सबो झन पूजे संग भवानी।
होय प्रसन्न चढ़े धतुरा पतिया फुलवा भोला गुन खानी।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 7:54 pm] Verma Ji: सावन (सुंदरी सवैया)
चमके बिजुरी गरजे घुमड़े करिया बदरा बरसे मनमाँड़े ।
नदिया नरवा तरिया डबरा छलके कुलके सरसे मनमाँड़े।
झकझोरत सावन आय हवै बिरही तन हा तरसे मनमाँड़े ।
बहिनी बिटिया मन जी झुलथें मचि के झुलना हरसे मनमाँड़े।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द , छत्तीसगढ़
[28/07, 8:00 pm] Verma Ji: घपटे अँधियारी (वाम सवैया)
अमीर लिलै सुरसा बनके तब बाढ़य भूँख गरीब लचारी।
छले छलिया कस राजनीति ह बने लबरा मन के सँगवारी।
जिहाँ सच के नइये चिनहार उल्होय रथे बड़ झूठ लबारी।
अँजोर कहाँ हम पावन जी जब घोर घटा घपटे अँधियारी।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 8:05 pm] Verma Ji: मनखे तैं चेत ( लवंगलता सवैया)
बिकास इहाँ नइ होवत हे सब पेंड़ कटावत जावत हावय।
नदी नरवा तरिया बउली ह बिना बरसा ग सुखावत हावय।
दिनों दिन खीरत भूजल हे भगवान इही समझावत हावय।
अरे मनखे तँय चेत बिनास दुवार खड़े अँटियावत हावय।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 8:10 pm] Verma Ji: कबाड़ (मुक्ताहरा सवैया)
कबाड़ भरे घर भीतर हाबय फेर ग रोज बिछावत देख।
समान जरूरत के नइये तब ले ग सबो ल मँगावत देख।
परे कचरा कस हे पनही अउ चप्पल फेर बिसावत देख।
सियान कहे पइसा ल बँचावव फोकट के उड़वावत देख।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 8:16 pm] Verma Ji: बाँसुरी बाजय (अरसात सवैया)
मोहय गा जग ला जब बाजय राग धरे बँसुरी चितचोर के।
ठाढ़ भये गइया हुलसे बन मा हुलसे हिरदे बड़ मोर के।
डार कदम्ब झुके जमुना जल धोवय पाँव ल छू रणछोर के।
काम बुता सब छोंड़यँ भागयँ ग्वालिन प्रेम म नन्दकिशोर के।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 8:21 pm] Verma Ji: इँतरा झन (चकोर सवैया)
अब्बड़ गा इँतरा झन साहब तैं ह पढ़े हच भाँप डरेंव।
गुत्तुर तैं नइ भाखच ताव चढ़े मयँ नाप डरेंव।
काबर जी फटकारत हावच का अतका मयँ श्राप डरेंव।
घूस कभू नइ देववँ जी कहि का उलटा ग अलाप डरेंव।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द ,छत्तीसगढ़
[28/07, 8:27 pm] Verma Ji: रखौ धियान (सुमुखी सवैया)
मिले जब बीज सही अउ खातु ह फेर कभू घबराय नहीं।
मिटावय भूख सबो झन के उपजावत अन्न थिराय नहीं ।
कलेचुप वो सहिके सब दुक्ख भरे हिरदे बगराय नहीं।
सियान जवान रखौ ग धियान किसान कभू करलाय नहीं।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 8:32 pm] Verma Ji: हलकानी (अरविंद सवैया)
रहिसे धनहा चिनहा पुरखा मन के सब बेंच डरीच उड़ाय।
कतको समझा नइ मानय गा मँदहा दिन रात नसा ल चढ़ाय।
परिवार सबो झन हें हलकान सिकायत रोज ग ओकर आय।
पइसा बर वो झगरा करथे घर आय तहाँ झटके ग नँगाय।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
[28/07, 8:38 pm] Verma Ji: किसान के पुकार (सर्वगामी सवैया)
फूटे हवै भाग मोर कर्जा चढ़े हे कहाँ ले मिले अन्न पानी।
चिंता भरे हे बिमारी धरे भूँख बैरी ह रोजे बिलोये मथानी।
पानी बिना हे भुजाये किसानी हवै हानि होगे मरे ग बिहानी।
पानी गिरा धार बोहा उदासी हटा दाइ रक्छा करो हे भवानी।
चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
*राखी तिहार म*
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(सरसी छंद)
बहिनी के मया
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तिलक सार भइया के माथा, राखी ला पहिराय।
साज आरती लेथे सुग्घर, रहि- रहि के मुस्काय।
डार मिठाई मुँह भइया के, रोटी खीर खवाय।
हाँस-हाँस इँतराथे थोकुन, अब्बड़ मया जताय।।
सदा सुखी राहय भइया हा, मन मा भरके भाव।
देव मनाथे हाथ जोर के, चरनन माथ नवाय।।
नता हवय भाई बहिनी के ,सब रिश्ता ले सार।
बहिनी के हिरदे मा बहिथे, निश्छल ममता धार।।
कहिथे पाँव गड़ै झन काँटा, सुखी रहै परिवार।
मातु पिता भाई भइया के, मिलते रहै दुलार।।
आशा करथे भइया रखही, ये राखी के लाज।
रक्षा खातिर ठाढ़े रइही, वीर सँवागा साज।।
भइया-भाई के भाव
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बहिनी हमर भरोसा रखबे, तैं अच प्रान अधार।
हमर रहत ले तोर दुवारी, नइ आवय अँधियार।।
सब दुख ला तोरे हर लेबो, देबो सुख के फूल।
तीज-तिहार लिहे बर आबो, नइ जावन वो भूल।।
मातु पिता के अबड़ दुलौरिन, तैं मइके के शान।
जेन माँग ले वो सब मिलही, लहुटय नहीं जुबान।।
भाँचा-भाँची अउ दमाँद सँग,तोर इहाँ अधिकार।
हिरदे भितरी रथौ समाये, जुरे मया के तार।।
रक्षा धागा बाँधे हच तैं, तेकर देख प्रताप।
संकट बइरी बुलक जही वो, दुरिहा ले चुपचाप।।
तोर हमर में फरक कहाँ हे, नस-नस एके धार।
भले हवन छछले दू शाखा, हावय एके नार।।
(संशोधित प्रे लोकाक्षर, fb, अँगना 11/8/22)
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
2 तिरंगा के जय बोल
(सार /ललित पद छंद)
आजादी के हमर परब मा, आँच कभू झन आवय।
नीलगगन मा फहर तिरंगा, लहर लहर लहरावय।।
दुनिया भर में चमचम चमकय, देश हमर ध्रुव तारा।
दसो दिशा मा गूंँजत राहय, पावन जय के नारा ।।
शेखर बिस्मिल बोस बहादुर, जेकर परम पुजारी ।
जे झंडा ला प्राण समझथन, भारत के नर नारी।।
थाम तिरंगा लड़ गोरा ले, दे हाबयँ कुरबानी ।
जेला देख शत्रु डर्राके, रण मा माँगैं पानी।।
बापू अउ सरदार नेहरू ,गुन गाइन सँगवारी।
गावत राहय महिमा जेकर, कविवर अटल बिहारी।।
देव हिमालय मूँड़ उठाके, जेकर महिमा गाथे।
उही धजा के बंदन करके, 'बादल' माथ नवाथे।।
छंद खजाना 14/8/20
तीजा -पोरा(लावणी छंद)
भारत माँ के अबड़ दुलौरिन ,माटी हे छत्तीसगढ़ के।
लोग इहाँके सिधवा हितवा, धरम -करम मा बढ़ चढ़के।।
नागर बइला संग मितानी ,जतन करइया धरती के।
उवत सुरुज ला जल देवइया, पाँव परइया बुड़ती के।।
रंग रंग त्योहार मनइया, होली अउ देवारी जी।
रक्षाबंधन आठे पोरा, तीजा रहिथे नारी जी।।
पोरा के महिमा हे भारी,बइला के पूजा करथें।
बेटी बहिनी पटके पोरा, मइके के दुख ला हरथें।।
पोरा मा भरके रोटी ला ,आथें पटक दुबट्टा जी ।
लइका मन रोटी ला खाथें, करथें लूट झपट्टा जी।।
गाँव गाँव मा बइल दउँड़ अउ,खुडुवा खो खो होथे जी।
नोनी मन जब सुआ नाचथें, देखत खुशी उनोथे जी ।।
शिव के हवय सवारी नंदी,बइल रूप मा अवतारी।
पोरा के दिन वोकर संगी, मान गउन होथे भारी।।
बइला ला जी नहवाँ धोके, सब किसान पूजा करथें।
तिलक सार के करे आरती, माथ नवाँ पइयाँ परथें।।
भाँचा भाँची लइका मन बर,खेलौना लेथें भारी।
माटी के चुकिया सँग जाँता, माटी के चूल्हा थारी।।
मिहनत के जी शिक्षा देथे, बइला चूल्हा बचपन ले।
छत्तीसगढ़िया मन के हिरदे, रइथे भरे समरपन ले।।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़ fb 18/8/20
*गनपति गनराज*
*(कुणडलिया)*
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*हे गनपति गनराज जी,बिनती हे कर जोर।*
*अँगना हमर बिराज लव,पइयाँ लागवँ तोर।*
*पइयाँ लागवँ तोर,अबड़ जोहत हवँ रस्ता*।
*आके नाथ उबार, मोर हालत हे खस्ता।*
*मँहगाई के मार,बाढ़ कर देहे दुरगति।*
*कोरोना के टाँग,टोर दव झटकुन गनपति।*
*बड़का बड़का कान हे,बड़का हाबय पेट।*
*बाधा ला देथच पटक,लम्बा सोंड़ गुमेट।*
*लम्बा सोंड़ गुमेट,दु:ख ला दूर भगादे।*
*शिव गौरी के लाल, भक्त ला पार लगादे।*
*दुनिया के जंजाल, हवय माया के खड़का।*
*लाज रखौ गनराज, देव मा हाबव बड़का।*
*मंगल साजे आरती,लाड़ू भोग लगाय।*
*माथ नवा के पाँव मा, श्रद्धा फूल चढ़ाय।*
*श्रद्धा फूल चढ़ाय ,तोर जस ला मैं गाववँ।*
*विघ्नेश्वर गनराज, सबो सुख किरपा पाववँ।*
*वक्रतुंड महकाय, कभू झन होवय अनभल।*
*रिद्धि सिद्धि के संग, विराजव उच्छल मंगल।*
चोवा राम वर्मा 'बादल'
(छंद साधक)
हथबंद, छत्तीसगढ़ लोकाक्षर 22/8/20
धनुस यज्ञ
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(आल्हा तर्ज मा)
लाल लाल आँखी छटकारय,बार बार फरसा लहराय।
राजा जनक ल पूछत हाबय,परशुराम अब्बड़ गुस्साय।।
कहाँ हवय वो दोसी राजा,पाप करे हे धनुस ल टोर।
जल्दी वो हा बाहिर निकलय,तरुवा म रिस चढ़गे मोर।।
अब तो सब झन मारे जाहू, कइसे बइठे हव चुपचाप।
उठके लछिमन तुरते कहिथे,चिल्लावत हव काबर आप।।
रघुवंशी मन बइठे हाबन, सुनन नहीं तोरे ललकार।
भइया मोरे टोरे हाबय,कइसे तैं हा देबे मार।।
गुस्सा मा थरथर काँपत हे,परशुराम जी सुने जवाब।
जइसे कोनो झन्ना जाथे,चुरपुरहा मिरचा ला चाब।।
धमकावन लागे लछिमन ला, मर जाबे रे मूँड़ कटाय।
अँखरा कस फरसा ल चालय, डूँड़ी अँगठी तको लमाय।।
लछिमन बोलिस सुनो मुनि जी,मैं तो क्षत्रिय बालक आँव।
बजुरा छाती मोरो हाबय, नहीं कोंहड़ा कस गल जाँव।।
बात बात के झगरा माते, आय राम जी शांत कराय।
हाथ जोर के गुरतुर बोलत, भृगुवंशी ला विनय सुनाय।।
भूलचूक माफी कर देहू,मैंहा दोसी हवँ महराज।
हम बाम्हन के पूजा करथन,रघुकुल के हे रीत रिवाज।।
भभकत आगी ठंडा परगे,होगे पानी के बौछार।
पुरुषोत्तम मर्यादा राखिच,हाबय महिमा अपरम्पार।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
9926195747
स्व. श्रीमती सुरुज बाई खांडे
--------- -----------------(आल्हा छंद)
बड़ गुणवंतिन कलाकार जे, दीदी खांडे सुरुज कहाय।
लोकगीत भरथरी ल गाके, छत्तीसगढ़ के जस बगराय।।
तेकर मैं हा गुन ला गाववँ, सुन लौ भइया चेत लगाय।
तुलसी कस जेकर जस बिरवा, जुग-जुग ले नइ तो मुरझाय।।
सदी बीसवीं के अधियाती, बारा जून बछर उन्चास।
जिला बिलासा के जी नगरी, गांँव पौंसरी बिल्हा पास।।
करुणा के वो सँउहे देवी, उही ठाँ व मा लिन अवतार।
मातु रेवती बाबू घसिया, देइन जे मन मया दुलार ।।
रामसाय नाना ले पाइस ,गायन विद्या के शुभ ज्ञान।
गीत भरथरी ढोला मारू, चंदैनी, पंथी धर ध्यान।।
जब वो गावय जादू हो जय, चकरित हो जावयँ विदवान।
सोर उड़ै जी दुनिया भर मा, जगा-जगा होवय सम्मान।।
कहय राग के रानी तोला, नामी नाटककार हबीब।
तोर कला के दरशन पावैं, जागै जेकर नीक नसीब।।
भारत माँ के नाम जगाये, घूम घूम के देश-विदेश ।
महतारी के सेवा खातिर, पाये कतको भले कलेश।।
हाथ जोर के बिनती हावै ,सुन लौ बात हमर सरकार।
मिलै पद्मश्री दीदी जी ला, कलाकार के हो सत्कार।।
बसे हवै वो जन के हिरदे, जनता ला हे अतके आस।
चेत लगाके पूरा कर दौ, हे गणतंत्र दिवस अब खास।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
बेटी हें लाचार, जमाना कइसन आगे।
राजनीति के खेल,डुगडुगी बाजन लागे।
छोटे मछरी जाल,बोचके बड़े बड़े हें।
जिनकर काँटा झार, कती चिखला म गड़े हें।
नइ लहुटय जी जान, भले धन भर दौ पेटी।
उही समझही दु:ख, मरे हे जेकर बेटी।
अउ बाँकी चिल्लाव,लगा लौ कतको नारा।
जात पात के नाम, फेंक के घटिया चारा।
बेटा ला संस्कार दौ, माता पिता बिचार।
बेटी तभ्भे बाँचही,सुखी रही संसार।
बलत्कार ला देख, लागथे डर बड़ भाई।
'बादल' आँसू ढार, देख रोथे रघुराई।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
Fb,loka 3/10/20
*सत के रसता*
(सरसी छंद)
सत्य सहीं कोनो तप नइये, झूठ बरोबर पाप ।
मूँड़ उठाके जिनगी जी लौ, सत के पागा खाप।।
सबले पहिली सत हा आथे, सतयुग नाम धराय।
दसों दिशा मा सत के झंडा, लहर लहर लहराय।।
सत्यलोक के सत्य पुरुष हा, लेथे जी अवतार।
अलग-अलग अउ नाम रूप मा, महिमा हवय अपार।।
कभू कहाथे गुरु नानक वो, कभ्भू संत कबीर।
परम पूज्य घासी गुरु बाबा, हरे भगत के पीर।।
जेकर जइसे भाव हवय जी, ले लौ तइसे नाम।
अल्ला,ईसा ,मौला कहिलव, कहौ राम या श्याम।।
फेर चेत अतके जी राखौ,सब्बो एके आन।
एके हंसा एके चोला, एके सब संतान।।
सादा जीवन जे अपनाही, सत के नित धर ध्यान ।
सत्य पुरुष ला हंसा पाही, सत के हे पहिचान।।
सत्य नाम सुमिरन जे करथे, त्यागे गरब गुमान।
सत के राह धरे जे चलथे, वो असली इंसान।।
ढोंगी भोगी करैं दिखावा, दुनिया ला भरमाय।
सत के जेहा अटल पुजारी, वो धोखा नइ खाय।।
भटकन झन आनी बानी मा,शकुनी चलथें दाँव।
चारे दिन जीना हे 'बादल' बाँट मया के छाँव।।
विनीत-
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के हार्दिक बधाई--
---------------------------------
एक नवम्बर हे बड़ पावन, कातिक चलौ नहाबो जी।
राज बनिस छत्तीसगढ़ संगी, आवव खुशी मनाबो जी।।
धान कटोरा छलकत हाबय,छाये हाबय हरियाली।
इंद्रधनुष के रंग सहीं जी, बगरे हाबय खुशहाली।।
महानदी के निरमल पानी,गावत सुवा ददरिया हे।
अरपा पैरी सोंढुर हसदो, देवत टेही बढ़िया हे।।
घन जंगल बस्तर के हरियर,तीरथगढ़ देखौ झरना।
दंतेश्वरी मातु के दरशन, करलव भइया हे तरना।।
हे गिरौद शिवरीनारायण, राजिम सिरपुर खल्लारी।
तुरतुरिया मल्हार इहाँ हें, जिंकर महिमा हे भारी।।
कौशिल्या माता के मइके, भाँचा राम कहाये हे।
बालमिकी जी इहें रहिस जे, रामायण सिरजाये हे।।
तिज तिहार अउ नेंग जोग हा,नइये कहूँ इहाँ जइसे।
आथे परब छेरछेरा तब, धान दान देथँन कइसे।।
बना ठेठरी खुरमी चीला,फागुन खूब मनाथन जी।
फरा बरा संँग गुलगुल भजिया, बाटँ बाँट के खाथन जी।।
गिल्ली डंडा भौंरा बाँटी,रेस टीप जग जाहिर हे।
फुगड़ी पित्तुल खुड़वा खो खो,खेले लइका माहिर हे।।
टोंड़ा ककनी गर के सूँता, खिनवा फुल्ली करधन हे।
छत्तीसगढ़हिन महतारी के, सुंदर तन उज्जर मन हे।।
सुमता के रसता मा चलथें, सबो इहाँ के रहवासी।
सिधवा जाँगर पेर कमइयाँ, खा लेथें चटनी बासी।।
अत्याचारी संग लड़े बर,हाबय लोहा कस छाती।
अउ मितवा बर लिखथे रहिथे, दया मया के नित पाती।।
आवव संगी छत्तीसगढ़ ला, मिलजुल सरग बनाबो जी।
एक नवम्बर हे बड़ पावन, उत्सव आज मनाबो जी।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़ fb 1/11/20 छग राज्य स्थापना दिवस।
आज छत्तीसगढ़ के अमर गायक कवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के पुण्य तिथि हे।सरकार ले ये माँग करत कि--लक्ष्मण मस्तुरिया जी के नाम म राज्य स्तरीय कोनो पुरस्कार के घोपणा जरूर करयँ।
अपन विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करत हवँ।
---------------------------------------------------
छत्तीसगढ़ के नाम जगाये, माटी के जस गाके।
जनकवि हे लक्ष्मण मस्तुरिया,पावन कलम चलाके।।
महानदी के छलकत आँसू,सरु किसान के पीरा।
अउ गरीब ला हृदय बसाके, गाये गीत कबीरा।।
आखर आखर अलख जगाके,तैं अँजोर बगराये।
परे डरे कस मनखे मन बर,सुग्घर भाव जगाये।।
कर विरोध सब शोषक मन के,हक बर लड़े सिखोये।
दुखिया के बन दुखिया संगी, बीज मया के बोये।।
लोक गीत के ऊँचा झंडा, फहर फहर फहराये।
छत्तीसगढ़ियापन के लोहा,सरी जगत मनवाये।।
झुके नहीं तैं पद पइसा मा,कलाकार के सँगवारी।
पाये नहीं भले तैं तमगा, कोनो जी सरकारी।।
जन जन के हिरदे मा बसथस,सुरता मा लपटाये।
श्रद्धांजलि देवत हे 'बादल', तोला मूँड़ नँवाये।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़ fb,लोकाक्षर 3/11/20 ,fb 7/6/21,khula manch 7/6/21
*छत्तीसगढ़ के गाँधी-पं.सुंदर लाल शर्मा जी*
-------------------------------------(आधार छंद--वीर छंद)
रहिन छत्तीसगढ़िया जे गाँधी,बंदौं वोला माथ नँवाय।
श्रद्धा के दू फूल चढ़ाववँ, सुमर सुमर के गुन जस गाय।।
चंद्रसूर के पावन भुइँया, हावय जे राजिम के तीर।
देवमती दाई के कोरा, जनम धरिस बालक मतिधीर।।
सन अट्ठारा सौ इक्यासी, माह दिसंबर तिथि इक्कीस।
पंडित श्री जयलाल तिवारी, प्रभु कृपा ले पिता बनीस।।
अद्भुत बालक तेज बुद्धि के,नाम धराइन सुंदरलाल।
मात पिता के अबड़ दुलरवा,
जग में जेकर ऊँचा भाल।।
शिक्षा पाइस घर में रहिके, सबो विषय के होगे ज्ञान।
सरल हृदय अउ सेवाभावी, चित्रकार कवि मनुज महान।।
देश प्रेम के मतवाला वो, लड़िस सुराजी बन संग्राम।
पूरा जीवन अर्पित करदिस, अलख जगाके जय सतनाम।।
छुआछूत के घोर विरोधी, बन कुरीति के सँउहे काल।
दबे गिरे कुचले मनखे के, भाग जगाए सुंदरलाल।।
जात-पाँत के बँधना टोरे, खुलवाये मंदिर के द्वार।
सहि विरोध ला आगू रेंगे, माने नहीं कभू तैं हार ।।
पक्का गाँधीवादी नेता, गोरा मन के करे विरोध।
जेल गए बहुते दुख पाए, टूटे नहीं जिये मनबोध।।
गाँव-गाँव में अलख जगाए, लाना हावय कहे सुराज।
पूज्य छत्तीसगढ़िया हे गाँधी, जाग उठिस तब सकल समाज।।
रचे दानलीला तैं जग बर, महतारी भाखा मा छंद।
खण्डकाव्य नाटक के रचना, जेला पढ़ आथे आनंद।।
माह दिसम्बर तिथि अट्ठाइस, आइस उन्निस सौ उन्चास।
माटी के तन त्याग चले तैं,सरग लोक हरि जी के पास।।
महापुरुष हे ज्ञानी योगी, करे जगत मा पावन काम।
मूँड़ नँवाके 'बादल' कहिथे, तोर अमर रइही तो नाम।।
रचनाकार--
चोवा राम 'बादल'
ग्राम ,पो.--हथबंद
(उड़ेला शिवनगर)
तह--सिमगा
जि--बलौदाबाजार(छ ग)493113
दिनाँक--30/11 /20
नेता जी (कुण्डलिया छंद )
छटपट छटपट जी करय, नींद तको नइ आय ।
का होही अब का नहीं , नेता जी घबराय ।
नेता जी घबराय, रात दिन देखय सपना ।
निचट सुखागे मूँह , छोंड़ दे हवय अकड़ना ।
पइसा सबो सिराय , होय बाई से खटपट ।
जोहत हवय रिजल्ट , करत हे छटपट छटपट ।
चोवा राम "बादल "
हथबंद (छग )fb
*बाइकवाला*
*(हरिगीतिका छंद)*
*बाइक चलावत रोड मा, तँय गोठियाथस फोन मा।*
*कब थोरको जी सोचबे,जिनगी मिलय नइ लोन मा।*
*ए फोन के सेती कभू,घटना भयानक घट जथे।*
*जब चेत हा जी नइ रहय,आ मौत हा ठाढ़े रथे।*
*सब चीज ले अनमोल हे,ए जीव हा तैं जान ले।*
*माँ बाप समझा हारगें, बरजे उँकर अब मान ले।*
*दिन रात वोमन सोचथें,हर साँस मा हावस बसे।*
*डोरी मया के जी लमा, उन मोह मा बाँधे कसे।*
*झन हड़बड़ी करबे कभू,देरी भले जी हो जवय।*
*होथे उहें गा गड़बड़ी,जब सावचेती नइ रहय।*
*दाई ददा के आस हा,भाई अधूरा झन रहय।*
*सुरता करत औलाद के, रोवत बुढ़ापा मत कटय।*
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़ लोकाक्षर प्रे--12/12/20
*जय सतनाम*
*परम पूज्य बाबा गुरु घासीदास जयंती के हार्दिक बधाई।*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
रोला छंद
गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।
सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।
पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।
धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।1
सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।
सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी।
ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।
मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके। 2
तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।
समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।
छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।
जात पात हे व्यर्थ, सबो झन करौ किनारा। 3
मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।
सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।
गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।
सत मारग मा रेंग, बने हन सब ले बढ़िया।4
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़ fb 18/12/20, छंद के छ 17/12/20w
*जी नइ बाचय*(सुखी सवैया)
जुड़हा ग हवा ढुढरावत हे अब जी नइ बाँचय लागत हावय।
कतको कथरी लदके रहिबे बड़ घेख्खर जाड़ तभो ग जनावय।
कुहरा म ढँकाय रथे बिहना अउ बादर ओंट सुरूज लुकावय।
चिटको अँगना नइ आवत हे कतको झन घाम बबा ल बलावय।1
सिपचावव गा लकड़ी खरसी झट फूँकव जी कउड़ा ल दगावव।
लमिया तब हाथ ल सेंकव जी तन आँच परे बढ़िया सुख पावव।
लइका मन थोकुन दूर हटौ तिर मा बइठे झन तो इँतरावव।
छटके लुक हा चट ले जरथे पहिरे कपड़ा ल सकेल बँचावव।2
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़ लोकाक्षर 9/1/21
होली(दोहा)
बुरा न मानव होरी हे( दोहा छंद)
छंद बन्ध बेहाल हे, माते मन मोहाय ।
तैं बसंत बढ़िया करे, होली ला ले आय ।।
होरी कस जी कोन हे, सब ला करै जवान।
एक रंग मा जी रँगै,का गरीब धनवान ।।
हाथ पकड़ के गाल मा, भइया रंग लगाय।
छोंड़व जी भउजी कहय, नवाँ नवेलिन ताय ।।
धोबी के कुत्ता सहीं, प्रेमी के हे हाल।
दिन भर वो जोहत हवय, मुँह पोंछत उरमाल ।।
पहिरे लुगरा पोलखा, जुन्ना छाँट निमार ।
जोही खेलत फाग हे, नैना हे मतवार ।।
परम पिंयारी आज तैं, सुन ले मोरो बात।
होरी हे आ गोठिया, मुच मुच मुच मुसकात ।।
चूरी खिनवा ला पहिर, टूरा हा मटकाय।
नकली चकली भेस हे, किन्नर कस बन जाय।।
सर्रावत हावय बबा, मेंछा ला अँटियाय ।
होरी के हुड़दंग मा, हाबय भाँग चढ़ाय ।।
हवय अगोरत मोहना , होरी हा कब आय ।
पिछू बछर कस राधिका, मिलही गला लगाय।।
चिंटू पिंटू मोनिका, हें हुड़दंग मचाँय।
चीला खुरमी ठेठरी, नाच कूद के खाँय।।
मँदहा घोंडे हे गली, होरी हे चिल्लाय ।
डर मा कुत्ता हा तको, रेँगै जी तिरियाय ।।
चोवा राम "बादल"
हथबन्द (छ ग) fb
छत्तीसगढ़ के पुरोधा जनकवि श्रद्धेय 'दलित' जी ला आज उनकर 111वीं पुण्य जयंती के अवसर मा विनम्र श्रद्धांजलि
(उनकर प्रिय छंद कुण्डलिया मा शब्दांजलि)
पुरखा जनकवि के हवय, पुण्य जयंती आज।
श्रीमन कोदू राम जी,करिन नेक जे काज।
करिन नेक जे काज,छंद मा रचना रचके।
सुग्घर के सुरताल, भाव मनभावन लचके।
गाँधी सहीं विचार, रहिंन उन उज्जर छवि के।
अमर रही गा नाम, सदा पुरखा जनकवि के।
आइस बालक ले जनम,पावन टिकरी गाँव।
मातु पिता जेकर धरिन, कोदू राम जी नाँव।
कोदू राम जी नाँव, पिता श्री राम भरोसा।
घोर गरीबी झेल, करिन उन पालन पोसा।
अर्जुन्दा के स्कूल, ज्ञान के गठरी पाइस।
गुरुजी बनके दुर्ग, शहर मा वो हा आइस।
बड़का रचनाकार वो,गद्य-पद्य सिरजाय।
हास्य व्यंग्य के धार मा, श्रोता ला नँहवाय।
श्रोता ला नँहवाय, गोठ वो लिखिन सियानी।
माटी महक समाय, गठिन बड़ कथा-कहानी।
अलहन के जी बात,व्यंग्य के डारे तड़का।
दू मितान के गोठ, करिन वो कविवर बड़का।
श्रद्धावनत
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़ लोकाक्षर, fb 5/3/2021
बासंती कुण्डलिया
स्वागत हवय बसंत के , दिन बादर हे खास।
मातु शारदा के कृपा ,अवगुन होही नास।
अवगुन होही नास, ज्ञान विद्या सब पाबो।
जन्मदिवस हे आज, शारदे के गुन गाबो।
माघ पंचमी पर्व, नीक उत्सव हे लागत।
रितु राजा हे आय , चलौ जी करबो स्वागत। 1
माता वीणा वादिनी, होके हंस सवार।
आके मातु उबार ले, सुन ले मोर पुकार।
सुन ले मोर पुकार, चरन मा तोर परे हँव।
ज्ञान कला भंडार, बाँटथस तैंह सुने हँव।
दुच्छा हावय मोर, देख किस्मत के खाता।
मति हावय कमजोर, बुद्धि के वर दे माता।2
आमा घन मउराय हे,भौंरा गीत सुनाय।
रितु राजा के आय ले, मौसम हे बउराय।
मौसम हे बउराय,हवा हा ममहावत हे।
रंग रंग के फूल, सबो के मन भावत हे।
कामदेव के बान, परे अंतस हे रामा।
मँदरस घोरय कान, कोयली बइठे आमा।3
मुसकावय मोहय कली, भौंरा सब बदनाम।
सुरुर सुरुर गावय हवा,नाचय जुड़हा घाम।
नाचय जुड़हा घाम,बसंती रँग हे छाये।
परसा पागा लाल, मउर आमा इँतराये।
सरसों हा मटकाय, चना हा झाँझ बजावय।
बोइर ला जी देख, लजा धनिया मुसकावय।2
लाली परसा फूलगे,अब्बड़ मन ला भाय।
कउहा फूले गँधिरवा,कहर महर ममहाय।
कहर महर ममहाय, रंग सरसों के पीला।
गोंदा पिंवरा लाल,दिखय अरसी हा नीला।
हाँसय देख बसंत,बजावय खुशी मा ताली।
बगरे चारों खूँट, रंग पिंवरा अउ लाली।3
लाली फूल गुलाब के, रिगबिग बगिया छाय।
ठाढ़े परसा खार मा,रंग गुलाल नँहाय।
रंग गुलाल नँहाय, मोंगरा ममहावत हे।
चम्पा अउ कचनार, चमेली शरमावत हे।
टोरत हावय फूल, देख रितुराजा माली।
गिंजर गिंजर के बाग, खोज के दसमत लाली।4
बिरहा आगी हे बरत, मन मा नइये चैन।
मोर धनी परदेश मा,रोवत हौं दिन रैन।
रोवत हौं दिन रैन, कोइली हा झन गावय।
भाथे कथें बसंत, फेर मोला नइ भावय।
लाली परसा फूल, दुखाथे शनि कस गिरहा।
पुरवइया इँतराय, लगाथे आगी बिरहा।।5
संकटमोचक हनुमान जयंती के हार्दिक शुभकामनाएं।
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जय हनुमान(वीर छंद)
पँइया लागवँ हे बजरंगी,पवन तनय अँजनी के लाल।
शंकर सुवन केशरी नंदन,भूत प्रेत के सँउहें काल।।
रामदूत अतुलित बलधारी, संकट मोचक सुमिरौं नाम।
जेकर हिरदे के मंदिर मा, सदा बिराजे सीताराम।।
अजर अमर तैं चारों जुग मा, पल मा विपदा देथच टोर।
बाधा बिघन हटा दौ हनुमत, दंडा शरण परे हँव तोर।।
तैं कपिपति सुग्रीव सहायक,करे हवच बड़का उपकार।
रघुराई ला लान मिलाये,होगे बालि तको भवपार।।
रघुराई के संकट टारे, जग जननी के खबर बताय।
रावण के नस बल ला टोरे, गढ़ लंका ला राख बनाय।।
भक्त विभीषण के उपकारी, पागे वो लंका के राज।
तोर नाम के सुमिरन करते, बनके रहिथे बिगड़े काज।।
शक्ति बाण मा लछिमन मूर्छित, लाके बूटी प्राण बँचाय।
भरत सहीं भाई अच कहिके,रघुनंदन हा कंठ लगाय।।
तहस नहस निसचर दल करके, दाँत कटर के ठाने युद्ध।
दसकंधर हा मूर्छित होगे, मारे मुटका होके क्रुद्ध।।
अहिरावण के भुजा उखाड़े,जाके मारे लोक पताल।
भक्तन रक्षक हे बजरंगी, दुष्टन बर तैं सँउहें काल।।
देख हाल अब ये दुनिया के, माते हावय हाहाकार।
रार मचाये हे कोरोना,कर दे जल्दी तैं संहार।।
जै जै जै बजरंग बली जै, जै जै जै जै जै श्रीराम।
हाथ जोर के बिनती हावय, भारत भुँइया हो सुखधाम।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़ FB 27/4/21,16/4/22हनुमान जयंती
(अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस विशेष)
1/5/21
मजदूर
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जग ला सब सुख देने वाला, तैं हावस सब ले मजबूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।।
रिबी रिबी बर तरसत रहिथें,तोर सुवारी लइका लोग।
खून पछीना तोर कमाई, बइठाँगुर मन करथें भोग।
तोर काम के दाम तको ला, बइरी मन नइ दँय भरपूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
तोर भुजा के बल मा आइस, ये दुनिया मा आज विकास।
पाँव तोर धरती मा गड़गे, नेता चढ़गें कूद अगास।
हक नइ माँगच रार मँचाके,हावय तोरे इही कसूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
जाँगर पेर कमावत रहिथस, घाम भूख अउ सहिके प्यास।
भोग आन मन छप्पन झड़थें,रहिथे हँड़िया तोर उपास।
देख तमाशा हाँसत रहिथें, सेठ धनी मन मद मा चूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
जादा सिधवा झन रा संगी, तभे बाँचही तोरे लाज।
मूँड़ उठाके रेंग बने तैं, पटकू बंडी पागा साज।
'बादल' के अरजी हे अतके,झन चिखबे खट्टा अंगूर।
दुच्छा निसदिन थैली तोरे, पेट बियाकुल तैं मजदूर।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़ FB, अँगना,लोकाक्षर 1/5/21
*एक ठन गीत*
(आधार छंद--लावणी)
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*जल जमीन वन हवा तको हा, पूर परे नइ पावत हे।*
*अतलँग कर डारे रे मनखे, देख प्रलय हा आवत हे।*
कदर करे नइ परलोखी तैं, मातु प्रकृति के ममता के।
फसल प्रदूषण के उपजाये, बोंये बीज विषमता के।
दोष आन ला झन दे पगला, देख झाँक अंतस अपने,
स्वारथ के नागिन हा बइठे, फन काढ़े लहरावत हे।
अतलँग कर डारे रे मनखे, देख प्रलय हा आवत हे।
इहाँ बाँचबे तभे चाँद मा, गाँव बसाबे जाके तैं।
करत अमंगल हावस भारी, मंगल मा इँतराके तैं।
अद्दर कर डारे धरती ला, सभ्य कहाथस नाक उँचा,
तरिया नदिया हे मइलाहा , नाली कस बस्सावत हे।
अतलँग कर डारे रे मनखे, देख प्रलय हा आवत हे।
बर पीपर ला काट डरे हस, आक्सीजन जे मन देवैं।
नइये लीम कनेर इहाँ अब, धुँगिया ला जे पी लेवैं।
धरे सिलेंडर भटकत हावस,रोग दबाये हे टोंटा,
धन दौलत ये माल खजाना, तोला कहाँ बँचावत हे।
अतलँग कर डारे रे मनखे, देख प्रलय हा आवत हे।
जइसे करनी तइसे भरनी, अटल नियम हे ईश्वर के।
अच्छा करबे अच्छा पाबे, करनी झन कर बिखहर के।
चेत लगा ले समे अभी हे, तैं चोवा राम अड़िनहा,
भाग भाग झट हाथ झटक के, बीमारी घिल्लावत हे।
अतलँग कर डारे रे मनखे, देख प्रलय हा आवत हे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़ लोकाक्षर 8/5/21
महतारी(दाई)
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*हाथ जोर पँइया परवँ, हे महतारी तोर।*
*भूल चूक करबे क्षमा, अरजी हे कर जोर।।*
*हवय उधारी दूध के, नइ तो सकवँ चुकाय।*
*कोनो गलती मोर वो, तोला झन रोवाय।*
*घेरी बेरी लवँ जनम, कोरा दाई तोर।*
*घन ममता के छाँव मा, जीव जुड़ावय मोर।।*
*दाई के हिरदे गहिर, नइये कोनो थाह।*
*निसदिन जे संतान के, करत रथे परवाह।।*
*महतारी तोरे दरश, चारों धाम समान।*
*दाई के सेवा करै, बड़भागी इंसान।।*
*माँ के बंदत हँव चरण, जे हावय सुखधाम।*
*जेमा माथ नवाँय हें, यदुनंदन अउ राम।।*
*सेवा दाई के करे, जे मनखे हा रोज।*
*अँचरा मिलथे शांति के, सुख घर आथे खोज।।*
*दाई ले ये तन मिलिस, नीक मिलिस संस्कार।*
*मातु पिता हें देवता, करथें बड़ उपकार।*
*लहू लहू के बूँद मा, महतारी के अंश।*
*कण कण मा फइले हवय, मातु ईश के वंश।।*
*सबले बढ़के सृष्टि में,दाई तोरे मान।*
*पाले पोंसे गर्भ मा, तहीं आच भगवान।*
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़ (FB, अँगना, छंद के छ कवि गोष्ठी 9/5/21
[
*मातृभूमि के मान बर, लड़थे जेन जवान।*
*अइसन वीर सपूत ला, असली हीरो जान।।*
*सुख सुविधा इंसान ला, दे हावय विज्ञान।*
*नेक काम बर माँग लौ, वोकर ले वरदान।
गीतिका
*आदमी हा आदमी ला आदमी जब मानही जी*
*सच कहे 'बादल' उही दिन सुख सुमत के लानही जी*
दोहा
*जन्मभूमि हा सँउहे होथे, सब दिन सरग समान।*
*महतारी कस सेवा करथे, वो सच्चा इंसान।*
*माटी माटी मा मिलही, मर खप जाही देह।*
*मनवा माया छोड़ के, कर तैं हरि ले नेह।*
*अटल नियम हे कर्म के, मिलथे गा परिणाम।*
*परछो पाथे आतमा, सुख दुख जेकर नाम।।*
छ के छ कवि गोष्ठी 9/5/21
विश्व साइकिल दिवस के हार्दिक बधाई।
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चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।
लइकापन मा खूब चलावन,कसके ओंटन हम पइडिल।
हीरो अउ हरकुलश एटलस ,साइज मा छोटे बड़का।
पिछू केरियर आगू टुकनी,हेंडिल मा घंटी छुटका।
बिन डीजल पेट्रोल पिये वो,पहुँचाथे जल्दी मंजिल।
चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।
आथे पाछू ले पुरवाई, तब गरगर-गरगर चलथे।
अउ ढलान मा गुड़गुड़ -गुड़गुड़, बिन ओंटे वो ढुलथे।
आथे गर्रा चढ़ऊ मिलथे, जी करथे तलमिल-तलमिल।
चला साइकिल चला साइकिल ,सेहत बर चला साइकिल।
हवै सवारी ये मन भावन, इसकुल जा भइया राजा।
संगी सँग जा मेला -ठेला,घूम-घाम के जी आजा।
हवै जवानी मस्त-मगन ता,ककरो तैं धड़का ले दिल।
चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।
हाथ गोड़ मजबूत फेफड़ा, मोटापा हा घट जाथे।
चलौ चलावव नोनी-बाबू, चमक चेहरा मा आथे।
पर्यावरण सुरक्षित होही, बनौ देश सेवा काबिल।
चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
छंद खुला मंच, कविता चौराहे पर, छत्तीसगढ़ सा स एवं FB में प्रेषित 3/6/21
💐💐💐💐💐💐
छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के जादूगर श्री खुमान साव जी ला उनकर दूसरइया पुण्यतिथि के अवसर म सादर प्रणाम करत, भाव सुमन अर्पित हे।
जादूगर संगीत कला के,गुरुवर साव खुमान।
छत्तीसगढ़ी लोक गीत ला, देये जग पहिचान।
गाँव ठेकुवा सन उनीस सौ, बछर रहिस उन्तीस।
पाँच सितम्बर जनम धरे तैं,देइन सब आसीस।
पढ़े-लिखे अउ गुरुजी बनके, बाँटे सुग्घर ज्ञान।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।
नाचा पार्टी मा तैं जावस,मँदराजी के संग।
तोर कला ला देखत लोगन, हो जावयँ गा दंग।
हरमुनिया मा अँगरी खेलै, अमरित घोरै कान।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।
दाऊ रामचंद्र के सँग मा, आइस अइसन मोड़।
तैं रम गेये जोगी जइसे, हिरदे नाता जोड़।
फुलिस चँदैनी गोंदा तब तो,धरती बर वरदान।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।
अदभुत धुन सिरजाये तैं हा,मन के मया चिभोर।
गाँव-गाँव अउ गली-गली मा, जेकर होगे सोर।
लोक गीत गा के रस घोरै, मस्तुरिया के तान।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।
भाव सुमन अर्पित हे गुरुवर, पुण्यतिथि मा आज।
बसे हवस जन-जन के हिरदे,अमर करे हस काज।
हे खुमान संगीत अमर तो, करथे जग गुणगान।
छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
Fb,khula manch,--9/6/21
गीत
(आधार छंद--सार)
*बाल श्रमिक*
*छोटे लइका तन के काँचा, मजदूरी गा करथे।*
*अँधियारी घपटे जिनगी मा, दुख के आँसू झरथे।*
नइये मुँड़ मा छाँव ददा के,खाट धरे हे दाई।
छोटे बहिनी भूख मरत हे, अब्बड़ हे करलाई।
बचपन होगे जंग लगे कस,मन-बिरवा मुरझाये
इसकुल छूटे जाथे ढाबा,जूठा प्लेट ल धरथे।
अँधियारी घपटे जिनगी मा, दुख के आँसू झरथे।
दिनभर लेथे काम रगड़के,मालिक रहि-रहि तमके।
मिलथे रोजी कमती सबले, शोषण होथे जमके।
साहब के घर झाड़ू-पोंछा, कपड़ा-लत्ता धोना
औखर-औखर गारी सुनना, मार तको जी परथे।
अँधियारी घपटे जिनगी मा, दुख के आँसू झरथे।
हाय!हाय!! कइसन मजबूरी, रोटी बर बनिहारी।
बाल श्रमिक कानून बने हे, खइता कस सरकारी।
रोम जलत हे धरे बाँसुरी, बइठे हावय नीरो
बढ़े गरीबी के दावानल, जेमा बच्चा जरथे।
अँधियारी घपटे जिनगी मा, दुख के आँसू झरथे।
खोज-खोज अइसन लइका के, दूर समस्या होही।
भारत माता के अंतस हा, तभ्भे जी नइ रोही।
बाल श्रमिक कोनो झन राहय, चलौ जतन हम करबो
खातू-पानी पाके बिरछा,लटलट ले तो फरथे।
अँधियारी घपटे जिनगी मा, दुख के आँसू झरथे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
लोकाक्षर,FB बाल श्रमिक दिवस 12/6/21
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के हार्दिक बधाई।
योग
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(कुकुभ छंद)
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मनखे ला सुख योग ह देथे, मन बगिया बड़ ममहाथे।
योग करे तन बनै निरोगी,धरे रोग हा मिट जाथे।।
सुत उठके गा बड़े बिहनिया, पेट रहय जी जब खाली।
दंड पेल अउ दउँड़ लगाके, हाँस हाँस ठोंकव ताली।।
रोज करव जी योगासन ला,चित्त शांत मन थिर होही।
अंतस हा पावन हो जाही,तन पावन मंदिर होही।।
नारी नर सब लइका छउवा,बन जावव योगिन योगी।
धन माया के सुख हा मिलही, नइ रइही तन मन रोगी।।
जात पात के बात कहाँ हे,काबर होबो झगरा जी।
इरखा के सब टंटा टोरे,योग करव सब सँघरा जी।।
जेन सुभीता आसन होवय,वो आसन मा बइठे जी।
ध्यान रहय बस नस नाड़ी हा,चिंता मा झन अँइठे जी।।
बिन तनाव के योग करे मा,तुरते लाभ जनाथे गा।
आधा घंटा समे निकाले, मन चंगा हो जाथे गा।।
सुग्घर अनुलोम करव भाई,साँस नाक ले ले लेके।
कुंभक रेचक श्वाँसा रोके, अउ विलोम श्वाँसा फेके।।
प्राणायाम भस्त्रिका हवय जी, बुद्धि बढ़ाथे सँगवारी।
अग्निसार के महिमा सुंदर, भूख बढ़ाथे जी भारी।।
हे कपाल भाती उपयोगी, अबड़ असर एखर होथे।
एलर्जी नइ होवन देवय, सुख निंदिया मनखे सोथे।।
कान मूँद के करव भ्रामरी,भौंरा जइसे गुंजारौ।
माथा पीरा दूर भगाही, सात बार बस कर डारौ।।
ओम जपव उद्गीत करव जी, बने शीतली कर लेहौ।
रोज रोज आदत मा ढालव, आड़ परन जी झन देहौ।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़(CB)
चितचोर
-----(मत्तगयंद सवैया)----
धेनु चरा अउ रास रचा बँसुरी ल बजा चितचोर कहाये।
दूध दही जब बेंचयँ ग्वालिन मार गुलेल म रार मचाये।
चोर बने तैं माखन खातिर दू मन आगर खाय खवाये।
मातु जसोमति ला रिसवा सिधवा बन के तँय पेंड़ बँधाये।
मार अकासुर मार बकासुर ग्वाल सखा मन ला ग बँचाये।
खेलत गेंद गिरे जमुना तब नाँग के नाक म नाँथ लगाये।
धर्म धजा धरके मन मोहन पाप मिटा पुन ला बगराये।
कंस ला मार डरे पटके मथुरा नगरी म धजा फहराये।
दीन दुखी परजा मन ला हिरदे म बसा तँय लाज बँचाये।
मूँड़ ल काट डरे शिशुपाल के चक्र सुदर्शन हाथ घुमाये।
कौरव के कुल नाश करे बर तैं महभारत जुद्ध कराये।
देख दशा बिगड़े यदुवंश के आपस मा लड़वा मरवाये।
(CB, FB30/8/21 जन्माष्टमी)
चमके बिजुरी
(सुंदरी सवैया)
चमके बिजुरी गरजे घुमड़े करिया बदरा बरसे मनमाँड़े।
नदिया नरवा तरिया डबरा छलके कुलके सरसे मनमाँड़े।
झकझोरत सावन आय हवै बिरही तन हा तरसे मनमाँड़े।
बहिनी बिटिया मन जी झुलथें मचिके झुलना मनमाँड़े।
(CB)
असाड़ आगे
-----लावणी छंद----
आगे हवय असाड़ महीना,बादर हा उमड़त हावय।
झूमत हवय पवन पुरवइया, बिजुरी नैना चमकावय।
कोन धरे हे पोठ नँगारा, मनमाँड़े हावय ठोंकत।
पानी धार ओंरवाती के,अँगना अँचरा हे झोंकत।।
सुते बेंगवा जागे हावय,टरर टरर हे टर्रावत।
झिंगुरा छत्तीस राग धरके, ऊँचा सुर मा हे गावत।।
जुगजुग जुगजुग चमक जोगनीं, उड़त हवयँ एती वोती।
बतरकिरी मन बतर पाय हें, दिखत हें चारों कोती।।
पानी पा चारा हरियागे,बहे लगिस नरवा नदिया।
जीव बाँचगे रुखुवा मन के,खुलखुल हाँसत हे तरिया।।
काँटा खूँटी बिन डारिन सब, खातू तको पलागे हे।
मेंड़ पार हा चातर होगे, नाँखा मुँही रुँधागे हे।।
छानी परवा टपड़ागे हे, खपरा ला हें लहुटाये।
साँप वाँप के डर मा जम्मों, हे मुसवा बिला छबाये।।
चौमासा बर जतन डरें हें, पैरा लकड़ी अउ छेना।
नून तेल हरदी मिरचा के, होगे हे लेना देना।।
बिजहा खेत छिंचागे भाई, अरा तता टेही परगे।
मुठिया दाबे रेंगय मोहन, बीता भर नाँगर गड़गे।।
(CB)
सावन
---(कुण्डलिया)
सावन के हावय झड़ी, गावै रिमझिम बूँद।
रेंगत हे अबड़े गली, पगली कस अँख मूँद।
पगली कस अँखमूँद, हवा जुड़ जुड़ हे लागत।
दिन मा हे अँधियार, घटा हे पल्ला भागत।
बादर ढोल बजाय, बिजुरिया लगै डरावन।
बिरहिन हवै उदास, आय हे जब ले सावन।
सावन मनभावन हवै, हरियर हरियर खार।
बादर दउँड़त आय हे, जोर मया के तार।
जोर मया के तार, नदी नरवा हा कुलकै।
भरे लबालब ताल, पार ले लहरा बुलकै।
बाढ़े धान बियास, हरेली परब मनावन।
किरपा करथे शंभु, अबड़ शुभ होथे सावन।
तीजा पोरा (कुण्डलिया छंद )
मइके मा दीदी रथे, पावन तीज उपास ।
दोनों कुल मा भर जथे, सुख के बने उजास।।
सुख के बने उजास , करे पूजा गौरा के ।
जिनगी मीठ सुहाय , खाय करु कौरा के।।
रहिथे कठिन उपास , भूँख पानी ला सइके।
दीदी अस्सी पार , तभो ले आके मइके ।।1
पोरा तीजा पर्व हा , छत्तीसगढ़ी शान।
बेटी बहिनी के अबड़ , होथे भाई मान।।
होथे भाई मान , भेंट लुगरा के मिलथे ।
करके निक सिंगार , फूल कस बेटी खिलथे ।।
पावय बड़ सम्मान , आय लेगे बर जीजा।
बाँटै प्रेम दुलार , हमर हे पावन तीजा ।।2
चोवा राम " बादल "
हथबंद
(Fb 10/9/2018)
परम पूज्य महात्मा गाँधी जी अउ लाल बहादुर शास्त्री जी ला शत शत नमन।
गाँधी जी
------------------
(सार छंद मा)
घोर गुलामी बेड़ी जकड़े, जनता हा जब रोथे।
ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।
सत्य अहिंसा के रसता मा, बिछे रथे बड़ काँटा।
बैरी मन दुर्वचन सुनाथें, सहे ल परथे चाँटा।
आन ल देके सेज-सुपेती, खोर्रा मा खुद सोथे।
ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।
मारै नहीं मार सहि जाथे, शांति धजा फहराथे।
प्रेम-घड़ा भर मूँड़ी बोहे,भभके क्रोध बुझाथे।
बापू जी के अनुयायी हा, भाईचारा बोथे।
ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।
गाँधी जइसे बनना दुश्कर, फेर असंभव का हे?
वोकर दे मानवता मंतर, दुनिया हा तो पा हे।
हरिया जाथे हिरदे बिरवा, बादर त्याग उनोथे।
ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।
गाँधी जी के अगुवाई मा, मिलगे हे आजादी।
दुख हे अब तो कुछ नेता मन, लावत हें बरबादी।
करे ओड़हर गाँधी जी के, कोन जहर बड़ मोथे।
ये धरती के भाग जगे मा, गाँधी पैदा होथे।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
लोकाक्षर, खुला मंच, fb 2/10/21
शरद पूर्णिमा
-----(मुक्तामणि छंद)--------
शरद पूर्णिमा रात के, बगरे फिटिक अँजोरी।
हे चकोर मनमोहना, अउ राधिका चकोरी।
नंदलाल नचवात हे,बंशी मधुर सुनाके।
महारास ला देख के, कुलकै जल जमुना के।
हरहुना हा पाक गे, माई माथ नवाये।
लक्ष्मी हा अवतार ले, हमर खेत हे आये।
फुरहुर जुड़ लागै हवा, घाम तको मन भावै।
भुँइया मा चारों डहर, हरा बिझौना हावै।
ओस-बूँद नथली पहिर, दूबी हा मुस्कावै।
तरिया देवै ताल निक, नरवा गीत सुनावै।
झुरझुर बोलै झोरकी,पतरावत हे धारी।
बादर अब छावै नहीं, हे लहुटे के पारी।
चंदा मामा खीर मा ,अमरित ला टपकाबे।
खाबो हम परसाद ला, जम्मों रोग भगाबे।
दुनिया मा सुख शांति हो, घर-घर मा खुशहाली।
कातिक आवै झूमके, मानन बने दिवाली।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
FB 20/10/21
छत्तीसगढ़ महतारी
(लावणी छंद)
झलकत हे इक्कीस बरस के, तोर तेज मुख मंडल मा।
माथ मटुकिया रुपिया सूँता, शोभा बाढ़े पल पल मा।
अरपा पैरी महानदी के, निरमल पानी गुन गाथे।
बस्तर के घन छँइहा बइठे, सुख हा सिरतो सुख पाथे।
राजिम सिरपुर अउ गिरौद मा, महिमा के चिनहा भारी।
चंद्रखुरी के रहिस दुलौरिन, रामचंद्र के महतारी।
माँ गंगा झलमला बिराजे,धाम रतनपुर महमाई।
राँवाभाँठा के बंजारी,डोंगरगढ़ के बमलाई।
हे खदान करिया सोना के, बाक्साइट अउ लोहा के।
जगा जगा सिरमिट के पथरा, मिल हे उसना पोहा के।
छलकत रइथे धान कटोरा, भरे भरे कोठी रहिथे।
भाईचारा अउ सुन्ता के,फुरहुर पुरवइया बहिथे।
करमा सीख करम के देथे, दरद ददरिया हा हरथे।
राउत नाँच सुआ पंथी हा, अंग अंग मा रस भरथे।
रीत रिवाज सबे हे सुंदर, मँदरस कस मीठा बोली।
तीजा पोरा परब हरेली,देवारी झमकत होली।
निसदिन जाँगर पेर कमइया, हे सपूत सरु हलधरिया।
मन के उज्जर सच के संगी, भले हवै तन हा करिया।
तोर पाँव मा माथ नवावँव,मोर छत्तीसगढ़ महतारी।
अबड़ फबे धाने के बाली, देवी तैं हँसिया धारी।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
Fb, khula manch, lokesh kar 1/11/21
किसान अउ किसानी
-----------------------(मनहरण घनाक्षरी)
काँटा खूँटी बिन बान, काँद दूबी छोल चान, डिपरा ला कोड़ खन, खेत सिरजाय जी।
घुरुवा के खातू पाल, सरे गोबर माटी चाल, राखड़ ला बोरी- बोरी, छींच बगराय जी।
बिजहा जुगाड़ करे, बोरी बोरा नाप धरे, नाँगर सुधार करे, जोखा ला मढ़ाय जी।
सबो के तैयारी करे, राहेर ओन्हारी धरे,बदरा असाड़ के ला, किसान बलाय जी।
रिमझिम पानी गिरे, कभू तेज कभू धिरे, गरज बादर बैरी,भारी डरुवाय जी।
चमक चमक चम, बिजुरी के झमा झम, रटाटोर पानी गिरे, डोली भर जाय जी।
नाँखा मूँही फोर पार, नरवा मा बरो धार,बिजहा छिंचाय तेला, सरे ला बँचाय जी।
दुबारा तिबारा छिंचे,कोपर मा तको इँचे, देखत किसान श्रम, श्रम सरमाय जी।
देखत बियासी आगे, बाढ़े धान खुशी लागे, चभरंग चभरंग, नाँगर चलाय जी।
लेंझा चाल धान खोंचे, बदौरी ला दाब नोंचे, साँवा बन नींदे चूहा, कनिहा नँवाय जी।
यूरिया पोटाश डार, करगा ला ईंच मार,कीरा फाँफा मारे बर, दवई छिंचाय जी।
पाके धान लुए लाने, मिंजे कूटे कोठी भरे,भुँइया के भगवान, नइ सुरताय जी।
--------------------
*हे भगवान!!!*
(जयकरी छंद)
बेमौसम होगे बरसात।
हे किसान बर जब्बर घात।
खेत लुवाये हाबय धान।
देखत नइ अस का भगवान।
हलधरिया हाबय बक्खाय।
माथा ठोंकत कइथे हाय।
मूँड़ म वोकर गिरगे गाज।
हाबय झपटे दुर्दिन बाज।
मुँह के कौंरा हवै छिनाय।
नींद तको रतिहा नइ आय।
चिंता के धर ले हे रोग।
घबरावत हें लइका लोग।
धरे जरी करियाही धान।
कटवा कीरा लेही प्रान।
बदली घपटे सुरुज लुकाय।
कइसे गिल्ला खेत सुखाय।
चौपट होगे खेती खार।
प्रभुजी बिपती झटकुन टार।
करे आसरा हाबन तोर।
अइसन झन सबके मन टोर।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
FB,LOKAKSHAR 13/11/21
अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि
-------------------------------
वंदन हवै शहीद ला, छत्तीसगढ़ के लाल।
प्राण लुटादिस देश बर, सीमा के बन ढाल।
सीमा के बन ढाल, करै जे हा रखवारी।
देइस वो बलिदान, संग बेटा अउ नारी।
जन-जन ला हे दु:ख, आतमा करथे क्रंदन।
कर्नल वीर सपूत, करत हँव तोला वंदन।
सेना के जे वीर मन, दे हाबँय बलिदान।
श्रद्धांजलि अरपित हवय, अमर रखै भगवान।
अमर रखै भगवान, खून बिरथा नइ जावय।
उग्रवाद के अंत, लिखाये जेमा हावय।।
बदला लेहीं मार,टोर बैरी के डेना।
बनके काल समान, हमर भारत के सेना।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
FB 14/11/21
*छत्तीसगढ़ राजभाषा दिवस के हार्दिक बधाई। जै जोहार।*
🙏🙏🙏🌹🌹🌹🙏🙏🙏
*छत्तीसगढ़ी भाषा*
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(कुकुभ छंद)
अपने घर मा दासी काबर, छत्तीसगढ़ी भाषा दाई।
अंग्रेजी हा राज करत हे,वोकर पावर हे हाई।।
राजकाज एमा नइ होवय,बनके रहिगे बस शोभा।
पढ़ई लिखई कोन कराही,गड़थे का जइसे खोभा।।
कभू परीक्षा रोजगार बर, काबर नइ होवय एमा।
साहित के हे भरे खजाना,नीक व्याकरण हे जेमा।।
गूढ़ ज्ञान सँग भाव झलकथे,संस्कृति के घन फुलवारी।
लोकगीत हे,लोककथा हे,तीज तिहार हवै भारी।।
अरथ भरे जस मँदरस गुत्तुर, कान परे अमरित बानी।
बोले मा हे निचट सोझवा, निर्मल जस गंगा पानी।।
मातु कोसला के ममता हे, रघुराई के मरजादा।
करमा सुवा ददरिया पंथी, बोली बतरा बड़ सादा।।
आवव छत्तीसगढ़ी भाखा के, गौरव सबो जगाना हे।
कोटि कोटि हम बेटी बेटा, वोखर हक देवाना हे।।
नइये वो दिन हा अब दुरिहा,छत्तीसगढ़ी हा अगुवाही।
राजकाज हा खच्चित होही, संविधान मा जुड़ जाही।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
खुला मंच, FB 28/11/21/ छत्तीसगढ़राजभाषा दिवस
जेठौनी/तुलसी बिहाव के हार्दिक बधाई
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जेठौनी
(बरवै छंद)
कातिक एकादशी के, श्री हरि जाग।
देव मनुज के गढ़थे ,सुग्घर भाग।।
गाँव शहर मा होथे, अबड़ उछाह।
लहरा कस लहराथे, भगति अथाह।।
होथे पावन पूजा, पाठ उपास।
दियना रिगबिग रिगबिग, करय उजास।
गउरा गउरी मूरति, ला बइठार।
चढ़ा फूल नरियर अउ, चाँउर दार।।
बाजा फौज फटाका, सँग परघाय।
करथें तहाँ विसर्जन, माथ नवाय।।
शालिग्राम तुलसी के, आज बिहाव।
भगत संग हे प्रभु के, कहाँ दुराव।।
मँड़वा सुंदर गुत्तुर, छा कुसियार।
माँग मनौती मन के,भाँवर पार।।
काँदा-कूसा भाजी, भोग लगाय।
चूरी-चाकी चुनरी, तको चढ़ाय।।
उच्छल मंगल शादी, नीक तिहार।
जेठौनी के महिमा, अगम अपार।।
बाँध सोहई गउ ला, राउत आज।
आसिस देवत जाथे, सुग्घर काज।।
हाथा पारे घर घर, ग्वालिन आय।
धान-पान सूपा भर, इज्जत पाय।।
देके आसिस पावै, सुग्घर दान।
काहै अन धन देवय, सब भगवान।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
Fb 19/11/21 गुरुनानक जयंती,जेठौनी
छत्तीसगढ़ी भाषा म रुबाई
💐💐💐💐💐💐💐💐
*जड़काला*
हाथ गोड़ हा काँपत हावय,इँतरावत हे जड़काला।
हाड़ा-हाड़ा हवय पिरावत, जस कोनो कोंचे भाला ।
बुढ़वा उम्मर तन हे जर्जर,डाढ़ा डाढ़ा झन्नाथे
जिनगी होगे जेल बरोबर ,नाक बहे जइसे नाला।
दिखे सुरुज हा झुक्कुर झाकर, ठंडागे वोकर ज्वाला।
घाम तको अल्लरहा होगे,परे पूस के हे पाला।
सुरसुर सुरसुर सीत लहर मा,छुई मुई कस तन होगे
घेरी बेरी चाय सुहाथे,अदरक अउ तुलसी वाला।
बड़े बिहानिया धुँधरा छाये, सादा- सादा के जाला।
बंद नहाँना होगे हावय, बंद हवै पूजा माला।
घेख्खर जाड़ा नइ तो भागय, मूँड़ पिराथे जी भारी
लादे रहिथन कथरी कमरा ,अउ ओढ़न काला काला ।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
Fb 24/12/20 ka
भारत रत्न ,पूर्व प्रधानमंत्री, परम श्रद्धेय,युगपुरुष अटल बिहारी बाजपेयी जी ला भावभीनी श्रद्धांजलि
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सरल हृदय नित सेवाभावी,
अटल इरादा वाला।
दीन दुखी के हितवा सेवक,
बगरे अमर उजाला।।
कविकुल गौरव अद्भुत नेता ,
बोलच मीठा वाणी।
भरे भाव मा सरस शब्द ले,
रचे काव्य कल्याणी।।
भारत रत्न निराला वक्ता,
शांतिदूत हितकारी।
राजनीति के कुशल खिलाड़ी,
चिंतक संयमधारी ।।
देशभक्त तैं रतन दुलरवा,
जग मा अलख जगाये।
हमर राष्ट्रभाषा के महिमा,
चारों खुँट बगराये।।
जन जन के मन मंदिर मा,
रहिबे सदा बिराजे।
अटल नाम के पावन डंका,
तीन लोक मा बाजे।।
सुरता 'बादल' आवत हावै,
रहि रहि नयन दुवारी।
श्रद्धांजलि अर्पित हे तोला,
बंदवँ अटल बिहारी।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
FB 25/12/21 अटल बिहारी जयंती
*गणतंत्र दिवस*
(लावणी छंद)
परब हमर गणतंत्र दिवस ला, जुरमिल के हमन मनाबो।
जुलुस निकाले गाँव-गाँव मा, धजा तिरंगा फहराबो।।
सदी बीसवीं सन पचास मा, संविधान लागू होइस।
जेन गुलामी के कलंक ला, सबके माथा ले धोइस।।
जनता बर जनता के शासन, जेकर सुग्घर कहना हे।
सबो धर्म के आदर करके, भेदभाव बिन रहना हे।।
समता अउ भाईचारा के, जेकर फूँके मंतर हे।
सब मनखे हें एक बरोबर, नइतो कोनो अंतर हे।।
कानूनी अधिकार सबो के, स्वतंत्रता पूर्वक जीना।
संविधान के पालन करके, बिन भय के ताने सीना।।
भीमराव के अगुवाई मा, पावन कानून बने हे।
धारा धारा मानवता के, निश्छल भाव सने हे।।
रघुवंशी के मर्यादा हे, हवै बुद्ध के निर्भयता।
मनमोहन के योग क्षेम हे, भगीरथी के कर्मठता।।
क्रांति जोत लक्ष्मीबाई के,गुरु गोविंद जुझारू हे।
अकबर,टीपू,तात्याटोपे, संस्कृति हमर मयारू हे।।
भारत माता के अँगना मा, रंग बिरंगा गुलदस्ता।
अनेकता के बीच बीच मा, हवै एकता के रसता।।
श्रद्धांजलि ला अरपित करके, गुन शहीद मन के गाबो।
भारत माता के जयकारा, दसों दिशा मा गुंजाबो।।
चोवा राम वर्मा ' बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
02/01/22
जय जग जननी(त्रिभंगी छंद-लय-परसत पद पावन)
जय हे जग जननी, करौं सुमरनी, दुख घपटे ला मोर हरो।
तँय चिंता ला हर, मातु दया कर खात हवे मन करो करो।
हे बाज लचारी, झूठ लबारी, बड़ झपटे कहि धरो धरो।
बन सगा करीबी, भूख गरीबी, तन अँउटाथे जरो जरो।
छल दोष भरे हे, लोभ धरे हे, मति विवेक ला बाँध हने।
हँव घोर अज्ञानी, कर मनमानी, क्रोध भरे हे तने तने ।
मन ला भरमाथे, अबड़ घुमाथे, भोग दुरासा बने ठने।
हे अरज सुनो माँ, पाप हरव माँ, विपति फाँस ला छोर बने।
पोंछ आँसू(कामरूप छंद)
दुखिया ला देख, तैं ह सरेख,पोंछ आँसू नैन।
दुःख दूसर के, दूर करके, मिले मन ला चैन।
हरसे भगवान, बात ल जान, कहे वेद पुरान।
बाँट के खाबे, पुण्य पाबे, होय जग सम्मान।
फोटका पानी, हे जवानी, होय तन हा राख।
मिलही सुख चैन, निर्मल नैन, मीठ बोली भाख।
गहिरा हे खोह, फाँसत मोह, फेंक इरखा छाँट।
मनखे ला जोर, प्रेम बटोर, घरो घर तैं बाँट।
दोहा गीतिका
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पूस के पानी
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राहु केतु कस धुंध मा , जिनगी हे जकड़ाय।
शनि कस ग्रासे जाड़ मा, दुर्दिन बदरी छाय।।
आये दिन पानी गिरै,भिंज भिंज काँपै पूस
घेरी बेरी गोरसी, मा छेना सिपचाय। ।
खोर्र खोर्र खाँसै बबा, कथरी कमरा लाद
लइका मन के नाक हा, जस नरवा बोहाय।।
चुरुमुटु हो बइठे रथे, दादी कउड़ा तीर
रहि रहि के दाई हमर, चाहा ला डबकाय।
सुसायटी मा हे परे, गिल्ला होके धान
तेकर चिंता मे ददा, रोज रोज दुबराय।
हे पताल मिर्चा गले, बखरी हे बेहाल
झरगे सेमी फूल सब, भाँटा अबड़ कड़ाय।
कोरोना के डर हवै, अउ मौसम के मार
मातु प्रकृति हे लागथे, कसके हवै रिसाय।
12/1/22
Fb
छेरछेरा
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(चंद्रमणि छंद)
अरन बरन कोदो झरन, देबे तभ्भे हम टरन।
लइका मन सब आय हें, छेर छेर चिल्लाय हें।
आज छेरछेरा हवय,पावन पुन बेरा हवय।
सुग्घर आय तिहार ये, देथे जी संस्कार ये।
एकर जी इतिहास हे, फुलकैना के खास हे।
राजा चलन चलाय हे, जमींदार वो साय हे।
माँगे मा का लाज हे, परंपरा के काज हे।
सूपा मा भर धान ला,करथे धर्मिन दान ला।
दान करे धन बाढ़थे,मन के पीरा माढ़थे।
बरसा होथे प्यार के, आसिस अऊ दुलार के।
ढोलक माँदर ला बजा,माँगत आथे बड़ मजा।
डंडा नाचत झूम के, गाँव ल पूरा घूम के।
धन्य हवय छत्तीसगढ़, जेकर सुंदर कीर्ति चढ़।
भाँचा रघुपति राम हे, दया धरम के धाम हे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
Fb 17/1/21,लोकाक्षर-छंद के छ 6/1/23
*जय सुभाष*
(घनाक्षरी)
भारती के पीरा देख, चाकरी गोरा के फेंक, किरिया कठिन ठाने, नेताजी सुभाष तैं।
जय हिंद नारा देके, देश रक्षा प्रण लेके, हार कभू नइ माने, नेताजी सुभाष तैं।
देशहित खून माँगे ,युद्ध छोड़ नइ भागे, फौज घलो बना लाने, नेताजी सुभाष तैं।
चारों खूँट घूम घूम, माटी धुर्रा चूम चूम, दीन दुखी देव जाने, नेताजी सुभाष तैं।
तोर कथा बड़ सार, छोड़ दिए घर द्वार, क्रांति के उठा मशाल, मूँड़ बोहे भार ला।
अँगरेज अत्याचारी, दुख ला देइन भारी, लड़े डँट हर हाल, जोड़े वीर चार ला ।
जेल जाके दुख सहे , कभू उफ नइ कहे, जानकी प्रभा के लाल, सुनले पुकार ला।
नमन हे तोला वीर, 'बादल 'तैं धर धीर, नेताजी सुभाष के गा, याद हे संसार ला।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
लोकाक्षर प्रे 29/1/21
*बखरी*
*(मोद सवैया)*
-----------
*सुग्घर लागय जी बखरी मिरचा सम्हरे भाँटा भदराये।*
*लाल पताल दिखे बढ़िया सरसों धनिया भारी ममहाये।*
*पालक हा हरियाय हवे गद देखत चौलाई मुसकाये।*
*कूदत फाँदत हे कुँदरू घपटे अबड़े लौकी लमियाये।*
*कहमुकरी*
-----------
*नजर बँचाके ओहा आथे।
आरो पाके सप्पट जाथे।*
*देखत मैं करथँव हा दई*,
*का सखि प्रेमी ?ना सखि बिलई
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
लोका प्रे 12/2/22
कहमुकरी
-------------
पइसा राहत ले मुटुर मुटुर
होथे अब्बड़ खुसुर फुसुर
किम्मत वोकर जइसे सोन
का सखी प्रेमी, ना सखि फोन।
देख देख जेला मुस्काथँव।
घेरी बेरी तीर म जाथँव।
साज सँवागा पहिरे करधन।
का सखि प्रेमी, ना सखि दरपन।
रोज रोज वो झगरा करथे।
गोरसी कस गुँगवावत रहिथे।
तेकर ले अच्छा हे मौत
का सखी भाँटो, ना सखि सौत।
💐💐💐💐
दोहा दुमछल्ला
दिखत हवय घपटे बने, खेत खार अउ मेंड।
नोहय जी राहेर वो, आय चरौंटा पेंड़।
नँदावत हे ओन्हारी।
चरी होथे जी भारी।
कहिथे जी शिक्षित बहू, गोबर हा बस्सावय।
नइ समझय कतको बता, उम्दा खातू आय।
गैस आगे संगवारी।
नँदागे खरही बारी।
घर आये पहुना सहीं, हाथ गोड़ ला धोय।
मौसम हे अनचेतहा,पानी अबड़ रितोय।
लहुट जा अब तो बरसा।
बिसाबो लाली करसा।
🎂🎂🎂🎂🎂
बसंती कुण्डलिया
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लागत मउहा जाड़ हे, बड़े बिहनिया आज।
नहाँखोर तइयार हे,वो बसंत महाराज। वो वसंत महाराज ,कोहली देखत हावय।
चलना जाबो बाग, कुहुक के अरज सुनावय।
भंवरा हें सकलायँ, सबो संग जाहीं भागत।
रितु राजा सुन बात, अबड़,जी खुश हे लागत।1
रितुराजा हा जब चलिस,अँतर फुलेल लगाय।
कहर महर चारों डहर, अब्बड़ तो ममहाय।
अब्बड़ तो ममहाय, हवा हा गीत सुनावय।
घुँघरू चना बजाय, कमर सरसों मटकावय।
परसा लाली फूल, भेंट दय ताजा ताजा।
आमा मँउर धराय, झोंक लय सब रितु राजा।
(प्रेषित--चैनल इंडिया, देशबंधु, पत्रिका 21/2/22)
💐💐💐💐
छत्रपति वीर शिवाजी
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पइयाँ लागवँ गणपति गुरु के, हाथ जोड़ के माथ नँवाय।
बिनती सुन लौ शारद माता, भूले बिसरे देहु बताय।।
जस ला वीर शिवा के गाववँ, महिमा जेकर अगम अपार ।
क्षत्रिय कुल में जनम धरे तैं, कुर्मी जाति कहय संसार।।
किला बखानवँ शिवनेरी के, जनम लिए सोला सौ तीस।
नाम शिवाजी राखिस दाई,शिव भोला के पाय असीस।।
माता धरमिन जीजाबाई, पिता शाहजी सूबेदार।
कोणदेव गुरु के किरपा ले, सीखे तैं भाला तलवार।।
सिधवा बर तो अब्बड़ सिधवा, बैरी बर तो सँउहे काल।
परम भक्त माता तुलजा के, जय हो भारत माँ के लाल।।
धरम करम ले पक्का हिंदू, हिंदू के पाये संस्कार।
गउ माता के रक्षा खातिर, युद्ध करे तैं कतको बार।।
बालकपन में करे लड़ाई, बैरी मन ला दे ललकार।।
कब्जा करे किला मा कतको, लड़े लड़ाई छापामार।।
बीजापुर के राजा बैरी, नाम कहावै आदिलशाह।
तोर भुजा ला तउलत मरगे, फेर कभू नइ पाइस थाह।।
समझौता के आड़ बलाके ,लेये खातिर तोरे जान।
घात लगाये धरे कटारी, कपटी पापी अफजल खान।।
दाँव ह ओकर उल्टा परगे,समझ गये तैं तुरते चाल।
बघनक्खा मा ओला भोंगे,यमराजा कस बनके काल।।
देखे सेना ला मालव के, मुगलिया के जी घबराय ।
जइसे बघवा के तो छेंके,ठाढ़े हिरना प्रान गँवाय।।
अइसे फुरती जइसे चीता, भुजा म ताकत भीम समान।
रूप दिखय जस पांडव अर्जुन,धरे हाथ म तीर कमान।।
औरँगजेब बलाके दिल्ली, पकड़ जेल मा देइस डार।
फल के टुकनी मा छिप निकले, गम नइ पाइन पहरेदार।।
दसों दिशा मा डंका बाजय,धजा मराठा के लहराय।
कतका महिमा तोर बखानवँ,मोरे मति हा पुर नइ पाय।।
जै जै जै जै वीर शिवाजी, निसदिन तोर करवँ गुणगान।
जै होवय भारत माता के, जेकर बेटा तोर समान।।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
💐💐💐💐FB, अँगना, खुलामंच 19/2/22
औघड़दानी
(मोद सवैया)
---------------
देवन मा महदेव बड़े शिव शंभु हवै जी औघड़ दानी।
अंग भभूत रमाय रथे सिर ले झरथे गंगा जुड़ पानी।
दानव मानव भूत पिशाच सबो झन पूजैं संग भवानी।
देय असीस चढ़े धतुरा पतिया फुलवा भोला गुन खानी।
💐💐💐💐💐💐
बसंती कुण्डलिया
-------------// ------
*रितु राजा आये हवै, कामदेव हे संग।*
*हावय परघावत प्रकृति,चारों खूँट उमंग।*
*चारों खूँट उमंग,हवा सुग्घर ममहावै।*
*चुपरे लाल गुलाल, अबड़ परसा इँतरावै।*
*ढोल नगाड़ा झाँझ, गुड़ी मा घिड़कै बाजा।*
*फागुन हे मतवार,देख हाँसै रितु राजा।*
*मउहा रुखुवा मातगे, कउहा हे भकुवाय।*
*कुलकत हावय गँधिरवा,आमा गद मउराय।*
*आमा गद मउराय,गहूँ के चढ़े जवानी।*
*हावै भारी पाँव, पिंयारी सरसों रानी।*
*घुँघरु ला छनकाय, चना हा लउहा लउहा।*
*भँवरा हे बउराय,छकत ले पी रस मउहा।*
*कुहकत हावय कोइली, बइठे अमुवा डार।*
*सात धार रोवत हवै, सुनके बिरहिन नार।*
*सुनके बिरहिन नार,पिया के सुरता आथे।*
*छटपट छइया रात, सेज हा अगिन लगाथे।*
*करिया परगे अंग, रकत चिंता हे चुहकत।*
*उठथे हिरदे हूक,कोइली हावय कुहकत।*
(खुला मंच 15/3/22)
💐💐💐💐💐💐
विश्व कविता दिवस के हार्दिक बधाई।
कविता
(सुमुखी सवैया)
भरे निक भाव रहै कविता अउ दूर रहै ग सबो मल से।
कुभाव भरे कविता बिगड़े तुरते मति ले गिरथे खलसे।
न तो कवि हा भरमावय जी मन ला बड़ जाल बुने छल से।
कहाँ कब आय हवै कविता इहाँ ग बतावव जी बल से।
हवै कविता सविता सरिता कस पावन जी जलपान करौ।
इही तुलसी के रमायन ये प्रभु राम बिराजय ध्यान धरौ।
सबो झन संत महान कहे नित गावत सेवत पुण्य भरौ।
सुजानिक हौ सुन लौ बिनती रचके सदग्रंथ ग भार हरौ।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(FB 21/3/22 विश्व कविता दिवस)
💐💐💐
*कहिस बिजौरी-सार छंद*
सजे प्लेट मा हवै बिजौरी, रहि रहि के बिजराथे।
छुनहुन छुनहुन मन हा लागै, मुँह मा पानी आथे।।
दाऊ खाही तैं का खाबे, चल फुट मँगलू आगे।
कहिस बिजौरी हँसी उड़ावत,सुनके मति छरियागे।।
आय तिली हमरे उपजाये, लिस खरीद वो दाऊ।
नइ तो बाँचिस एको काठा , हम फाऊ के फाऊ।।
मूँग उरीद हमीं उपजाथन, पेट आन के जाथे।
कर्जा बोड़ी छूटे खातिर, मंडी जा बेंचाथे।।
करना चाही चेत हमूँ ला, हमरो लइकन खावैं।
रहना चाही हमरो घर मा, पहुना मन जब आवैं।।
चुर्रुस चुर्रुस ददा चबावै, कुर्रुस कुर्रुस दाई।
पापड़ संग बिजौरी फोरे, बने पोरसय बाई।।
चोवा राम 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
छंद के छ खुलामंच 24/3/22
🙏
*बोरे बासी, खेंड़हा---कुण्डलिया छंद*
खालौ अम्मट मा जरी, संग चना के साग।
बोरे बासी गोंदली, मिले हवै बड़ भाग।
मिले हवै बड़ भाग, पेट ला ठंडा करही।
खीरा फाँकी चाब, मूँड़ के ताव उतरही।
हमर इही जुड़वास, झाँझ बर दवा बनालौ।
बड़े बिहनिया रोज, नहाँ धोके सब खालौ।1
चिक्कट चिक्कट खेंड़हा, चुहक मही के झोर।
बासी ला भरपेट खा,जीव जुड़ाथे मोर।
जीव जुड़ाथे मोर, जरी सस्ता मिल जाथे।
मनपसंद हे स्वाद, गुदा हा अबड़ मिठाथे।
सेहत बर वरदान, विटामिन मिलथे बिक्कट।
बखरी के उपजाय, खेंड़हा चिक्कट चिक्कट।
चोवा राम 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
खुलामंच 27/3/22
*खेड़हा--उल्लाला छंद*
अलवा जलवा झन जानहू, जब्बर होथे खेड़हा।
पहलवान जइसे हो जथे, येला खाके रेड़हा।।
होथे लुदलुदहा केंवची, हरियर एकर डार हा।
सादा रइथे मुरई सहीं,एकर जर के सार हा।।
नयन जोत अच्छा बढ़ जथे, फुंडा होथे गाल हा।
जरी खाय ले ताकत मिलै,बढ़थे लुसकी चाल हा।।
मिलै विटामिन प्रोटीन सब, अउ रेसा भरमार हे।
वोकर बर हे वरदान ये, जेला पेट विकार हे।।
अमटाहा मही लगार मा,घुघरी संग मसूर के।
अबड़ मिठाथे जी खेड़हा, चपचपहा ये चूर के।।
चुहके मा आथे बड़ मजा, जरी झोर मा बोर के।
चाही हम ला तो राँधना, एकर भाजी टोर के।।
चोवा राम 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
खुलामंच 29/3/22
💐💐
बोरे बासी
(रोला छंद)
पानी डारे भात, कहाथे बोरे बासी।
ये सुग्घर जुड़वास, आय गर्मी के नासी।
पसिया प्यास बुझाय, दूरिहाके लू रहिथे।
जे हा एला खाय, झाँझ ला हाँसत सहिथे।
बासी अबड़ सुहाय, गोंदली सँग मा खाले।थोकुन डारे नून,चाब मिरचा सुसवाले।
मिलगे कहूँ अथान, स्वाद का कहिबे भाई।
ये हर दवा समान, भगाथे टेंशन हाई।
धरे शुगर के रोग, खाय बासी मिट जाथे।
होथे कायाकल्प, झड़क बुढ़ुवा फुन्नाथे।
बासी के गुन खास, सफाई करथे नस के।
खा मजदूर किसान, मेहनत करथें कसके।
बोरे बासी खाय, कलेक्टर आफिस जाही।
ठंडा रखे दिमाग, योजना बने बनाही।
बटकी भरे दहेल, एस० पी० धरही डंडा।
नइ होही अपराध, न्याय के गड़ही झंडा।
का गरीब धनवान, भोग ये छप्पन सब बर ।
संस्कृति अउ संस्कार,इही हे हमर धरोहर।
बासी गुन के खान,जेन हा एला खाथे।
छत्तीसगढ़ के मान, सरी दुनिया बगराथे।
चोवा राम ' बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
9926195747
(चैनल इंडिया, हरिभूमि, देशबंधू)
29/4/22 लोका 1/5/23
💐
1मई मजदूर दिवस विशेष
अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर(श्रमिक) दिवस मा श्रमशक्ति ला कोटिक नमन।
धन धन तैं मजदूर किसान।
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धन धन तैं मजदूर किसान ।
मेहनती सच्चा इंसान।
जय जय जय जय वीर जवान।
किसम किसम के अन उपजाय।
सरी जगत के भूख मिटाय।
हलधरिया नइ कभू थिराय।
फेर अपन हक ला नइ पाय।
चुहक डरिन तोला धनवान।
धन धन तैं मजदूर किसान।
मेहनती सच्चा इंसान।
जय जय जय जय वीर जवान।
मिलै नहीं रोजी भरपूर।
तेकर सेती हे मजबूर।
त्राहि-त्राहि करथे मजदूर ।
सजा भुगतथे बिना कसूर ।
जिनगी हावै जेल समान।
धन धन तैं मजदूर किसान।
मेहनती सच्चा इंसान।
जय जय जय जय वीर जवान।
सरी जिनिस ला जे सिरजाय।
जे हा रेल जिहाज बनाय।
ऊँचा ऊँचा महल उठाय।
सुख-सुविधा बर वो लुलवाय।
कारीगर के मरे बिहान ।
धन धन तैं मजदूर किसान।
मेहनती सच्चा इंसान।
जय जय जय जय वीर जवान।
चिंता मा झटके बनिहार।
फुन्नावै शोषक बटमार।
सत्ता होगे हवै लचर।
झूठा वादा के बौछार।
हे गरीब हा लहू लुहान।
धन धन तैं मजदूर किसान ।
मेहनती सच्चा इंसान।
जय जय जय जय वीर जवान।
'बादल' के कहना हे फेर।
समे बदलही नइये देर।
जाग जही मजदूर किसान।
होही तभ्भे नवा बिहान।
सबले हावच तहीं महान।
धन धन तैं मजदूर किसान।
मेहनती सच्चा इंसान।
मेहनती सच्चा इंसान।
जय जय जय जय वीर जवान।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(छंद के छ, FB 1/5/21)
💐
अक्ती तिहार
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शुभ मुहरत अक्षय तिथि हावय, कहिथें वेद पुरान।
एही दिन तो सतयुग त्रेता, रचे रहिस भगवान।।
चलौ मनाबो जुरमिल अक्ती, पावन तीज तिहार।
कर बिहाव पुतरा पुतरी के, सुग्घर साज सँवार।।
अक्षय फल मिलथे ये दिन तो,करना चाही दान।
जइसन देथे तइसन पाथे, पुण्यात्मा इंसान।।
प्यासा पंछी बर बिरछा मा, भरे सकोरा टाँग।
प्याऊ खोले भरदे करसी, राही पीही माँग।।
हे बइसाख मास मा गरमी,मनखें बइठ थिरायँ।
छोटे मोटे कुँदरा छादे,आसिस देके जायँ।।
कोनो दुखिया के बेटी के, करदे आज बिहाव।
भुँखहा ला दू कौर खवादे, लेही तोरे नाव।।
दीन हीन के आँसू पोंछे, होही गंगा स्नान।
तिरथ बरत घर मा हो जाही, सफल जिंदगी मान।।
मन पतंग के डोरी थामौ, उड़ही भरे उमंग।
अनुशासन जीवन मा आही,सुख नइ होही भंग।।
देश प्रेम के अलख जगाबो, नइ त्यागन संस्कार।
भेदभाव के खाई पाटे, समता भाव उभार।।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
(छंद खजाना2021)
हमर अक्ती तिहार के हार्दिक बधाई।
अक्ती तिहार
---------------
(बरवै छंद)
हवै तृतीया के तिथि, शुभ दिन खास।
सबो डहर बगरे हे, पुण्य उजास।।
अबड़ दुलरवा हरि के, हे बइसाख।
अउ अंजोरी तेकर, पावन पाख।।
अक्ती छत्तीसगढ़ के,बड़े तिहार।
नेंग जोग सँग एमा, नेक विचार।।
गाँव शहर मा माते, बहुत बिहाव।
ये अबूझ मुहरत के, करे हियाव।।
पुतरा पुतरी भाँवर, ये दिन होय।
सद गृहस्थ के सुग्घर, पाठ सिखोय।।
पूजा कर धरती के, धान जगाय।
खेती बर हलधरिया, लगन लगाय।।
अक्ती के गुन गाथें, वेद पुरान।
अक्षय फल मिलथे जी, करलव दान।।
राहगीर मन बर तो , खोलव प्याउ।
'चोवा राम' के बिनती, सुनलव दाउ।।
टाँगौ जल चिरगुनिया, प्यास बुझाय।
पेंड़ लगादव कोनो, बइठ थिराय।।
परशुराम हा ये दिन, लिस अवतार।
मारिस पापी मन ला, हे उपकार।।
जुलुम करौ झन अउ मत,साहव मित्र।
दया मया के छापव, सुंदर चित्र।।
संस्कारी हे हमरो,रीत रिवाज।
चलौ बँचाके राखन, ऊँकर, लाज।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(लोकाक्षर,छंद के छ खुला मंच, FB3/5/22)
बइसाख के घाम
(रूपमाला छंद)
कोन घर ले तो निकलही,छूट जाही प्रान।
चरचरावत घाम हावय, जीवरा हलकान।
भोंभरा जरथे चटाचट,लू तको लग जाय।
लाल आँखी ला गुड़ेरय, हे सुरुज गुसियाय।
तात भारी झाँझ झोला, देंह हा जरिजाय।
जीभ चटकय मुँह सुखावय,प्यास बड़ तड़फाय।
का असो अब मार डरही,काल बन बइसाख।
लेसही आगी लगाके, कर दिही का राख।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(रचना-18/4/17, प्रेषित--लोकाक्षर व FB7/4/22)
जेठ--बइसाख
(शंकर छंद)
-----------------
भारी ताव बताते संगी, जेठ अउ बइसाख।
सुरुज अबड़ आगी बरसाथे, लेस करही राख।
ताते तात हवा चलथे जी,झाँझ देथे झोल।
हाथ गोड़ मुँह अइला जाथे,जीव डाँवाडोल।१
डबरी तरिया नदिया नरवा, अउँट के दुबराय।
मनखे अउ पशु पक्षी सब्बो, कष्ट अबड़े पाय।
घर मा खुसरे समे पहाथे, घाम मा हलकान।
टपटप टपटप गिरे पछीना, छूट जही परान।२
कूलर पंखा धोखा देथे, घुरुर घारर रोय। एसी फिरिज काम नइ आवय, गोल बिजली होय।
हंडा हँउला के पानी हा, तिपे जइसे चाय।
करसी तको ढेरिया देथे,थोर थार जुड़ाय।३
छिन परछी छिन खोली खुसरे,धुँकत धुँकनी थाम।
लटपट मा दिन रात पहाथे, लेत प्रभु के नाम।
मच्छर कुटकुट चाबत रहिथे, नींद रथे रिसाय।
जेठ गरम बइसाख जनाथे,राहु केतु समाय।४
चोवा राम 'बादल'
(रचना-28/3/17)
💐💐💐
महतारी
-----------
दोहा--
नान्हे ले बड़का करे, दे के मया दुलार।
दाई तैं भगवान अच,महिमा तोर अपार।।
खाये कौंरा बाँट के, बोली बोल सिखोय।
रेंगाये अँगरी धरे, दाई मया पुरोय।।
जग सुन्ना दाई बिना, सृष्टि उही सिरजाय।
करजा वोकर दूध के, नइ तो कभू छुटाय।।
(रचना--25/3/17
💐💐💐💐
दाई
-------
(दोहावली)
महतारी(दाई)
------------------
*हाथ जोर पँइया परवँ, हे महतारी तोर।*
*भूल चूक करबे क्षमा, अरजी हे कर जोर।।*
*हवय उधारी दूध के, नइ तो सकवँ चुकाय।*
*कोनो गलती मोर वो, तोला झन रोवाय।*
*घेरी बेरी लवँ जनम, कोरा दाई तोर।*
*घन ममता के छाँव मा, जीव जुड़ावय मोर।।*
*दाई के हिरदे गहिर, नइये कोनो थाह।*
*निसदिन जे संतान के, करत रथे परवाह।।*
*महतारी तोरे दरश, चारों धाम समान।*
*दाई के सेवा करै, बड़भागी संतान।।*
*माँ के बंदत हँव चरण, जे हावय सुखधाम।
*जेमा माथ नवाँय हें, यदुनंदन अउ राम।।*
*सेवा दाई के करे, जे मनखे हा रोज।*
*अँचरा मिलथे शांति के, सुख घर आथे खोज।।*
*दाई ले ये तन मिलिस, नीक मिलिस संस्कार।*
*मातु पिता हें देवता, करथें बड़ उपकार।*
*लहू लहू के बूँद मा, महतारी के अंश।*
*कण कण मा फइले हवय, मातु ईश के वंश।।*
*सबले बढ़के सृष्टि में,दाई तोरे मान।*
*पाले पोंसे गर्भ मा, तहीं आच भगवान।*
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(छंद खजाना म संकलित )
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*परिवार*
(जयकारी छंद)
संकट के साथी परिवार।
ककरो झन छूटै घर द्वार।
सबके हिरदे मया दुलार।
जुड़े रहै रिसता के तार।
भाई भाई मा दुरिहाव।
ये हा दुख के गहिरा घाव।
कमती होथे जभे लगाव।
सुख मा आ जाथे ठहराव।
मातु पिता हा मुड़का सार।
बोहे रहिथें जम्मों भार।
मिलै सदा उन ला सत्कार।
सेवा सँग मीठा व्यवहार।
कुलकत राहैं लइका लोग।
झंझट के झन राहै रोग।
बहिनी बेटी के सम्मान।
बनै बहुरिया घर के शान।
हिलमिल राहैं पास पड़ोस।
बिस्मिल्ला अउ राम भरोस।
सरग सहीं बन जाही देश।
नइतो रइही कोनो क्लेश।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
14/5/22
(परिवार दिवस लोकाक्षर 14/5/22)
💐💐💐💐💐
बादर दँउड़त आय
(गीत--सरसी छंद)
----------
जब जब भारी गरमी परथे,बादर दँउड़त आय।
रिमझिम रिमझिम बूँद बरसके, धरती ला नँहवाय।
पर दुख हरे अपन दुख सहिथें, महापुरुष अउ संत।
मातु पिता के दया मया के, कहाँ हवय जी अंत।
सबो खुशी झोली मा भरथें,इच्छा अपन मिटाय।
जब जब भारी गरमी परथे, बादर दँउड़त आय।
भक्त पुकारय व्याकुल होके, रोवत आँसू ढार।
उखरा पाँव दँउड़ के आथे, श्रीहरि पालनहार।
लाज बँचाथे द्रुपद सुता के,पहिरे चीर बढ़ाय।
जब जब भारी गरमी परथे, बादर दँउड़त आय।
नान नान पिलवा चिरई के,चींव चींव नरियाय।
खोज खोज के दाना पानी, महतारी हा लाय।
चाँट चाँट बछुरु ला गइया, अमरित दूध पियाय।
जब जब भारी गरमी परथे, बादर दँउड़त आय।
दीन हीन के रक्षा खातिर, जे हर देथे प्रान।
ये धरती मा वो हा असली, शूरवीर इंसान।
मुँह के कौंरा बाँट जे खाथे, बड़का दानी ताय।
जब जब भारी गरमी परथे, बादर दँउड़त आय।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(रचना-3/4/17)
Fb 14/5/22
चउमासा
---------------
वर्षा ऋतु के चार महीना, चउमासा कहलाथे।
सँग असाड़ सावन भादो के,माह कुँवार गिनाथे।।
मानसून पहुना बन आथे, बाँटे बर खुशहाली।
धरती दाई के अँगना मा, बगरावत हरियाली।।
अदरा के आरो ला पाके, दादुर टेर लगाथे।
करिया बादर घूम-घूम के, पानी ला बरसाथे।।
काँटा-खूँटी ता चतवारे, दूबी- काँद हटाके।
खेत किसनहा मन सिरजाथें, खातू ला बगराके।।
अरा-तता के टेही परथे, बिजहा खेत छिंचाथे।
लगते सावन होय बियासी, रोपाई भदराथे।।
भादो के बरसे पानी मा, धान ह पोटरियाथे।
लहुटत बरसा हा कुँवार के,कंशा ला झलकाथे।।
हवय महत्तम चउमासा के ,छत्तीसगढ़ मा भारी।
मना तिहार उपास रहे मा, मगन रथें नर-नारी।।
होथे शुरुआत हरेली ले,गेंड़ी धूम मचाथे।
नाँगर-बक्खर बइला के पूजा, गरुवा लोंदी खाथे।।
सावन मा शिवजी के पूजा,नागपंचमी राखी।
भादो जन्माष्टमी कृष्ण के, दुनिया बनथे साखी।।
तीजा-पोरा गनपति पूजा,पितर पाख हा आथे।
अउ कुँवार नवरात दसेरा, देवारी लकठाथे।।
रीत रिवाज हमर कतको हे,पुरखा हवैं बनाये।
मरम-धरम खेती-बारी के, माला सहीं गुँथाये।।
नइतो होवय बर-बिहाव हा, खेती मा बिपताये।
नदिया-नरवा के पूरा मा, कोन कहाँ आये-जाये।।
गृह प्रवेश अउ छट्ठी-बरही,नइ होवय चउमासा।
किच्चिर-कइया चिखला-माटी, का मंगल के आसा।।
खान-पान के चउमासा मा,ध्यान बने रखना हे।
अल्लम-गल्लम भाजी पाला, चिटको नइ चखना हे।।
चोवा राम 'बादल'
(खुला मंच 7/7/22)
तीजा
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(कुण्डलिया)
मइके मा आके रथे , बेटी तीज उपास।
छत्तीसगढ़ी संस्कार के, झोली भरे उजास।
झोली भरे उजास, मनावै औघड़दानी।
माँगै वो वरदान, सुखी हो पति जिनगानी।
लहुट जथे ससुरार,मया के डोर लमाके।
बेटी पाथे मान, सदा मइके मा आके।
पोरा तीज तिहार हा, हमर हवै पहिचान।
जम्मों बहिनी अउ बुआ, पाथें सुग्घर मान।
पाथें सुग्घर मान, भेंट लुगरा के मिलथे।
करके निक सिंगार, फूल कस बेटी खिलथे।
सरग लोक ले ऊँच, आय मइके के कोरा।
छत्तीसगढ़ के शान, परब ये तीजा पोरा।
भाँचा भाँची आय हें, दिन भर उधम मचायँ।
नाना नानी ला अबड़, बंदर नाच नचायँ।
बंदर नाच नचायँ, ममा के चढ़ें पिठइया।
गुड्डा के निक गोठ , सुहाथे टुड़बुड़ टइया।
कुलकत हे घर द्वार, प्रेम के पी रस साँचा।
हाबय गरब गुमान, राम हे हमरो भाँचा।
(Fb,अँगना,खुलामंच 30/8/22 तीजा no in note book)
तीजा के बिहान दिन
---------------------
तीजा परब बिहान दिन , सब्बो घर सत्कार।
तिजहारिन मन हें करत ,घूम घूम फरहार।
घूम घूम फरहार, बने हे रोटी पीठा।
मन भावै नमकीन,अइरसा पपची मीठा।
करू करेला साग, बजै कुर्रुस ले बीजा।
बाँटै मया दुलार, परब पावन हे तीजा।
जीजा लुकरू आय हे, बड़े बिहनिया आज।
चल झटकुन जाबो कथे, नइये चिटको लाज।
नइये चिटको लाज, हवै दीदी गुसियाये।
काहै जाबो काल, आज बस रात पहाये।
करथच तैं हलकान , भेज के मोला तीजा।
करत हवै मनुहार, सुने ये ताना जीजा।
झोला-झँगड़ी जोर के, बेटी हे तइयार।
सुग्घर तीज मनाय हे, फिरना हे ससुरार।
फिरना हे ससुरार, निंदाई हे पछुयाये।
लइका जाही स्कूल, वोकरो फिकर सताये।
जोहत होही सास, चेत सबके हे वोला।
चल ना कहिस दमाँद ,टँगागे सइकिल झोला।
गणराजा आये हवै ,परब चतुर्थी आज।
करबो पूजा पाठ हम, सफल होय सब काज।
सफल होय सब काज, देश मा सुख भर जावै।
मिटै गरीबी रोग, खुशी घर घर मा छावै।
उन्नति चारों खूँट, बजै सुमता के बाजा।
बढ़ै हिंद के शान, करै किरपा गणराजा।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(FB,अँगना, खुलामंच ,मधुर सा बालोद, रा क स ब बा मन मा प्रेषित 31/8/22)no in note book
मजदूर आय देव विश्वकर्मा
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मजदूर तैं अच विश्वकर्मा,जग तहीं सुघराय हच।
अपने भुजा के बल धरा ला,तैं सरग लहुटाय हच।
निर्माण जे अद्भुत हवैं सब,तोर हाबय गा गढ़े।
पथरा तको मा जीव डारे, रूप अद्भुत तैं मढ़े।
जादू हवै तो हाथ मा बड़, सब कला भंडार हे।
विज्ञान हे अउ ज्ञान खाँटी, वास्तु के निक सार हे।
कतकों किला कतकों महल हें,बाँध पुलिया हें नहर।
हें रेलगाड़ी कार मोटर,यान चढ़ करथें सफर।
छीनी हथौड़ी गीत गाथें,मेहनत के शान मा।
तैं देवता अच सुख सबो ला,बाँटथच वरदान मा।
संसा
सुख शांति के मजबूत गहिरा, आच सिरतो नेव तैं।
'बादल' नवाथे माथ तोला, विश्वकर्मा देव तैं।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(खुला मंच, fb, म सा प, वक्ता मंच, जनवादी ले सं आदि 17/9/22 विश्वकर्मा जयंती) no entry in note book
राम जप ले
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(आल्हा छंद)
राम नाम रस पी लौ भाई, मन के रोग सबो मिट जाय।
काम क्रोध इरखा ला मारै, बाढ़े लालच तको अँटाय।।
सूरदास तुलसी अउ मीरा, तरगें जम्मों जपके राम ।
संत मुनि सब ज्ञानी कहिथें,अंतकाल में आवय काम।।
भवसागर में भारी दहरा,मारे लहरा दुख भँवराय।
जिंनगी डोंगा ओमा फँसथे, तुरते आके राम बँचाय।।
दू आखर के भारी मंतर, वेद पुरान सबो के सार।
माया भूतनी जब डरवावय, बिना डरे ये मंतर मार ।।
चारों जुग मा अम्मर होगे,जपके राम वीर हनुमान ।
इसी नाम के परछो पाके,बनगें कतकों देव समान।।
घर मा तिरथ बरत हो जाही, निर्मल मन ले चारों धाम।
हरि चरन मा प्रेम जगाके, जइसे बनै जपौ गा राम।।
18/2/17
जिनगी के धूप छाँव
(आल्हा छंद)
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नइतो बरसै निशदिन बादर,जड़काला मा उहू थिराय।
उड़ जाथे जी रंग बसंती, चइत जेठ के आरो पाय।।
कभू हाँसथें नदिया नरवा ,भरे लबालब पानी देख।
बखत परे मा रोना परथे, सुखा लिखे करम के लेख।।
बालक पन खेलत मा बीते,आय जवानी मारे शान।
धरके आथे रोग बुढ़ापा, लाठी टेंकत निकले जान।।
कहाँ एक हे पाँचों अँगुरी,सब दिन होवय नहीं समान।
लड़े भीलनी संग म हारय, कृष्ण सखा अर्जुन बलवान।।
जेकर घर में हीरा मोती, सोना चांदी के भंडार।
हरिश्चंद्र राजा कस बिकगे, काँशी नगरी भरे बजार।।
दुख ला देखव सीतापति के, चउदा बरस गये वनवास।
बनवारी हा देखत रहिगे, यदुवंशी सब होगें नास।।
बीते रतिहा दिन हा आथे, बेरा ढरके धाम जुड़ाय।
सुख-दुख ला हँसके सहि लेथे, उही असल म ज्ञानी आय।।
(20/2/17)
नारी के सिंगार(गहना)
(दोहा छंद)
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अलंकार हा काव्य ला, जइसे जी सुंदराय।
ओइसने गहना तको, नारी ला सुघराय।।
रंग रंग के नाम हे,गहना हें भरमार।
कोनो लाखो मा मिलै,कोनो पइसा चार।।
नारी के गहना सबो, सेहत के औजार।
नाक कान ला छेद के, करैं रोग उपचार।।
नारी के सब हाल ला,गहना देय बताय।
विधवा बर पतझड़ सहीं,सधवा ला हरियाय।।
सिरके शोभा माँग मा, सेंदुर लाल बुकाय।
जइसे जी अँधियार मा,रिगबिग दिया जलाय।।
उपर किलिप खोंचाय हे,चूँदी झन उड़ियाय।
जस गरीब चापे रथे, रुपिया ला चपियाय।।
मच मच झूलय झूलना, लंबा बेनी तोर।
फुँदरा कनिहा संग मा, बात करै मुँह जोर।।
माथा के तो बीच मा, टिकली हे अनमोल।
उवत सुरुज कस लागथे,बम लाली अउ गोल।।
तने धनुष कस भौंह हे, नैना बान चलाय।
काजर आँखी कोर मा,मन हा जाय बँधाय।।
झुमका बारी कान के, खिले तरोई फूल।
डोलत बाला देख के, सुध बुध जाथवँ भूल।।
सुकवा कस फुल्ली दिखय, सुवा नाक मा तोर।
मुँहरंगी ला का कहवँ,अरझ जथे चित मोर।।
सारस कस निक घेंच हे,अबड़ फबत हे हार।
रुपिया पुतरी संग मा, मंगल सुँतिया सार।।
बहुँटा हाबय बाँह मा, करधन कमर लपेट।
लाली लुगरा पोलखा,ढँके पीठ अउ पेट।।
ककनी चूरी अउ पटा,पहिरे हाथ सजाय।
रचे हथेरी मेंहदी,मुंँदरी झाँक लजाय।।
पैरी बाजै पाँव के,छुनुर छुनुर हे बोल।
चाँदी के साँटी हवय, मुसकावत दिल खोल।।
एँड़ी मा माहुर रचे, लगै खोखमा फूल।
अँगठी के बिछिया तको, जाथे नजर मा झूल।।
धन हे वो भगवान हा,कुँवर गढ़े हे देंह।
अउ अंतस मा हे भरे ,महतारी कस नेंह।।
(4/3/17)
जनकवि श्री कोदू राम दलित जी ल समर्पित
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( कई ठन अमर छत्तीसगढ़ी गीत के रचइता, छंदकार पुरखा जन कवि के 52 वाँ बरसी के बेरा मा उँकर प्रिय कुण्डलिया छंद मा श्रद्धा के फूल अर्पित हे।) ---------------------------------------------------------
परजा के दुख दरद के,राखे अबड धियान ।
लिखना हितकारी लिखे, पुरखा हमर सियान ।
पुरखा हमर सियान ,ज्ञान के जोत जलाये ।
रचे गीत अउ छंद ,नाम तैं दलित धराये ।
काहय "चोवाराम", तोर किरपा के करजा ।
नइ तो कभू छुटाय ,छुटै कतको सब परजा ।
(Fb 28/9/16)
जय जग जननी
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जय जग जननी मातु भवानी,जय जग पालनहार।
शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।
आदि शक्ति जगदम्बा तोरे, शिवजी जस बगराय।
लक्ष्मीपति हा विनय सुनाथे, ब्रह्मा माथ नवाय।
भगत उबारे बर तैं लेथच, नव दुर्गा अवतार।
शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।
खप्पर वाली माता काली, रूप हवै बिकराल।
रूंड-मुंड के माला पहिरे, लफलफ जिभिया लाल।
ये धरती के भार हरे तैं, महिषासुर ला मार।
शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।
भस्मासुर ला भसम करे तैं, माया मा भरमाय।
चंड मुंड ला मार गिराये, शुंभ निशुंभ नसाय।
रक्तबीज के मूड़ी काटे, पिये लहू के धार।
शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।
लाल चुनरिया लाल सँवागा, शेर सवारी तोर।
रावाँभाँठा के बंजारी, निकले धरती फोर।
डोंगरगढ़ मा बमलाई के, लगे रथे दरबार।
शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।
कलजुगिहा अड़हा नइ जानवँ,पूजा पाठ बिधान।
मैं बेटा अँव तैं महतारी ,अतके हावय ज्ञान।
तोर भरोसा बल हे भारी, होही बेड़ापार।
शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(28/9/22 no entry,fb,खुलामंच,छत्तीसगढ़ी सा,लोकाक्षर25/3/22)
सँउहे देव समान।
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(सरसी)
हाड़- माँस के मनखे तन मा ,सँउहे देव समान।
बापू जी अउ लाल बहादुर, वीर सपूत महान।।
धोती डंडा चश्मा वाला, दुब्बर पातर देह।
दीन-हीन के हितवा मितवा, हिरदे भरे सनेह।
मानवता के परम पुजारी, राष्ट्रपिता पहिचान।
हाड-माँस के मनखे तन मा, सँउहे देव समान।
सत्य-अहिंसा ला नइ छोंड़े, पाये कतको कष्ट।
दुष्ट फिरंगी मन के शासन ,होइस तभ्भे नष्ट।
आजादी के अलख जगाये, जागिस हिंदुस्तान।
हाड़-माँस के मनखे तन मा, सँउहे देव समान।
छुआछूत के घोर विरोधी, चले सदा सदराह।
जनसेवा के तोर महात्मा ,नइये कोनो थाह।
कोढ़ी के अंतस मा देखे,बइठे हे भगवान।
हाड-माँस के मनखे तन मा,सँउहे देव समान।
कमल सहीं चिखला मा जागे, गुदड़ी के हे लाल।
जय जवान अउ जय किसान के, ऊँचा राखे भाल।
हिंदुस्तानी लाल बहादुर,तैं सच्चा इंसान।
हाड-माँस के मनखे तन मा,सँउहे देव समान।
जब ले चंदा सूरज रइही,अम्मर रइही नाम।
गाँधी जी अउ शास्त्री जी के, पावन हावय काम।
दुन्नों महापुरुष के 'बादल', करत हवै गुणगान।।
हाड़-माँस के मनखे तन मा ,सँउहे देव समान।
बापू जी अउ लाल बहादुर, वीर सपूत महान।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(लोकाक्षर 2/10/22, खुलामंच )no en
सुसकत हे जिनगानी
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उरक-पुरक के बरसत हावय, रोज-रोज ये पानी।
अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।।
ढनगत हावय खड़े फसल हा, बादर रइथे ढाँके।
कनकट्टा मन कुढ़होवत हें, बाली मन ला फाँके।
दुब्बर बर दू ठन असाड़ कस, होगे असो कहानी।
अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।
बढ़े प्रकोप तना छेदक के, चुहकत हावय माहो।
पाना-पाना मुरझावत हे, झुलसा के हे लाहो।
खैरा रोग धरे हे कसके, जी होगे हलकानी।
अइसन मा चौपट हो जाही,सिरजे हमर किसानी।
महमाया हे माथ नवाये, छटकन लागे सरना ।
कइसे अब हरहुना लुवाही, निच्चट होगे मरना।
इंद्रदेव हा काबर करथे,मँसमोटी- मनमानी।
अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।
नींद कहाँ परथे संसो मा, कइसे फसल बँचाबो।
मँहगी खाद दवा के करजा, काला बेंच पटाबो।
अंतस खबसे दुख के खीला, सुसकत हे जिनगानी।
अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।
चोवा राम ' बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(Fb, छग सा स ,मधुर सा स ,अँगना आदि 8/10/22) no entry
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(लोकाक्षर 2/10/22, खुलामंच )no en
गोवर्धन पूजा
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वन परवत धरती के रक्षा, गोवर्धन के पूजा आय।
गौ माता के सोर-सरेखा, इही हमर संस्कार कहाय।।
गौ माता के अंग-अंग मा,सबो देव के हावय वास।
अमरित कस गौ गोरस देथे,गोबर खेती बर हे खास।।
जंगल हरियर चारा देथे,परवत भरे रतन के खान।
रुख-राई आक्सीजन देके, हमर बँचाथे सिरतो प्रान।।
द्वापर जुग मा गिरिधारी हा, देइस सब ला निर्मल ज्ञान।
जेन हमर नित पालन करथे, वो भुँइया हे सरग समान।।
मरम धरम के कृष्ण-कन्हैया, ब्रजवासी ला रहिस बताय।
छोंड़ इंद्र के मान-गउन ला, धरनी के पूजा करवाय।।
बिपदा ला मिलजुल के टारौ, कहिस सबो ला वो समझाय।
छाता कस परवत ला टाँगिन, जबर एकता के बल पाय।।
एक बनन अउ नेक बनन हम, भेदभाव ला देवन त्याग।
तभे जागही ये कलजुग मा, भारत माता के तो भाग।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
(लोकाक्षर, fb, खुला मंच,मधुर सा प,वक्ता मंच,छ ग सा स, अँगना)
26/10/22 no entry
होगे नवा बिहान
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(सरसी/कबीरा/हरिपद/सुमंदर छंद आधारित)
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
धान कटोरा छलकत हावै, हें खुशहाल किसान।।
अपन हाथ मा बागडोर हे, खुदे गढ़त हन भाग।
लाड़ू सहीं बँधाये हावन, भिंजे सुमत के पाग।
जागे हावै गाँव-गाँव हा,जागे हे गौठान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
हे विकास के झंडा फहरे,दिल्ली नइये दूर।
अस्पताल अउ सड़क बनत हें,बिजली हे भरपूर।
कमी पाठशाला के नइये, दे बर शिक्षा दान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
सरी जगत मा उभरत हावैं, हमरो रीति-रिवाज।
लोक कला अउ लोक परब बर,होइस सुग्घर काज।
छत्तीसगढ़िया संस्कृति के, उज्जर हावै शान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
एक नवम्बर दू हजार सन,हावै तिथि बड़ खास।
श्रीयुत अटल बिहारी जी हा, रचिस नवा इतिहास।
छत्तीसगढ़ ला राज्य बनाके,देइस वो सम्मान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
कभू बिसारन झन तो संगी, पुरखा मन के त्याग।
धधकत राहै ऊँकर बारे,स्वाभिमान के आग।
देखौ इहाँ कहूँ झन झपटै, शोषण के चेचान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद ,छत्तीसगढ़
1/11/2022
(Fb, लोकाक्षर,अँगना,खुलामंच, वक्ता मंच, मधुर सा ,छतिसगढ़ी सा स)no entry
पाठ मिले हे
----------(लावणी छंद)------
रंगमंच ये दुनिया संगी ,हम सब पाठ करइया जी।
माँ के रूप धरे हे कोनो, कोनो बेटा भइया जी ।।
कहूँ दादा हा जाँगर पेरत, पालत पोंसत हावय जी ।
कतको झन आलस मा परके,बइठे-बइठे खावय जी ।।
मया मोह के नाना रिसता, घंटी घेंच बँधाये जी।
घुमरत हावन चारों कोती, घानी सहीं फँदाये जी।।
दाँत चाबके कतको झन ला, पइसा जोड़े ला परथे।
जीव छूटथे कहीं करले, सब कुछ छोड़े ला परथे।।
वो निर्देशक ऊपर वाला, सुग्घर मंच बनाये हे।
मालिक-नौकर, नेता-चमचा, सँघरा त़ो बइठाये हे।।
भीख कटोरा हाथ धरे जी, घुमत हावयँ जग कतको ।
चोर-उचक्का, डाँकू -गुंडा, करतथें बड़ झटको- झटको।।
साधु-संत हें तपसी-जोगी, भोगी भोग लगावत हें।
रक्षक मन भक्षक बनके जी, लूट-लूट के खावत हें।।
अजब निराला रंगमंच हे, प्रभु के गजब हवय लीला।
कोनो बाँचय बम बारुद ले, कोनो मरै गड़े खीला।।
जइसे करनी वइसे भरनी, वेद-शास्त्र ज्ञानी कहिथे।
करनी के फल अटल हवै गा, आज नहीं ते कल मिलथे।।
जेन पाठ प्रभू हा दे हावय, ओला बने निभावन जी।
विनती करन उही ईश्वर ले, बने भूमिका पावन जी।।
(27/3/18/3)
मन के हारे हार
(छंद रस 2 13/5/17 चौपई छंद)
मन में काबर जाथस हार।
फेंक निराशा छाँट निमार।
सबके होथे बेंड़ापार।
हिम्मत के धरले पतवार।
कतको दुख ला निसदिन पाय।
पाँडव राजा कहाँ थिराय।
ध्रुव बालक हा जंगल जाय।
होगे अटल अमर हरि पाय।
मन में ताकत भरे अपार।
लेबे जीत सकल संसार।
माथ पछीना तैं ओगार।
देख कहाँ हावच लाचार।
बखत परे काँटा गड़ जाय।
बइठाँगुर हा रोय पहाय।
मेहनती हा दँउड़ लगाय।
सुग्घर सुख के छँइहा पाय।
अंधविश्वास
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(छंद रस 2 ,13/05/17 ,चौपई छंद)
फइले हवय अंधविश्वास।
घपटे अबड़ विरोधाभास।
लोग करत हें उदिम पचास।
करे टोटका कतको खास।
कारी बिलई काटिच आड़।
कहिथें होही काम बिगाड़।
विधवा माँ दोखही कहाय।
लोग कहैं आगू झन आय।
खाली हँउला झन तैं देख।
दुच्छा होय करम के लेख।
घर ले निकलत आगे छींक।
टोंके बुता बिगड़थे खीक।
रतिहा कहूँ कुकुर नरियाय।
सब्बो रोग उहें सकलाय।
घुघुवा के बोली नइ भाय।
लछमी वाहन भले कहाय।
सब्बो बात गलत तो आय।
झूठ-मूठ सब खइता ताय।
बात सहीं विज्ञान देखाय।
सत मारग मा वो रेंगाय।
आवव छोंड़ अंधविश्वास।
जिनगानी मा भरन उजास।
कारज करबो सोच-विचार।
होही तभे हमर बढ़वार।।
💐💐💐
झन कर मना(हरिगीतिका छंद)
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झन कर मना तैं मुँह बना, बेटी अगर पढ़हूँ कहै।
बेटी तको औलाद ये, काबर उहू अनपढ़ रहै।
भर ज्ञान के भंडार ला, लछमी कहाही सरसती।
लड़ही बने भय भूँख ले ,सइही नहीं वो जादती।
आगू रही सब दँउड़ मा, थोकुन तहूँ हिम्मत बढ़ा।
वो नइ गिरै बिंसवास कर, तैं देख ले सीढ़ी चढ़ा।
कन्या रतन के कर जतन, अनमोल हीरा ताय जी।
कचरा म भाई फेंक झन, बड़भाग मानी पाय जी।
बेटी कहाँ कमजोर हे, वो शान घर परिवार के।
जब रूप जननी के धरै, धरखँध बनै संसार के।
अंतस दया सागर भरे, संगीत लहरा प्रेम के।
अँचरा म सुख के छांँव जी,वो ढाल विपदा टेम के।
(2/5/17 छंद रस 2)
चुलमाटी,मड़वा छवई
(लावणी छंद)
हे बिहाव के उर्थी माढ़े, मड़वा तको छवाना हे।
डूमर डारा अउ पाना ला,खेत-खार ले लाना हे।।
सकलायें ढेंड़हा सुवासा, नेंग-जोग करवावत हें।
हाँसत-कुलकत सबो सुवासिन,
चुलमाटी बर जावत हें।।
लइका-छउवा नाँचत हावैं,
गँड़वा बाजा घिड़कत हे।
मटमटहा भाँटो ला देखौ,
माटी कोड़त किड़कत हे।।
कोड़ तेलमाटी-चुलमाटी,
पर्रा जोरे लाने हें।
नवा-नवा लुगरा पाइन,
तभे ढेंड़हिन माने हें।।
हरदी तेल चढ़े हे तन मा,
बाबू हा मुस्कावत हे।
नवा गृहस्थी के सपना हा,
अब्बड़ रहि-रहि आवत हे।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(23/2/23 amrit anshu ko preshit)
छंद--रूपमाला/मदन छंद
रितुराज के शोभा
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जाड़ के खेदा करत हे, कुनकुनावत घाम।
रात हा लागे खिरन अउ,दिन दिनोंदिन लाम।
कोइली हा राग धरके ,हे सुनावत फाग।
मोहरी भँवरा बजावै,झूमरत हे बाग।
हे सजे रितुराज के निक,इंद्र कस दरबार।
मोंगरा झालर टँगाये,लाल टेसू द्वार।
चार तेंदू के सजावट,गूँथ आमा पान।
ठिन ठिनिन घंटी चना के, हे हवा फुरमान।
अप्सरा सरसों दिखत हे, सोन जइसे देह।
नैन मतवाली गहूँ के, हे लुटावत नेह।
इत्र मउहा बड़ छिंचत हे,गँधिरवा के संग।
मातगे हें डोंगरी वन, पी बसंती भंग।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
(खुला मंच 25/2/23)
होली के संदेश
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(आधार छंद--रोला)
इरखा-कचरा बार,मना लन सुग्घर होली।
रंग-मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
माया लगे बजार,हवै दुनिया हा मेला।
तोर-मोर के रोग,घेंच मा लटके ठेला।
जाथे खुदे भुँजाय,गरब जे जादा करथे,
लगे न कौड़ी दाम,बोलबो गुत्तुर बोली।
रंग मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
नइ ककरो बर भेद,करै सूरज वरदानी।
देथे गा भगवान,बरोबर हावा पानी।
मूरख मनवा चेत,जतन अब कुछ तो करले,
हरहा-गरब गुमान,धाँध अँधियारी खोली।
रंग मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
कतको बड़े कुबेर, चले गिस हाथ हलाके।
बड़े-बड़े बलवान,झरिन जस बोइर पाके।
बड़ अँइठाहा डोर, टूटथे खाके झटका,
गाल फुलाना छोंड़, सीख लन हँसी-ठिठोली।
रंग मया के घोर,भिंजो दे हिरदे-चोली।
(होलिका दहन 28/3/21,
प्रे--लोकाक्षर,खुलामंच,9/3/23)
चइत नवरात्रि प्रतिपदा
---------(सरसी छंद)-----
शैलपुत्री माँ आदि भवानी,होके बइल सवार।
आइस दु:ख हरे बर दुर्गा,सुनके भक्त पुकार।।
चइत महीना एकम तिथि के, महिमा अगम अपार।
एही दिन श्री ब्रह्मा जी हा,रचे रहिस संसार।।
विधना के काया ले निकले, हे जम्मों विस्तार।
तीन लोक अउ चउदा भुवना,पाँच तत्व हे सार।।
ऋषि-मुनि,ज्ञानी-विज्ञानी,सब्बो वेद-पुरान।
जोंड़ी-जाँवर मनु-शतरूपा,तेकर हम संतान।।
नदिया,नरवा,जंगल,पर्वत,आयँ सृष्टि के अंग।
हावय सबके गहरा नाता,जीव-जंतु के संग।।
आन एक हम कुटुम-कबीला,हवै बात ये सार।
मिलजुल के सब राहन सुग्घर, बाँटन मया दुलार।।
(चइत प्रतिपदा नवरात्रि प्रारंभ 22/3/23,fb,खुलामंच,वक्ता मंच,अँगना,मधुर सा परि म प्रेषित y)
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
शहीद दिवस
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(कुकुभ छंद)
भारत के आजादी खातिर, जे मन देइन कुर्बानी।
भगतसिंह ,सुखदेव,राजगुरु, हें शहीद उन बलिदानी।।
इंकलाब के बोलैं नारा,गोरा मन ला ललकारैं।
रक्त तिलक माथा मा साजे,कफन बाँध मुसकी ढारैं।।
अत्याचारी क्रूर फिरंगीं, हिन्दुस्तानी ला मारैं।
नाम निशान मिटाये ऊँकर,क्रातिवीर हाँका पारैं।।
जइसे बर तइसे बनके उन,बम बंदूक चलावैं।
नइ घबरावैं बिकट साहसी,मारैं नइते मर जावैं।।
स्वतंत्रता के महायज्ञ मा,होमिन हें भरे जवानी।
धन्य-धन्य हें धन्य वीर उन,गढ़ देइन अमर कहानी।।
माथ नवाये हावै 'बादल', आजादी धन हे पाये।
मुख ले निकलत हे जयकारा,श्रद्धा के फूल चढ़ाये।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
(शहीद दिवस 23/3/2023 प्रे--fb,खुलामंच,वक्ता मंच,म सा प आदि)
*आप सब ला छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के हार्दिक बधाई।*
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*होगे नवा बिहान*
(हरिपद/सुमंदर छंद मा गीत)
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छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
धान कटोरा छलकत हावै, हें खुशहाल किसान।।
अपन हाथ मा बागडोर हे, खुदे गढ़त हन भाग।
लाड़ू सहीं बँधाये हावन, भिंजे सुमत के पाग।
जागे हावै गाँव-गाँव हा,जागे हे गौठान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
हे विकास के झंडा फहरे,दिल्ली नइये दूर।
अस्पताल अउ सड़क बनत हें,बिजली हे भरपूर।
कमी पाठशाला के नइये, दे बर शिक्षा दान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
सरी जगत मा उभरत हावैं, हमरो रीति-रिवाज।
लोक कला अउ लोक परब बर,होइस सुग्घर काज।
छत्तीसगढ़िया संस्कृति के, उज्जर हावै शान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
एक नवम्बर दू हजार सन,हावै तिथि बड़ खास।
श्रीयुत अटल बिहारी जी हा, रचिस नवा इतिहास।
छत्तीसगढ़ ला राज्य बनाके,देइस वो सम्मान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
कभू बिसारन झन तो संगी, पुरखा मन के त्याग।
धधकत राहै ऊँकर बारे,स्वाभिमान के आग।
देखौ इहाँ कहूँ झन झपटै, शोषण के चेचान।
छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद ,छत्तीसगढ़
1नवम्बर2022 खुलामंच
मितान
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(कुण्डलिया)
दुख के बेरा संग दे,असली उही मितान।
मित्र बनाना चाहिये, आदत ला पहिचान।
आदत ला पहिचान,तभे नइ होही धोखा।
मिलही एक विचार,माढ़ही सुग्घर जोखा।
होना चाही मित्र,पाय बर जिनगी के सुख।
चिंतामणि कस आय, मित्र हर लेथे सब दुख।
चोवाराम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
मानसरोवर, 14/6/23
रथ चढ़े
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(कृपाण घनाक्षरी)
रथ चढ़े बड़े जान,जगन्नाथ भगवान,देवत हे वरदान, होवत हे गुणगान।
परब हे ये महान, रजुतिया के हे शान, भक्ति भाव के उफान, संस्कृति के आन बान।
पूजा पाठ जप ध्यान,यज्ञ होम दान पान, धर्म कर्म के गुनान,संस्कार के होथे ज्ञान।
रथयात्रा पहिचान,दूज तिथि फुरमान,पुरी बसे जग प्रान, पावन हे हिंदुस्तान।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(खुला मंच, 20/6/23 fb व अन्य)
योग भगाथे रोग
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(सोरठा छंद)
निसदिन करलव योग,मन मा सुग्घर ठान के।
दुरिहाही सब रोग, तन मन चंगा हो जही।।
भारत के ये ज्ञान, रिसि मुनि सब साधे रहिन।
योग हवै वरदान, पाही जेहा झोंकही।।
मिट जाथे अवसाद,ठंडा होथे चित्त हा।
करे ओम के नाद, रस झरथे अनुलोम मा।।
साधे साँस विलोम, तेज बढ़ाथे भस्त्रिका।
जइसे फरियर व्योम, अंतस निर्मल हो जथे।।
करथे जे व्यायाम, तेकर बल हा बढ़ जथे।
रेंग बिहनिया शाम, हवा जनाथे जस दवा।
रोग बढ़ाथे भोग, मर्यादा ला लाँघ के।
सुख पाथें सब लोग, जे मन के तन स्वस्थ हे।।
करथे योग किसान, माथ पछीना गार के।
सुग्घर हे पहिचान, मिहनत हा तो योग कस।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
(खुला मंच, fb 21/6/23 एवं अँगना,अन्य)अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस। no entry
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योग (कुकुभ छंद जँवारा तर्ज )
मनखे ला सुख योग हा देथे, मन बगिया हा ममहाथे।
योग करे तन बनै निरोगी, धरे रोग हा मिट जाथे।।
सूत उठके जी रोज बिहनिया, पेट रहय गा जब खाली।
दंड पेल अउ दँउड़ लगाके, हाँस हाँस ठोंकव ताली।।
रोज करौ जी योगासन ला, चित्त शांत मन थिर होही।
अंतस हा पावन हो जाही, तन सुग्घर मंदिर होही।।
नारी नर सब लइका छउवा, बन जावव योगिन योगी।
जिनगी मा तब सुख हा मिलही, नइ रइही तन मन रोगी।।
जात पात के बात कहाँ हे,काबर होबो झगरा जी ।
इरखा के सब टंटा टोरे ,योग करौ सब सँघरा जी।।
जेन सुभीता आसन होवय, वो आसन मा बइठे जी ।
ध्यान रहै बस नस नाड़ी मा, चिंता मा झन अँइठे जी।।
बिन तनाव के योग करे मा,तुरते लाभ जनाथे गा।
आधा घंटा समय निकाले मन चंगा हो जाथे गा।।
सुग्घर अनुलोम करौ भाई, साँस नाक ले ले लेके ।
कुंभक रेचक श्वाँसा रोंके,अउ विलोम श्वाँसा फेंके।।
प्राणायाम भस्त्रिका हावय ,बुद्धि बढ़ाथे सँगवारी ।
अग्निसार के महिमा हावस, भूँख बढ़ाथे जी भारी।।
हे कपालभाति उपयोगी,अबड़ असर एकर होथे।
एलर्जी नइ होवन देवय, सुख निंदिया रोगी सोथे ।।
कान मूँद के करौ भ्रामरी, भँवरा जइसे गुंजारौ।
माथा पीरा दूर भगाही, सात बार बस कर डारौ।।
ओम जपौ उदगीत करौ जी ,बने शीतली कर लेहौ।
रोज रोज आदत मा ढालौ, आड़ परन जी झन देहौ।
(छंद रस 2/20-6-17)प्रे-आमचो छत्तीसगढ़ 1/7/23
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भारत भुँइया(अमृत ध्वनि छंद)
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जेकर चारों खुँट हवय, कतको पावन धाम।
धरम धजा फहरत रथे, देवभूमि हे नाम। देव भूमि हज ,कहयँ सोन के, सुघर चिरइया।
भारत भुँइया, अलख जगइया, लागवँ पँइया।
लाल जवाहर,हवय घरो घर, बेटा शेखर। सागर परवत, पहरा देथें, निसदिन जेकर।
12/4/17 छंद.रस 2
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जिम्मेदारी(अमृत ध्वनि छंद)
जिम्मेदारी छोड़ के,आलस ला झन थाम।
अइसन मनखे के सदा,बिगड़त रहिथे काम।
बिगड़त रहिथे काम,सबो जी ,नइ समझै जी।
मन मुरझाथे,मान गँवाथे,दुख अरझै जी।
परे लचारी,घर के नारी,सहिथे भारी।
खुशी मनाथे,जेन उठाथे,जिम्मेदारी।
12/4/17 छंद.रस 2
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आगू बढ़बे
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झन कर अतियाचार तैं, भरे जवानी जोश।
खइता जिनगी,हो जही, खोथस काबर होश।
खोथस काबर,होश राखले, मीठ बोल ले।
मया बाँट ले, सुमत आँट ले, गाँठ खोल ले।
दू मन आगर,मिहनत तैं कर,सुरता छिनभर।
पढ़बे लिखबे,आगू बढ़बे, आलस झनकर।
13/4/17 छंद.रस 2
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पद पइसा(अमृतध्वनि छंद)
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पद पइसा के खेल मा,नाचत हावय न्याय।
निरपराध फाँसी चढ़ै,अपराधी बँच जाय।
अपराधी बँच,जाय घूसके,नोट धराके।
धौंस जमाके,गुंडा लाके,मार खवाके।
पहुँच बताके,रउँदत जाथे,नेता के कद।
बड़ इँतराथे,जोर लगाथे,सब पाके पद।
13/4/17 छंद.रस 2
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फेटा बाँध(रूपमाला)
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हाथ मा धरले तुतारी,मूँड़ फेंटा बाँध।
देख उत्ती भोर होगे, बोह नाँगर खाँध।
मेंढ़ मा माटी चढ़ाले, जोंत डिपरा कोड़।
खेत परिया संग मा जी, तैं लगा ले होड़।
14/4/17 छंद.रस 2
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बात मान (सिंहिका/शोभन छंद)
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आज घर ले झन निकलबे,छूट जही परान।
चरचरावत घाम हावय,बात मान मितान।
भोंभरा जरही चटाचट,ताव घात बताय।
प्यास अब्बड़ लागही जी, जीभ चटक सुखाय।
16/4/17 छंद.रस 2
प्रदुसन(सिंहिका/शोभन छंद)
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कार मोटर ट्रक अबड़ जी, फटफटी भरमार।
छोड़ कार्बन के जहर ला,गैस अबड़ मिंझार।
फेफड़ा ला जाम करके, हार्ट ला अटकाय।
वायु प्रदुसन होय भारी, ताप हा बढ़ जाय।
छेद होवत वायुमंडल,कर्क रोग झपाय।
आँख ला घातक किरन हा,फोर के अँधराय।
कान भैरा सोर बहुते,रंग रंग अजार।
श्राप होगे ज्ञान उल्टा, लोग होय लचार।
16/4/17 छंद.रस 2
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शक्ति रूप (सिंहिका/शोभन छंद)
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लीप अँगना खोर छींटा,काम ला निपटाय।
लाय पानी बोह हँउला,फेर नइ सुरताय।
राँध जेवन खेत जाथे,दिन ढरे घर आय।
धन्य हावय मातु नारी,शक्ति रूप कहाय।
20/4/17 छंद.रस 2
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जाँच खाता( 14,12 गितिका)
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तोर पुन के जाँच खाता, हे कहाँ जी गड़बड़ी।
का घटाये का बढ़ाये, पढ़ पहाड़ा हड़बड़ी।
दाँत चाबे धन ल जोरे, दान कभ्भू नइ करे।
लूट उल्टा भूँखहा ला, पाप घइला तैं भरे।
25/4/17 छंद.रस 2
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दगा(14,12 गितिका)
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मार थपरा खात हावयँ,वीर मन कश्मीर मा।
मूँड़ मा पथरा परत हे,घाव छाती तीर मा।
बाढ़ पानी ले बँचाइन,जान के बाजी लगा।
आज बाँचे दोगला मन,घात देवत हें दगा।
25/4/17 छंद.रस2
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पेटलू भइया (14,12 गितिका)
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रोज उठके पेटलू हा, चाय दू कप मारथे।
चार ठन सिगरेट पीथे, पेट तभ्भे झारथे।
रोग राई हे धरत जी ,तोंद बाढ़त जात हे।
पेटलू ढाबा म बइठे,देख मुर्गा खात हे।
लोग लइका मन बरजथें, वो कहाँ ले मानही।
एक सुर्री मूँढ़ मनखे,भल अपन का जानही।
बड़ समोसा खात रहिथे,जीभ ला चटकार के।
अउ जलेबी जी झड़कथे,चासनी ला डार के।
तेलहा झन खा अबड़ जी,तन म चर्बी बाढ़ के।
खून दौरा रोंक देही,नस मा थक्का माढ़ के।
स्वाद लालच छोड़ भइया, योग बर तैं ध्यान दे।
बात खाँटी जी हवय सब, मेहनत ला मान दे।
25/4/17 छंद.रस 2
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फटकार(14,12 गीतिका)
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मौत के मुँह मा ढकेलत,कर शरम सरकार जी।
छोड़ दुच्छा गोठ करना,मुँह ल झन ओथार जी।
खून पानी तोर होगे,देश पूरा जानथें।
बात फोकट हाँकथस बड़, सब बनौटी मानथें।
25/4/17 छंद.रस 2
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25/4/17 छंद.रस 2
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नवे रहै गुरु के चरण,'बादल' मोरे माथ।
मोर मूँड़ मा सदा,राखै गुरु हा हाथ।।
पूज्य अरुण जी नाम हे,गुरुवर श्री के मोर।
जेकर देये ज्ञान ले,हिरदे भरिस अँजोर।।
छंद लिखे बर जेन हा, देइस मोला ज्ञान।
जेकर आशीर्वाद हा, होइस बड़ फुरमान।।
लइका कस मड़ियाय हँव, जेकर अँगरी थाम।
पिता मोर साहित्य के, झोंकै मोर प्रणाम।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद ,छत्तीसगढ़
3/7/23 गुरुपूर्णिमा
🙏🙏🙏
सावन के झड़ी
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(दृढ़पद /दृढ़पट/उपमान छंद,13,10=23,प्रथम,तृतीय चरण दोहा जइसे,पदांत दू गुरु अच्छा या 112)
झिमिर झिमिर बरसत हवै, सावन मा पानी।
हप्ता भर होगे झड़ी,गे रबक किसानी।।
धूँकत हे जुड़हा हवा,जीव जंतु काँपै।
दिन हा लागय रात कस,बादर हा ढाँपै।।
बिच्छल होगे हे गली, चिख्खल हे माते।
गिरिस बिछल कसके बबा, दुई कदम जाते।।
असकटाय लइका हवैं,घर खुसरे खुसरे।
भितरहीन झुँझवाय हे, बुता कहाँ उसरे।।
कोठा बनगे जेल कस, कैदी जस गरवा।
मच्छड़ बड़ चाबत हवैं, टपकत हे परवा।।
नदिया नरवा बाढ़गें, पूरा हे दाबे।
रपटा पुलिया बूड़गें,झन आबे जाबे।।
खेत खार होगे हवै, सब उर्रा पुर्रा।
फसल बूड़गे धान के, मार दिही सुर्रा।।
कथरी चद्दर ओढ़के,सुतना हा भाथे।
भूँजे बटरी अउ चना, बड़ स्वाद जनाथे।।
रिगबिग पिहरी फूटगे,फेर कोन लावै।
कड़कड़ बिजुरी के चमक,रहि रहि डरुवावै।।
बनी भुती बनिहार के,चलही अब कइसे।
घालत हावै ये झड़ी, कर्फ्यू के जइसे।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़no entry
(लोका ,अँगना 5/8/23,fb 6/8/23)
*महान राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस के हार्दिक बधाई।*
🙏🌺🌺🌺🌺🙏
*नवा बिहान*
(वीर छंद मा गीत)
लहर-लहर लहराइस झंडा, होइस सुग्घर नवा बिहान।
पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।
कोनो हा इकलौता बेटा, कोनो हा खोइस पतिदेव।
छोटे-छोटे लइका-छउवा, खपगें आजादी के नेव।
नवजवान परिवार चलइयाँ, हाँस-हाँस देइन बलिदान।
पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।
झाँसी वाली रानी लक्ष्मी,चढ़ घोड़ा धरके तलवार।
रणचंडी हा गदर मचाइस, बुड़गे भले रकत के धार।
नाना साहब मंगल पांडे, जफर बहादुर शाह महान।
पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।
बाल-पाल अउ लाल बहादुर,लौह पुरुष सरदार पटेल।
भगत सिंग सुखदेव राजगुरु,नेताजी के अद्भुत खेल।
दुर्गा भाभी अउ बटुकेश्वर,करिन फिरंगी ला हलकान।
पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।
स्वतंत्रता के आंदोलन मा,बापू संग जवाहर लाल।
गोरा मन ला खेदारे बर, लोगन बनगें सँउहे काल।
भागिन गोरा प्रान बँचाके,बाँचिस महतारी के मान।
पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।
कतको भारी दुख सहि लेबो,नइ होवन दन चिटिको फूट।
आन-बान अउ शान हमर गा, झन पावय अब कोनो लूट।
बलिदानी मन के महिमा के, 'बादल' हा करथे गुणगान।
पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
15/8/23fb,खुलामंच,लोका,अँगना आदि म प्रेषित no entry
भाँचा आगे
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चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।
बने- बने हँव खबर पठोइच,सुन इसरो झूमन लागे।
गली-गली ला घूम-घूम के,ठिहा ममा के पालिच वो।
चूम डेहरी माथ नवाइच, गीत मया के गालिच वो।
चंद्रयान के सुग्घर आदत, चंदा ला अब्बड़ भागे।
चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।
पूछिस चंदा बता ग भाँचा, दीदी धरती कइसे हे।
घर दुवार अउ तबियत वोकर, का सब पहिली जइसे हे ।
मया मोर बर करथे वोहा, धन भाई ले दुरिहागे।
चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।
चंद्रयान हा बोलिस मामा, सुखी हवै धरती दाई।
रोटी-पीठा भेजे हावै, झोला भर मुर्रा लाई।
खाके पपची अउ सोंहारी, मामा के पेट अघागे।
चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।
चंदा मामा बोलिस भाँचा, एती वोती झन जाबे।
गहिरा अबडे गड्ढा हावैं,भसरँग ले तैं भोसाबे।
कथरी कमरा ओढ़े सुतबे, झन रहिबे जादा जागे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़